किन्नर का समाजः कुछ मुद्दंदे एक समाजशास्त्रीय अध्ययन

सरिता गौतम

प्रस्तावना:

हमारे समाज में दो ही लिंग को पहचान मिली । स्त्री और पुरूष प्राचीन समय से ही स्त्री एवं पुरूष का काम आपसी सहयोग से संतान पैदा करना मानव जाति समाज को आगे बढ़ाना । और समाज में दो लिंग के अलावा एक अन्य प्रजाति की पहचान मौजूद है । जिसे हमारा समाज न तो स्त्री मानता है और न पुरूष । जो समाज का सृजन नहीं कर सकता । समाज में इन्हें हिंजड़ा, खोजा, किन्नर, छक्का,नपुंसक आदि उपनामों से सम्बोधित किया जाता है । समाज में इनका वास्तविक नाम किन्नर यौनिक पहचान के साथ ही समाज ने वास्तविक नाम किन्नर यौनिक पहचान के साथ ही समाज द्वारा मिटा दिया जाता है । किन्नर समुदाय में रीति रिवाजों के आधार पर नाम परिवर्तन यौनिक पहचान का एक हिस्सा है । भारतीय संविधान में इन्हें इटरसेक्स, ट्रांससक्सुअल और ट्रांसजेन्डर के रूप में पहचाना गया और इनकी पहचान का थर्ड जेंडर में ट्रांसजेन्डर की श्रेणी में रखा गया ।

तीसरे लिंग के अन्दर एक पहचान है यह पहचान उनकी पहचान है जो न ’स्त्री’ है और न ’पुरूष’ यह समाज के द्वारा निर्धारित जैविक सैक्स जिसे सामाजिक रुप से नहीं स्वीकारा जाता है और सैक्स के भीतर तीसरे सेक्स को नहीं मानता । समाज द्वारा निर्मित है , थर्ड जेन्डर थर्ड सैक्स का कोई सामान्य अर्थ नहीं है, जेंडर के सन्दर्भ में हमारे चेतना से है, यदि कोई बच्चा लड़का पैदा होता है और लड़की की तरह व्यवहार करती है तो यह उसका यौन उन्मुखता कहा जायेगा । थर्ड जेंडर एक तरफ से एकांकी न्यूट्रल है।जो अन्य जेंडर के भीतर नहीं है । इसमें सभी यौनिकताओं का समावेष सम्भव है । यौनिकता का आशय यौनिक्रिया और सम्बन्धों तक सीमित नहीं है । बल्कि यौनिकता से अभिप्रायः प्रवृत्तियों और व्यवहारों से है, जो विषम लिंग व समलिंग सम्बन्धों के अन्तर्गत गढ़ी जाती है और समाज के प्रत्येक व्यक्ति यौनिकता को एक ही तरह से महसूस और अभिव्यक्ति करे । जेंडर से यह पता चलता है कि हम अपनी यौनिकता को किस तरह से व्यक्त करते हैं । तीसरे लिंग के न्यूट्रल व्यवहार के कारण किन्नर समुदाय जो थर्ड सेक्स या उभयलिंग के रूप में जाना जाता है । किन्नर समुदाय स्वयं को थर्ड जेन्डर के भीतर ट्रांसजेंडर कहलवाना पसंद करते हैं । भारतीय समाज के रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं ने सदियों से किन्नर समुदाय का शोषण किया है । जो न तो स्त्री और न पुरूष है बल्कि किन्नर नपुंसक होने के कारण उन्हें दोहरे शोषण का सामना करना पड़ता है । किन्नरों को पितृसत्ता और शोषण को सहना पड़ता है भारतीय सामाजिक इतिहास के सभी काल खंडों की सामान्य विशेषता रही है । उनकी जैविक सरंचना से लेकर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक संरचना की स्थिति के पहलुओं को सामने लाने का प्रयास किया है । “करोलिने बी0 ब्रेरतेल्ल एवं करोलायन’’एक सृजेनट’’ प्रदीप सेल्ली हिनेस, महेन्द्र भीष्म, निर्मलाभुराड़िया जैसे विद्वानों ने किन्नर समुदाय की स्थिति एवं भूमिका को प्रस्तुत किया है । पौराणिक आख्याओं में किन्नर समुदाय का जिक्र मिलता है । रामायण, महाभारत और कौटिल्य के अर्थशास्त्र कामसूत्र उसके बाद मुगल इतिहास में बहुत सी धटनाएं शामिल हैं । यमदीप उपन्यास में नीरज माधव मानवी और आनन्द कुमार के माध्यम इनके इतिहास की गहराई में जाती है । अंग्रेजी में इनके लिए ’हरमोफ्रोडाइल्स’ की मूर्ति को स्त्री पुरूष प्रेम और सौन्दर्य का प्रतीक बताती है । मिस्त्र बेबीलोना और मोहनजोदड़ो की सभ्यता में इनका प्रमाण मिलता है । संस्कृतनाटकों में इनका उल्लेख है । कोटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया हैं, कि राजा को हिंजड़ों पर हाथ नहीं उठाना चाहिए ब्रिटिशसन काल में सुप्रीम कोर्ट ने 1987 से पहले किन्नरों को ट्रांसजेंडर को अधिकार दिया । 1987 में अंग्रेजों ने किन्नरों को क्रिमिनल कास्ट की संज्ञा दी । आधुनिक समय में उपजे विचार विमर्ष और अस्मिताओं के आन्दोलन का ज्यादा न सही कुछ प्रभाव किन्नरों की स्थिति पर पड़ा है । मुख्य चुनाव आयुक्त टी0एस0 शोषण द्वारा 1984 में ही किन्नरों को मताधिकार दे दिया गया था । 15 अप्रैल 2014 को सुप्रिम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में कानूनी पहचान दी । कोर्ट ने कहा कि समाज में ’किन्नर’ आज भी अछूत बने हुए हैं । संविधान में दिये गये मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए । कोर्ट ने शिक्षण , संस्थानों में प्रवेश तथा सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिए जाने की भी वकालत की, ताकि किन्नर समाज का सामाजिक, आर्थिक,राजनैतिक, सांस्कतिक तथा धार्मिक रूप से उत्थान किया जा सके । और पास पोर्ट आदि के साथ अन्य आवेदन पत्रों में भी स्त्री-पुरूष के अतिरिक्त किन्नरों के लिए एक अन्य कालम की व्यवस्था की गयी है । राजनीति में भी एक दो प्रतिशत ही सही परन्तु हिंजड़ों का दखल होने लगा । शिक्षा , रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं में विशेष अवसर प्रदान कर उन्हें धारा (377) में लाया गया है ।

थर्ड जेंडर के अधिकार सम्मान की भावना का आधार बनाकर न्यायालय ने गोपनीयता के अधिकार व्यापकता प्रदान की । अपने जीवन जीने के निर्णय लेने का अधिकार भी शामिलहै । अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत सम्मान पूर्वक जीवन जीने के अधिकार एवं स्वास्थ्य के अधिकारों को उसी में शामिल किया गया है । सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक रूप से उत्थान करने के लिए अधिकार मिला । धारा (377) रद्द करने से एड्स तीव्रता से फैलेगी यह तर्क पूरी तरह निर्धारित है क्योंकि यह गलत और असंगत मान्यताओं पर आधारित है । धारा (377) के कारण स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन होता है । अनुच्छेद (14) के कानून के समक्ष समानता की बात कही गई है । समलौगिक समुदाय के साथ किया जाने वाला भेदभाव गलत और दोषपूर्ण है तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है । अनुच्छेद 15 के अन्तर्गत सेक्स के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित या जैविक सेक्स को लेकर भेदभाव करना कानूनन दण्डनीय अपराध’’कोर्ट ने साल 1987 में अमेरिकी सर्वोच्च अदालत के फैसले का हवाला दिया, जिसमें आपसी सहमति से समलौंगिकों के यौन सम्बन्ध को अपराध करार दिया गया था । इस फैसले को फिर से समलौगिकता को लेकर प्राकृतिक अप्राकृतिक नैतिक-अनैतिक, वैध-अवैध की बहस तेज हो गई ।

किन्नर का अर्थ किन्नर हिन्दी के दो शब्दों ’कि’ और ’नर’ से मिलकर बना है जिनकी यौनि और लिंग की आकृति पूर्णतः मनुष्य की नहीं मानी जाती है । ट्रांसजेंडर, अंग्रेजी के दो शब्दों ’ट्रांस’ और ’जेंडर’ से मिलकर बना है । जिसका अर्थ जेंडर से परे वे सभी लोग जो समाज द्वारा बनाए गये । ’आदमी’ और ’औरत’ के दो ढांचों से ’परे’ है । उदाहरण के लिए कोई शारीरिक रूप से मर्द तो हो सकते हैं लेकिन लिंग परिवर्तन करा लेते हैं । जिनके जन्म के समय लिंग या यौनि होती है, उसे अंग्रेजी में ’इंटरसेक्स’ कहते हैं । वैंडीय, आफलहेंरटी, (1973),हिंजड़ा ऐसा समुदाय है जो न तो स्त्री है और न ही पुरूष जिनकी कोई पहचान नहीं थी । हिंजड़ा को महिलाओं की पहचान मिली जिन्हें थर्ड जेंडर की श्रेणी में रखा गया । बी0पी0सिंघल – सार्वजनिक नैतिकता को सुरक्षित रखने के लिए राज्य द्वारा लोगों को मौलिक अधिकारों को सीमित करना जायज है । ’’न्यायालय ने डा0अम्बेडकर के वक्तव्य का उल्लेख किया जिसे संविधान सभा में दिया था कि ’’संवैधानिक नैतिकता केवल एक प्राकृतिक विचार नहीं है, कि हमारे लोगों को अभी तक इसकी जानकारी नहीं है । भारत की व्यवस्था मोटे तौर पर अलोकतांत्रिक है ।“मेरी बर्नस्टीन’’, “गे और लैस्बियन’’ आंदोलन के सांस्कृतिक लक्ष्यों में पुरूषत्व, स्त्रित्व, समलौगिक से भय तथा विषमलांगिक के वर्चस्वषाली संरचना को चुनौती देना है । भारत में किन्नर समुदाय के कुछ अलग- अलग भूमिकाएं हैं, और इस समुदाय में अलग तरह से पूजा होती है, इनमें आजीविका कें साधन भी अलग होते हैं । उत्तर भारत में बधाई का रिवाज चलता है । अक्सर माना जाता है कि किन्नर सौभाग्य लाते हैं । इसलिए जब बच्चा पैदा होता है या शादी होती है तो किन्नर जाकर उस जोड़े को या उस बच्चे को बधाई देते हैं । फिर उस किन्नर की टोली को पैसा मिलता है । दक्षिण भारत के हिंजड़ों में यह रिवाज नहीं होता । वहां के किन्नर अपनी आजीविका के लिए ज्यादा यौन कर्म करते हैं और भीख मांगते हैं । मिश्रा,गीतांजलि,(2011) “डिस्किृमिनलाइजिंग होमोसेक्सुअली इन इण्डिया’’ सामाजिक रूप से उत्पीड़ित भारत में धारा (377)प्रावधान के तहत (ए0जी0बी0टी0) के साथ किया गया भेदभाव व्यवहार कानून दण्डनीय अपराध या अवनीत है । गायत्री, रेड्डी, एण्ड सेरेना, नन्दा, (2011) “हिंजडाः अन अल्टरनेटीव सेक्स एण्ड जेंडर इन इण्डिया’’ इसका उद्देष्य ऐतिहासिक समाज में तीसरे जेंडर का उदविकास था । हिंजड़ा समुदाय में जाति का संस्तरण होता है, या हाराइकिकस की व्यवस्था पायी जाती है । हिन्दू तथा मुस्लिम हिंजड़ा के धर्म में अन्तर है । ब्रिटिशसन में हिंजड़ों की संस्कृति में परिवर्तन, अंग्रेजों ने हिंजड़ा को क्रिमिनल कास्ट की श्रेणी में रखा । इनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक स्थिति जैसे कारक है । ऋतुपर्णा, बाराँ, (2011) “खुलती परतें यौनिकता और हम” का उदेश्यष्य ट्रांसजेंडर कौन है । का विष्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । जिसका अध्ययन क्षेत्र “निरन्तर संस्था’’ समुदाय के बीच की शैक्षणिक संदर्भ सामग्र निर्माण,शोध पैरवी और प्रशिक्षण के द्वारा अपने उद्देष्य की ओर बढ़ता है । ट्रांसजेंडर कितने प्रकार के और किन्नर के प्रति समाज की धारणा हिंजड़ा समुदाय के भीतर एक तरह की दर्जाबंदी है । हिंजड़ों में सबसे ऊॅचा स्थान “मा पेट हिंजड़ा’’ दूसरा -’’अक्वा हिंजड़ा, तीसरा ’निवार्ण हिंजड़ा’’ट्रांसजेंडर के साथ मानवाधिकार का हनन जैसे-शिक्षा,आजीविका, स्वास्थ्य,जीवन के हर पहलू में भेदभाव, को देखते हुए तमिलनाडू ’हिन्दुस्तान’ का पहला राज्य है । जिसने हिंजड़ा समुदाय को सरकारी मान्यता 2008 में दी यह बदलाव हिंजड़ा समुदाय के आन्दोलन की वजह से हुआ । इसमें किन्नर की स्थिति और भूमिका को बताया गया है। पिनार, इकाराकान, और सूजी, जौली, (2004), “जेंडर और यौनिकता’’ को अनुभावनात्मक बताया है । जिसका उद्देष्य सेक्स जेंडर आधारित पहचान व भूमिकाएं यौन रूझान कामुकता, आनंद, अंतरंगता और प्रजन ये सभी यौनिकता के अन्तर्गत आते हैं । जैसे – शारिरिक मनोवैज्ञानिक, समाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक जो यौनिकता के कारकों को प्रभावित करती है । (विश्व स्वास्स्थ्य संगठन 2004)जोसप, सहराज, (1996), ने लेख “गे एण्ड लेस्बियन इन इण्डिया’’ इस लेख का उद्देष्य- गे और लंस्बिमन की भूमिका 15 दिसम्बर 1993 अमंरिका में गे और लेस्बियन की समीति बनी । अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस (2007) “भारतीय महिलाओं की स्वास्थ्य सनद’’ (एल0जी0बी0टी0महिलाओं) समाज में उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं । उदाहरण विविध जेंडर (लिंगभाव) पहचान, लौंगिक रूझान, और समान लिंग जाति, वर्ग, धर्म ,वंश , व्यवसाय की सीमाओं को लांघते हैं । भारतीय पौराणिक कथाओं में भी समलौंगिक अभिव्यक्तियों का पता चलता है । प्राचीन कलाकृतियों में भी समलौंगिक कामवासना का पता चलता है । ट्रांसजजेंडर को खासकर हिजड़ों को उपखण्ड के समाजों में सदियों से स्वीकृति प्राप्त है । गैर विषम लौंगिक को परिवार और समाज दोनों ने दबाया है । इनकी स्थिति हाशिए पर है । (एल0जी0बी0टी0) के लिए सुप्रीम कोर्ट ने धारा (377) प्रशिक्षण, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा के लिए चिकित्सालय उपलब्ध कराए जांए । घर वालों, दलालों, गुंडों और ग्राहकों द्वारा हिंसा से ट्रांसजेंडर/ द्विलौंगिक वैश्यावृत्ति की रक्षा की जाये । भीष्म, महेन्द्र, (2014), “किन्नर कथा’’ के माध्यम से इस विषय उद्देश्य समाज में किन्नरों के साथ हो रहे भेदभाव का जिक्र किया है कि समाज एवं परिवार दोनों ने इनका अपमान, उपेक्षा और तनाव से ग्रसित करता है । किन्नरों को मुख्यधार से जोड़ने की प्रकारांतर से पैरवी की है । सौरव, प्रदीप, (2012), “तीसरी ताली” लेखक का उद्देष्य हैं कि किन्नर की सामाजिक संस्थाओं एवं जीवन संघर्ष की महत्वपूर्ण जानकारी दी । जैसे रोजमर्रा के जीवन उनकी संस्कृति, व्यवसाय तथा मुख्य धारा के समाज में उनके साथ बर्ताव, सामाजिक व्यवस्था को अवनति का मुख्य कारक बताया । इतिहास में इनकी स्थिति भिन्नता लिये हुये कुछ अच्छी दिखायी देती हैं । मुगल काल संगठन में ये राजाओं के महलों में रहते थे और रानी एवं राजाओं की सेवा करते थे । लेकिन वर्तमान समय में इनको समाज से बाहर कर दिया गया है ।

यह बड़े चिन्ता का विषय है । किन्नरों की बात की जाये तो उन्हें समाज में कोई नया स्थान नहीं दिया जाता है । चाहे वो शोषण का शिकार हो चाहें उनके ऊपर अत्याचार हो । उनका उल्लेख किसी भी शोध प्रबन्ध में यथा स्थान नहीं मिलता है । उन पर ईश्वर का ऐसा अभिशाप है कि भारतीय समाज की संरचना किन्नरों की जिन्दगी का सबसे बड़ा कारण है । समाज के लोग इनको देखना भी मुनासिब नहीं समझते हैं। समाज इनको अस्पृश्य एवं अपवित्र समझता है । भीष्म ने अपनी किन्नर कथा में कहा है, सामाजिक भेदभावके कारण किन्नर समुदाय मानसिक तनाव से ग्रस्त है । क्योंकि लैंगिक विकलांगता के कारण उन्हें उपेक्षित एवं एकान्तपूर्वक जीवन जीना पड़ता है । क्योंकि ये सेक्स नहीं कर सकते और बच्चे पैदा नहीं कर सकते हैं । इस कारण समाज ने उन्हे हशिये पर धकेल दिया है ।

संदर्भ ग्रन्थ सूची:

अन्तराष्ट्रीय, महिला, दिवस, 2007,’’भारतीय महिलाओं की स्वास्थ्य सदन’’, पृष्ठण्50.51ए पब्लिकेशन मासूम, 41-44, कुबेर विहार बी 1 गाड़तिल,

बे्रत्तेल्ल, बी0, कारोलीन, सरजेंट, एल, करोली, 2011, ’’जेंडर इन क्रोसकल्चरलव प्रेस्पेक्टीव’’,पृष्ठ 275.281ए अशोक के, घोष पी0एच0आई0 लिमरिंगप्राईवेट लिमीटेड एम-97, कोनाउट, सिकिस नींव दिल्ली,

बारा,ऋतुपर्णा,2011,’’खुलती परतेयौगिकता और हम,’’ पृष्ठण् 24.41ण्पब्लिकेशन निरन्तर नई दिल्ली,

बाबा, रामदेव, 11 दिसम्बर, 2013,’’समलिंगता एक बिमारी,’’

इतवारी, गे ,सेक्स, 2013, ’’अननेचुरल है तो ब्रहमचार्य क्या है’’,पृ0सं0 031

कुमार, अ0 2013,’’समलिंगता फिर से अपराध,’’ पृ0सं0 16-17,

मिश्रा,गीतांजलि, 2009,’’डिस्क्रिमिनलाइजिंगहोमोसेरकुअल्टी इन इण्डिया,’’पृष्ठ 20.28पब्लिकेशन रिप्रोडक्टीव हेल्थ मर्टस,

मेरी, ई0, जाँन, ज0, न0, 2008, ’’कामसूत्र से कासूत्र तक’’, पब्लिकेशन दिल्ली वाणी,

पिनार, इकाराकान, और सूजी, जौली, 2009, ’’जेंडर और यौनिकता’’, पृष्ठ ण्1पब्लिकेशन गिरन्तर नई दिल्ली,

त्रिपाठी, लक्ष्मी, 2013,’’मी0हिंजड़ा मी0’’,पब्लिकेषन लक्ष्मी मनोविज्ञान नई दिल्ली

पी0एच0डी0 शोध छात्रा,

समाज शास्त्र एवं समाज कार्य विभाग

एच0 एन0 बी0 गढ़वाल केन्द्रीय विश्व विद्यालय श्रीनगर गढ़वाल ।

मेल-saritagautam222@gmail.com