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स्त्री विमर्श

स्त्री-विमर्श और निराला के स्त्री विषयक निबंध

निराला- अशिक्षित, अनपढ़ होने के कारण ही हमारी स्त्रियों को संसार में नरक-यातनाएँ भोगनी पड़ती है – उनके दुखों का अंत नहीं होता ।

स्त्री कामुकता का प्रश्न ?

पितृसत्ता समाज में कामुकता और सेक्स को हमेशा नैतिकता के बंधन में जकड़कर परदे के पीछे रख कर अपना एकाधिकार बनाया जिसके कारण स्त्री सदियों से कामुक आनंद से वंचित रही|

आदिवासी कथा साहित्य में स्त्री-लीना कुमारी मीना

सिन्हा, राजेन्द्र अवस्थी, शानी, मेहरुनिशा परवेज आदि लेखक-लेखिकाओं ने इस समाज को लेखनी का विषय बनाया| बंगला लेखिका महाश्वेता देवी के आदिवासी लेखन और उड़िया लेखक गोपीनाथ महंती ने आदिवासी लेखन के हिंदी अनुवादों से भी आदिवासी समाज की तरफ पाठक वर्ग का ध्यान खींचा,लेकिन आदिवासी समाज तथाकथित मुख्यधारा के साहित्य में हाशिये पर ही बना रहा|

हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं की कहानियों में दलित स्त्री का चित्रण और सामाजिक परिवेश-डॉ॰ स्वाति श्वेता

दलित साहित्य नकार का साहित्य है जो संघर्ष से उपजा है तथा जिसमे समता,स्वतंत्रता और बंधुता का भाव है और वर्ण व्यवस्था से उपजे जातिवाद का विरोध है

महिला मानवाधिकारों के पुरोधा डॉ.आंबेडकर-डॉ. चित्रलेखा अंशु

मेरी नजर में आंबेडकर इसलिए एक विशाल हृदय के नेता थे क्योंकि उन्होने हिन्दू कोड बिल बनाते वक्त इस तरह के कोई निर्देश नहीं दिए कि इसमें किस जाति या किस वर्ग की महिलाओं के अधिकारों की बात की जा रही है।

भूमंडलीकरण और स्त्रीविमर्श-पूजा तिवारी

नारीवाद या स्त्री विमर्श किसी एक देश विशेष की पूँजी नहीं है बल्कि यह सम्पूर्ण विश्व की स्त्रियों की मुक्ति का दस्तावेज है. यह मुक्ति है पितृसत्तात्मक सोच से मुक्ति, परम्परा से मुक्ति और उस बने-बनाये ढांचे से मुक्ति जिसमें स्त्रियों को सदैव पुरुषों की दासी के रूप में देखा गया है

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका-सुबोध कुमार गुप्ता

रायगढ़ की रानी अवंती बाई ने अंग्रेजों की नीतियों से चिढ़कर उनके विरुद्ध संघर्ष का ऐलान कर दिया और मंडला के खेटी गाँव में मोर्चा जमाया. उन्होंने अंग्रेज सेनापति वार्टर के घोड़े के दो टुकड़े कर दिए और उसके वो छक्के छुड़ाए कि वार्टर रानी के पैरों पर गिरकर प्राणों की भीख मांगने लगा

बौद्ध धर्म और थेरी गाथाएँ –स्त्री मुक्ति का युगांतकारी दस्तावेज़: डॉ हर्ष बाला शर्मा

स्त्री मुक्ति और अभिव्यक्ति की चर्चा सर्वप्रथम थेरी गाथाओं में मिलती है| महात्मा बुद्ध की इच्छा न होने पर भी आनन्द द्वारा बल दिए जानेके कारण इन स्त्रियों को संघ में प्रवेश प्राप्त हो सका| इसकी रचना को लेकर भी इतिहासकारों में मत-मतांतर है|

मेहरून्निसा परवेज़ की कहानियों में आदिवासी स्त्री-आरती

मेहरून्निसा परवेज़ ने अपनी कहानियों में इन्हीं आदिवासी स्त्रियों को चित्रित किया है। आदिवासी स्त्रियाँ स्वावलंबी होती है। वे खट-कमाकर अपना और अपने पूरे परिवार का भरण-पोषण करने में समक्ष होती है। मेहरून्निसा परवेज़ की कहानी ‘कानीबाट’ में दुलेसा और उसकी माँ जंगलों में काम करती है और उसका पिता खेतों में काम करता है।

वैदिक साहित्य में स्त्री महिमामंडन का सच-चित्रलेखा अंशु

इस शोध लेख में ऋग्वेद काल में स्त्री की स्थिति का विश्लेषण किया गया है। विशेष रूप से जिन स्त्रियों की स्थिति अच्छी बताकर स्त्री सशक्तिकरण का दावा वेदकालीन समाज में किया जाता रहा है। क्योंकि ऐसी बातें प्रचारित की जाती हैं कि वेदकाल में स्त्रियाँ उच्च स्थान पर थी बाद के कालों में उनकी स्थिति का ह्वास हुआ है।

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