"उडके छू अम्बर को"

नार सजी मुटयार,तू पंख पसार,उडके छू अम्बर को।
छोड़ अश्रु व्यापार तू भय की काली चुनर उतार,उडके छू अम्बर को।

तज भीति बंध,छुनछुन पायल,गजरे की गंध।
सिसकन सिमटन धरती दे गाढ़ उडके छू अम्बर को।

बस बहुत हुआ जलना मरना,दासी सा यों झुकझुक चलना,
तू आंचल उपलब्धि का पसार,
जड़ित कर अक्षर बिन्दू हजार,
उडके छू अम्बर को।

वह श्वेत धवल आता हुआ कल,
उतरे आंगन तो रोये ना,
तू आंगन संघर्षों से बुहार,
सींच दे अंकुर ज्ञान हज़ार,
उडके छू अम्बर को।
नार सजी मुटयार,तू पंख पसार,
उडके छू अम्बर को।

शशि शर्मा