धरती के भगवान

मैंने भगवान को नही देखा,
सुना है ,जो कल्पनिय है,
हाथ जोडा़ दिन- रात है
मंदिर, मस्जिद,चर्च,गुरुद्वारा मैं,
सि़ंहासन पे विराजते देखा है।
करोडो़ का चढा़वा देखा जिनके,
आज दरवाजे उनके बंद है।
एक भगवान अब भी
विपत्ति की घडी़ साथ है।
छोड़ अपने घर-आँगन,
सेवा में लगे दिन-रात है।
अपने मुँह फेर रहे,
उन्हीं के साथ-साथ रहते।
वक्त पे भूखे भी सोते,
जोखिम उनके जान को भी है।
धन्य हमारे धरती के भगवान है।

नाम-सुनीता सिंह