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स्त्री विमर्श

‘‘स्त्री-मुक्ति की राहें’’ सपने और हकीकत-डॉ. रामचन्द्र पाण्डेय

आज बाज़ारवाद ने भी स्त्रियों की स्वतंत्रता की आड़ में उसकी देह को अधिकतम लाभ देने वाली उपभोग की वस्तु बनाकर रख दिया है। एक ऐसा भयंकर षड्यंत्र चल रहा है जो स्त्री की देह तथा उसकी आत्मा का मूल्य लगाकर उन्हें अपनी हवस का शिकार बना रहा है तथा उनसे पूँजी का भी सृजन कर रहा है।

आर्थिक दुर्बलता के कारण सामंती व्यवस्था का शिकार होती दलित स्त्रियाँ-माधनुरे श्यामसुंदर

दलित स्त्री को इस सामन्ती व्यवस्था में गाँव के भू मालिको एवं संपन्न वर्ग द्वारा दलित महिलाओं के प्रति जुल्म व दुर्व्यवहार होते आए हैं। ‘थमेगा नहीं विद्रोह’ उपन्यास में तीन महिलाओं के साथ बलात्कार होता है जिस में अबोध चावली, रामबती गंगा की बहु आदि। इनके साथ दुष्कर्म भी होता है और एखाद हत्या भी कर दी जाती है। इस तरह अपराध जगण्य और क्रूरतम अपराध है।

मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में व्यक्त नारी समस्याएँ-प्रो. डॉ. हेमल बहन एम. व्यास

मैत्रेयी पुष्पा ने अत्यंत सफलता के साथ स्त्री विमर्श पर अपनी कलम चलाई है । मैत्रेयी पुष्पा अपनी कहानियों में स्त्री वादी दृष्टि रखती है । उन्होंने भोगे गये सत्य को ,जीवन की वास्तविकता के चितार को प्रस्तुत किया है ।

साहित्य लेखन के सन्दर्भ में स्त्री अस्मिता : एक चिंतन-दर्शना जी. वैश्य

आज भी महिला-लेखन में स्त्री-वर्ग की शिकायतों, उसके प्रकट और अप्रकट क्रोध, छुपे हुए आक्रोश तथा जीवन के प्रति उसके विशिष्ट दृष्टिकोण को ज्यादा शिद्दत से अभिव्यक्त किया जा सकता है । रोजमर्रा की जंदगी, निजी घटनाओं का सटीक वर्णन जितना महिला-लेखन में प्रस्तुत किया जा सकता है उतना पुरुष-लेखन में नहीं ।

पितृसत्ता: अर्थ, उत्पत्ति एवं व्यापकता-पूजा मिश्रा

प्रस्तुत आलेख द्वारा वैश्विक स्तर पर स्त्री की दोयम स्थिति के आधारभूत और महत्वपूर्ण कारक के रूप में पितृसत्ता को परिभाषित किया गया है।

हिंदी नवजागरण और स्त्री-सुमित कुमार

जहाँ एक ओर नवजागरण काल में स्त्रियों को लेकर लेखकों में कई रूढ़ियाँ दिखी, वहीं कुछ ऐसे सकारात्मक परिणाम भी दिखे जिसने स्त्री संघर्षों को और मजबूती प्रदान की। इन सकारात्मक पहल को हम श्रीमती धर्मा यादव के इन शब्दों में देख सकते हैं जो स्त्रियों के लिए सकारात्मक पहल थी उस काल की।

प्रतिरोधी समाजव्यवस्था एवं इक्कीसवीं सदी की हिंदी स्त्री आत्मकथाएँ-सुप्रिया प्रभाकर जोशी

बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में तथा इक्कीसवीं सदी के आरंभ से नारियों ने भी निडरता के साथ इस विधा को समृद्ध करने में अपना योगदान दिया। नारियों द्वारा लिखी हुयी आत्मकथाएँ विचारोत्तेजक, नारी विमर्श के नए आयामों को उद्घाटित करती है। इन आत्मकथाओं को पढ़ने के बाद हमारी नैतिकता और सामाजिकता पर अनेक प्रश्न उपस्थित होते है।

आधुनिक युग के स्त्री-प्रश्न

प्रस्तुत आलेख में स्त्री-जीवन से संबन्धित उन समस्याओं की चर्चा की गयी है आधुनिक युग की स्त्रियों के समक्ष खड़ी हैं । आधुनिक स्त्री हमारे समाज में दोहरी भूमिकाओं में प्रस्तुत है । नयी स्त्री की ये समस्याएँ नए स्त्री प्रश्नों को जन्म देती हैं । अपनी प्रवृत्ति में ये प्रश्न प्राचीन स्त्री-प्रश्नों की ही भाँति गंभीर और उलझे हुये हैं । इनके सुलझने में केवल स्त्री नहीं वरन उसके आस-पास के पूरे परिवेश, स्त्री से जुड़े प्रत्येक स्तर एवं प्रत्येक व्यक्ति का सहयोग अपेक्षित है जो इसे एक जटिल प्रक्रिया बनाता है । यह आलेख उन्हीं सब मुद्दों व उनके समाधान के विभिन्न प्रस्तावों के एक प्रयास को समेटता है । स्त्री के व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक जीवन की विविध परिस्थियों के माध्यम से हम इन स्त्री-प्रश्नों को समझने का प्रयास करेंगे ।

महात्मा गांधी की दृष्टि में स्त्री–आशीष कुमार

“स्त्रियों के अधिकारों के सवाल पर मैं किसी तरह का समझौता स्‍वीकार नहीं कर सकता। मेरी राय में उन पर ऐसा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए जो पुरुषों पर न लगाया गया हो। पुत्रों और कन्‍याओं में किसी तरह का कोई भेद नहीं होना चाहिए। उनके साथ पूरी समानता का व्‍यवहार होना चाहिए।”

नारी-विमर्श की दृष्टि से ‘कौन नहीं अपराधी’ उपन्यास में नारी संघर्ष: प्रो. राजिन्द्र पाल सिंह जोश, अनुराधा कुमारी

नारी विमर्श की दृष्टि से उपरोक्त विवरण के आधार पर यह स्पष्ट है कि ’कौन नही अपराधी’ उपन्यास नारी संघर्ष की अभिव्यक्ति है । नारी बचपन से ही संघर्ष करना आरम्भ करती है और इस समाज में उसे आयुपर्यन्त संघर्ष ही करना पड़ता है । इस तथ्य को लेखिका ने अनेक पात्रों के संघर्षमयी जीवन से दर्शाया है चाहे नायिका सीमा हो, रीमा, उम्मी, अंशु, प्रमिला, कमला, विमला, महिमा, आसफा, सरिता इत्यादि कोई भी प्राप्त हो वह कहीं न कहीं, किसी ना किसी प्रकार के शोषण से ग्रस्त है। शोषण होने के पश्चात भी उसमें संघर्ष की हिम्मत और असंगत के प्रति रोष है। स्त्री को स्वयं सक्षम बनना होगा।

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