– ओंम प्रकाश नौटियाल
कुछ दिनों पूर्व कि बात है शंघाई शहर के सिंगची गाँव के पंचायती घर के एक कमरे में विद्वान सहित्यकार ली पिंग एक दिन ठहरने के लिये रूके । रात में उन्हें साथ के कमरे से किसी के सिसकने का स्वर सुनाई दिया । वह उठे और हल्की मोमबत्ती की रोशनी में कराहने की आवाज का स्रोत ढूंढ़ने लगे ।बगल के कमरे में घुसते ही कराहने का स्वर तीव्र हो गया किंतु उन्हें कुछ दिखायी नहीं दिया । कुछ घबराते हुए काँपते स्वर में उन्होंने तेज आवाज में पूछा ,”कौन है यहाँ ,सामने क्यों नहीं आता ?” तभी ऊँचे स्वर में आवाज आई, ” आप घबराइये नहीं । मैं यहाँ दरवाजे के सामने वाली खिड़की के दायीँ ओर वाले कोने में हूँ मेरा नाम कुंग ची कोरोना है । ईश्वर ने मुझे इतना छोटा बनाया है कि आप मुझे नहीं देख सकते पर मैं आपको देख सकता हूँ ।”
“ठीक है । क्या चाहते हो । रो क्यों रहे हो ?”
“पिंग जी , मैं वर्षों से इस कोने में पडा हूं ।मैं बहुत शक्तिशाली हूँ किंतु मुझे कोई नहीं पूछता। आज वर्षों बाद कोई यहाँ आपकी उपस्थिति का भान हुआ तो आप से अपना दर्द बाँटने का मन हुआ। और आँसुओं का दरिया उमड़ पड़ा । ” कुंग भर्राये गले से बोला ।”
” कुंग बेटा , तुम शायद आज की दुनियाँ से बेखबर हो । केवल गुण संपन्न होना ही काफी नहीं है -अपने गुण दुनियाँ के सामने पेश करने के हथकण्डों में भी शातिर होना चाहिए । हर फन का यही उसूल है । हमारे साहित्यिक जगत में भी चंदा, चाटुकारिता, भोज ,संपर्क आदि साहित्यिक योगदान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है तभी तो हमारे गाँव का चाँग लुई, जिसका साहित्यिक योगदान सरकार के लिये कुछ नारे लिखने तक सीमित रहा है, चीन के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार च्वान से सम्मानित हो गया । इसलिये बेटा ,केवल शक्तिशाली होकर कोने में पड़े रहने से तुम्हें कोई नहीं जानेगा । तुम्हें स्वयं को विश्व में प्रचारित करना होगा । “
” कैसे चाचा, बताइये न क्या करूं ?”
” तुम अब बिल्कुल चिंता मत करो। तुम भाग्यशाली हो कि मुझसे तुम्हारी मुलाकात हो गयी । तुम परसों मेरे साथ चलो मैं तुम्हें शंघाई ले जाऊँगा । वहाँ से चीन और सारे विश्व के द्वार तुम्हारे लिये अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिये खुले होंगे ।” पिंग बोले ।
“जी बहुत अच्छा ।मैं तैय्यार हूं ।”
” पर सुनो।कुंग ची कोरोना जैसा लम्बा नाम सफलता में बाधक है । आज से तुम दुनियाँ के लिये केवल कोरोना हो । समझे ।”
दो दिन पश्चात ली पिंग ने कोरोना को शंघाई एयरपोर्ट पर छोड़ दिया ।
“कोरोना बेटे । यहाँ से तुम विश्व भ्रमण पर अपनी शक्ति दिखाने निकल जाओ ।”
“ठीक है चाचा । लेकिन एक बात सुनो। मैं नही चाहता कि मेरे विश्व प्रसिद्ध होने का श्रेय मेरे अतिरिक्त किसी और को मिले । तुम्हारे माधयम से चीन में तथा अन्य जगहों पर भी लोग मेरी शक्ति का लोहा मानेंगे पर मुझे दुःख है कि यह देखने के लिये और दुनियाँ को मेरी कहानी सुनाने के लिये तुम अब जीवित नहीं बचोगे । “
और सचमुच ली पिंग की तीन दिन बाद मृत्यु हो गयी तथा उनके बताये हुए रास्ते पर चलकर शीघ्र ही दुनियाँ कोरोना की शक्ति के आगे नतमस्तक हो गयी ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल ,बडौदा , मोबा. 9427345810
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
कुछ दिनों पूर्व कि बात है शंघाई शहर के सिंगची गाँव के पंचायती घर के एक कमरे में विद्वान सहित्यकार ली पिंग एक दिन ठहरने के लिये रूके । रात में उन्हें साथ के कमरे से किसी के सिसकने का स्वर सुनाई दिया । वह उठे और हल्की मोमबत्ती की रोशनी में कराहने की आवाज का स्रोत ढूंढ़ने लगे ।बगल के कमरे में घुसते ही कराहने का स्वर तीव्र हो गया किंतु उन्हें कुछ दिखायी नहीं दिया । कुछ घबराते हुए काँपते स्वर में उन्होंने तेज आवाज में पूछा ,”कौन है यहाँ ,सामने क्यों नहीं आता ?” तभी ऊँचे स्वर में आवाज आई, ” आप घबराइये नहीं । मैं यहाँ दरवाजे के सामने वाली खिड़की के दायीँ ओर वाले कोने में हूँ मेरा नाम कुंग ची कोरोना है । ईश्वर ने मुझे इतना छोटा बनाया है कि आप मुझे नहीं देख सकते पर मैं आपको देख सकता हूँ ।”
“ठीक है । क्या चाहते हो । रो क्यों रहे हो ?”
“पिंग जी , मैं वर्षों से इस कोने में पडा हूं ।मैं बहुत शक्तिशाली हूँ किंतु मुझे कोई नहीं पूछता। आज वर्षों बाद कोई यहाँ आपकी उपस्थिति का भान हुआ तो आप से अपना दर्द बाँटने का मन हुआ। और आँसुओं का दरिया उमड़ पड़ा । ” कुंग भर्राये गले से बोला ।”
” कुंग बेटा , तुम शायद आज की दुनियाँ से बेखबर हो । केवल गुण संपन्न होना ही काफी नहीं है -अपने गुण दुनियाँ के सामने पेश करने के हथकण्डों में भी शातिर होना चाहिए । हर फन का यही उसूल है । हमारे साहित्यिक जगत में भी चंदा, चाटुकारिता, भोज ,संपर्क आदि साहित्यिक योगदान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है तभी तो हमारे गाँव का चाँग लुई, जिसका साहित्यिक योगदान सरकार के लिये कुछ नारे लिखने तक सीमित रहा है, चीन के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार च्वान से सम्मानित हो गया । इसलिये बेटा ,केवल शक्तिशाली होकर कोने में पड़े रहने से तुम्हें कोई नहीं जानेगा । तुम्हें स्वयं को विश्व में प्रचारित करना होगा । “
” कैसे चाचा, बताइये न क्या करूं ?”
” तुम अब बिल्कुल चिंता मत करो। तुम भाग्यशाली हो कि मुझसे तुम्हारी मुलाकात हो गयी । तुम परसों मेरे साथ चलो मैं तुम्हें शंघाई ले जाऊँगा । वहाँ से चीन और सारे विश्व के द्वार तुम्हारे लिये अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिये खुले होंगे ।” पिंग बोले ।
“जी बहुत अच्छा ।मैं तैय्यार हूं ।”
” पर सुनो।कुंग ची कोरोना जैसा लम्बा नाम सफलता में बाधक है । आज से तुम दुनियाँ के लिये केवल कोरोना हो । समझे ।”
दो दिन पश्चात ली पिंग ने कोरोना को शंघाई एयरपोर्ट पर छोड़ दिया ।
“कोरोना बेटे । यहाँ से तुम विश्व भ्रमण पर अपनी शक्ति दिखाने निकल जाओ ।”
“ठीक है चाचा । लेकिन एक बात सुनो। मैं नही चाहता कि मेरे विश्व प्रसिद्ध होने का श्रेय मेरे अतिरिक्त किसी और को मिले । तुम्हारे माधयम से चीन में तथा अन्य जगहों पर भी लोग मेरी शक्ति का लोहा मानेंगे पर मुझे दुःख है कि यह देखने के लिये और दुनियाँ को मेरी कहानी सुनाने के लिये तुम अब जीवित नहीं बचोगे । “
और सचमुच ली पिंग की तीन दिन बाद मृत्यु हो गयी तथा उनके बताये हुए रास्ते पर चलकर शीघ्र ही दुनियाँ कोरोना की शक्ति के आगे नतमस्तक हो गयी ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल ,बडौदा , मोबा. 9427345810
(सर्वाधिकार सुरक्षित )