“तुम”
हर नज़्म में तुम ,
हर लफ्ज़ में तुम
मैं तो ठहरा काफिर
पर मुझे निखारती
नायाब फरिश्ता तुम ।
हर अक्श में तुम ,
हर ख्वाब में तुम
मैं तो ठहरा बंजर जमी
पर मुझे भिंगाती
शबनमी बूंद तुम
हर सवाल में तुम ,
हर जवाब में तुम
मैं तो ठहरा फकीर
पर मुझे चमकाती
नायाब कोहिनूर तुम ।
हर प्यास में तुम ,
हर तलब में तुम
मैं तो ठहरा खामोश दरिया
पर मुझे डुबोती मधुर रस तुम
हर नज़्म में तुम ,
हर लफ्ज़ में तुम
मैं तो ठहरा काफिर
पर मुझे निखारती
नायाब फरिश्ता तुम ।
कुनाल कंठ
कामिल कवि
बहत उम्दा रचनाएं हैं
यूं ही लिखते रहे बहत बहत बहत शुभकामनाएं
परिचय कमाल की ????????????????