” बंदिशें”
आधी आबादी की तरफ देखकर
चौखट मे निभाते किरदार देखकर
भ्रम से टूट जाती हैं फरमाइशें
किसने बनायी ये बंदिशें?
वेदना व जिम्मेदारी की धार मे।
भार्या,वधू या ममता की पुकार मे।
बांध लाया कौन ये नुमाइशें?
किसने बनायी ये बंदिशें?
सहकर गृह पीडा या तवे की जलन
अधरों पर मुस्कान,न कपाल पर शिकन।
कैसे बताये वो काया अपनी ख्वाहिशें
किसने बनायी ये बंदिशें?
कालगति अब चरम पर है उस काया के
तोड दें रहीं हैं हर कडियां अपनी माया से
इतिहास के पन्नों में जुडेंगी नयी कारवाइशें
स्त्री शक्ति है तोड देंगीं ये बंदिशें।”

                                   -हिमांशु 'हमसफर '