2017 के विश्व
पुस्तक मेले के दूसरे दिन 8 जनवरी को अनामिका प्रकाशन से आई
डॉ प्रज्ञा की किताब ‘नाटक से सम्वाद‘ का
लोकार्पण हुआ. नाटक पर केंद्रित डॉ
प्रज्ञा की यह तीसरी किताब है। किताब का लोकार्पण स्वराज प्रकाशन के स्टाल पर हुआ।
शीर्षक की प्रामाणिकता को पुस्तक के लोकार्पण में भलीभाँतिपूर्वक देखा जा सकता
था.इस अवसर पर दो वरिष्ठ नाट्यचिन्तक-डॉ प्रताप सहगल, प्रो
देवेंद्रराज अंकुर ने विस्तार से अपनी बात नाटक और प्रज्ञा की नाट्य आलोचना दृष्टि
पर केंद्रित की। कार्यक्रम का संचालन डॉ
राकेश कुमार ने किया। सम्वाद की शुरुआत नाटककार-आलोचक प्रताप सहगल जी ने की। जिसमें उन्होंने पुस्तक की विषयगत विविधता
जैसे- बाल रंगमंच, नुक्कड़ नाटक, अस्मिता
रंगमंच, अभिनेता व नाटककार के साथ सम्वाद और नाट्य संस्थाओ
की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने किताब के आने को एक घटना के रूप में
लेते हुए कहा कि “नाटक पर केंद्रित किताबें कम हैं और अच्छी किताबें बहुत कम
हैं। उसमें प्रज्ञा की किताब सुचिंतित तरीके से,रंग दृष्टि
से और मंजी हुई भाषा में लिखी गई किताब है।” उन्होंने ‘माधवी‘
और नाटककार विजय तेंदुलकर पर आधारित लेखों को बेहद जरूरी
बताया। प्रसिद्ध रंगकर्मी और रंग चिन्तक
देवेंद्र राज़ अंकुर जी ने डॉ प्रज्ञा के
नाटक की दृष्टि से किये गए पहले के कामों-
में नुक्कड़ नाटक की स्थापना को लेकर लिखा गया पुस्तक ‘नुक्कड़
नाटक: रचना और प्रस्तुति‘ तथा नुक्कड़ नाटक संचयन ‘जनता के बीच जनता की बात‘ सरीखे मह्त्वपूर्ण कामों
के लिए बधाई दी. उनके सम्वादों में रंगमंच की एक चिंता साफ झलक रही थी कि नाटक और
उसके मंचन के बारे में जो पढा-लिखा तथा शोध किया जा रहा है वह बेहद सतही होता है.
जिसमें हम नाटक पर काम तो करते हैं लेकिन अपने किताबों से निकल रंगमंच की दुनिया को देखने की जहमत भी
नहीं उठा पाते. नाटकों की समझ को पुख्ता बनाने के लिए जरुर रंगमंच की चार दीवारी
में प्रवेश करना होगा तभी रंगकर्म पर सार्थक लिखा-पढा जाना सार्थक हो पायेगा. इस
दृष्टि से उन्होंने प्रज्ञा के काम का मूल्यांकन विश्वविद्यालयों की दृष्टि से
बाहर रंगमंच की दृष्टि के भीतर माना। उनका कहना था प्रज्ञा का काम उसी सार्थकता की तलाश है और उम्मीद है
इसी तरह वे अपना सम्वाद नाटकों से हमेशा कायम रखें. उन्होंने ये भी कहा कि “अब तक नाटक में
सम्वाद की बात होती थी प्रज्ञा ने नाटक से सम्वाद की बात की है। दोनों वरिष्ठ
रंगकर्मी ने ‘माधवी‘ और विजय तेन्दुलकर
पर लिखे लेख की प्रशंसा की. अस्मिता नाट्य संस्था के अरविन्द गौड़ जी से रंगमंच के
बारे में तथा पुस्तक के बारे में बातें हुई.
पुस्तक मेले के दूसरे दिन 8 जनवरी को अनामिका प्रकाशन से आई
डॉ प्रज्ञा की किताब ‘नाटक से सम्वाद‘ का
लोकार्पण हुआ. नाटक पर केंद्रित डॉ
प्रज्ञा की यह तीसरी किताब है। किताब का लोकार्पण स्वराज प्रकाशन के स्टाल पर हुआ।
शीर्षक की प्रामाणिकता को पुस्तक के लोकार्पण में भलीभाँतिपूर्वक देखा जा सकता
था.इस अवसर पर दो वरिष्ठ नाट्यचिन्तक-डॉ प्रताप सहगल, प्रो
देवेंद्रराज अंकुर ने विस्तार से अपनी बात नाटक और प्रज्ञा की नाट्य आलोचना दृष्टि
पर केंद्रित की। कार्यक्रम का संचालन डॉ
राकेश कुमार ने किया। सम्वाद की शुरुआत नाटककार-आलोचक प्रताप सहगल जी ने की। जिसमें उन्होंने पुस्तक की विषयगत विविधता
जैसे- बाल रंगमंच, नुक्कड़ नाटक, अस्मिता
रंगमंच, अभिनेता व नाटककार के साथ सम्वाद और नाट्य संस्थाओ
की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने किताब के आने को एक घटना के रूप में
लेते हुए कहा कि “नाटक पर केंद्रित किताबें कम हैं और अच्छी किताबें बहुत कम
हैं। उसमें प्रज्ञा की किताब सुचिंतित तरीके से,रंग दृष्टि
से और मंजी हुई भाषा में लिखी गई किताब है।” उन्होंने ‘माधवी‘
और नाटककार विजय तेंदुलकर पर आधारित लेखों को बेहद जरूरी
बताया। प्रसिद्ध रंगकर्मी और रंग चिन्तक
देवेंद्र राज़ अंकुर जी ने डॉ प्रज्ञा के
नाटक की दृष्टि से किये गए पहले के कामों-
में नुक्कड़ नाटक की स्थापना को लेकर लिखा गया पुस्तक ‘नुक्कड़
नाटक: रचना और प्रस्तुति‘ तथा नुक्कड़ नाटक संचयन ‘जनता के बीच जनता की बात‘ सरीखे मह्त्वपूर्ण कामों
के लिए बधाई दी. उनके सम्वादों में रंगमंच की एक चिंता साफ झलक रही थी कि नाटक और
उसके मंचन के बारे में जो पढा-लिखा तथा शोध किया जा रहा है वह बेहद सतही होता है.
जिसमें हम नाटक पर काम तो करते हैं लेकिन अपने किताबों से निकल रंगमंच की दुनिया को देखने की जहमत भी
नहीं उठा पाते. नाटकों की समझ को पुख्ता बनाने के लिए जरुर रंगमंच की चार दीवारी
में प्रवेश करना होगा तभी रंगकर्म पर सार्थक लिखा-पढा जाना सार्थक हो पायेगा. इस
दृष्टि से उन्होंने प्रज्ञा के काम का मूल्यांकन विश्वविद्यालयों की दृष्टि से
बाहर रंगमंच की दृष्टि के भीतर माना। उनका कहना था प्रज्ञा का काम उसी सार्थकता की तलाश है और उम्मीद है
इसी तरह वे अपना सम्वाद नाटकों से हमेशा कायम रखें. उन्होंने ये भी कहा कि “अब तक नाटक में
सम्वाद की बात होती थी प्रज्ञा ने नाटक से सम्वाद की बात की है। दोनों वरिष्ठ
रंगकर्मी ने ‘माधवी‘ और विजय तेन्दुलकर
पर लिखे लेख की प्रशंसा की. अस्मिता नाट्य संस्था के अरविन्द गौड़ जी से रंगमंच के
बारे में तथा पुस्तक के बारे में बातें हुई.
इस अवसर पर वरिष्ठ
साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम , रमेश उपाध्याय ,प्रेम जनमजेय के अलावा कवि-व्यंग्यकार लालित्य ललित , नामदेव और स्वराज प्रकाशन के अजय
मिश्रा ने भी प्रज्ञा को अपनी शुभकामनाएं दीं। प्रेम जनमेजय जी ने कहा
“प्रज्ञा की क्षमताओं पर मुझे पूरा भरोसा है। इनसे बहुत अपेक्षाएं हैं। नाटक
पर लिखते रहने के साथ ये कहानियां लिखना कभी न छोड़ें।”
साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम , रमेश उपाध्याय ,प्रेम जनमजेय के अलावा कवि-व्यंग्यकार लालित्य ललित , नामदेव और स्वराज प्रकाशन के अजय
मिश्रा ने भी प्रज्ञा को अपनी शुभकामनाएं दीं। प्रेम जनमेजय जी ने कहा
“प्रज्ञा की क्षमताओं पर मुझे पूरा भरोसा है। इनसे बहुत अपेक्षाएं हैं। नाटक
पर लिखते रहने के साथ ये कहानियां लिखना कभी न छोड़ें।”
इस अवसर पर नामदेव, राज बोहरे,अपराजिता,संज्ञा
उपाध्याय, अंकित, विकास, मनीषा ,राजीव, बरखा,साजिद, देवेश, दीपक, ललिता जैसे रचनाकार, शोध छात्र और युवा रंगकर्मी भी
मौजूद थे। मेले के माहौल में भी इस गम्भीर कार्यक्रम के समापन पर प्रज्ञा ने सबका
आभार व्यक्त करते हुए कहा-” मैं विश्वास दिलाती हूँ नाटक से सम्वाद की मेरी
यात्रा चलती रहेगी और मुझे भरोसा है इस किताब को पढ़कर आप भी मुझसे सम्वाद करेंगे।
उपाध्याय, अंकित, विकास, मनीषा ,राजीव, बरखा,साजिद, देवेश, दीपक, ललिता जैसे रचनाकार, शोध छात्र और युवा रंगकर्मी भी
मौजूद थे। मेले के माहौल में भी इस गम्भीर कार्यक्रम के समापन पर प्रज्ञा ने सबका
आभार व्यक्त करते हुए कहा-” मैं विश्वास दिलाती हूँ नाटक से सम्वाद की मेरी
यात्रा चलती रहेगी और मुझे भरोसा है इस किताब को पढ़कर आप भी मुझसे सम्वाद करेंगे।
प्रस्तुति
राजीव कार्तिकेय