फ़िल्मी गीत साहिर लुधियानवी

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    Filmi Rachnayen Sahir Ludhianvi

    अनुक्रम

    फ़िल्मी रचनाएँ साहिर लुधियानवी

    अगर मुझे न मिली तुम तो मैं ये समझूँगा

    अगर मुझे न मिली तुम तो मैं ये समझूँगा
    कि दिल की राह से होकर ख़ुशी नहीं गुज़री

    अगर मुझे न मिले तुम तो मैं ये समझूँगी
    कि सिर्फ़ उम्र कटी ज़िंदगी नहीं गुज़री

    फ़िज़ा में रंग नज़ारों में जान है तुमसे
    मेरे लिए ये ज़मीं आसमान है तुमसे
    ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया जवान है तुमसे,
    अगर मुझे न मिले तुम तो मैं ये समझूँगी
    कि ख़्वाब ख़्वाब रहे बेकसी नहीं गुज़री
    अगर मुझे न मिली तुम तो मैं ये समझूँगा
    कि दिल की राह से होकर ख़ुशी नहीं गुज़री

    बड़े यक़ीन से मैंने ये हाथ माँगा है
    मेरी वफ़ा ने हमेशा का साथ माँगा है
    दिलों की प्यास ने आब-ए-हयात माँगा है
    दिलों की प्यास ने आब-ए-हयात माँगा है

    अगर मुझे न मिले तुम तो मैं ये समझूँगी
    कि इंतज़ार की मुद्दत अभी नहीं गुज़री

    अगर मुझे न मिले तुम तो मैं ये समझूँगी
    कि सिर्फ़ उम्र कटी ज़िंदगी नहीं गुज़री

    अब अगर हमसे ख़ुदाई भी खफ़ा हो जाए

    अब अगर हमसे ख़ुदाई भी खफ़ा हो जाए
    गैर-मुमकिन है कि दिल दिल से जुदा हो जाए
    जिस्म मिट जाए कि अब जान फ़ना हो जाए
    गैर-मुमकिन है…

    जिस घड़ी मुझको पुकारेंगी तुम्हारी बाँहें
    रोक पाएँगी न सहरा की सुलगती राहें
    चाहे हर साँस झुलसने की सज़ा हो जाए
    गैर-मुमकिन है…

    लाख ज़ंजीरों में जकड़ें ये ज़माने वाले
    तोड़ कर बन्द निकल आएँगे आने वाले
    शर्त इतनी है कि तू जलवा-नुमाँ हो जाए
    गैर-मुमकिन है…

    ज़लज़ले आएँ गरज़दार घटाएँ घेरें
    खंदकें राह में हों तेज़ हवाएँ घेरें
    चाहे दुनिया में क़यामत ही बपा हो जाए
    गैर-मुमकिन है…

    अब कोई गुलशन ना उजड़े

    अब कोई गुलशन ना उजड़े अब वतन आज़ाद है
    रूह गंगा की हिमालय का बदन आज़ाद है

    खेतियाँ सोना उगाएँ, वादियाँ मोती लुटाएँ
    आज गौतम की ज़मीं, तुलसी का बन आज़ाद है

    मंदिरों में शंख बाजे, मस्जिदों में हो अज़ाँ
    शेख का धर्म और दीन-ए-बरहमन आज़ाद है

    लूट कैसी भी हो अब इस देश में रहने न पाए
    आज सबके वास्ते धरती का धन आज़ाद है

    अभी न जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं

    अभी न जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं
    अभी अभी तो आई हो अभी अभी तो
    अभी अभी तो आई हो, बहार बनके छाई हो
    हवा ज़रा महक तो ले, नज़र ज़रा बहक तो ले
    ये शाम ढल तो ले ज़रा ये दिल सम्भल तो ले ज़रा
    मैं थोड़ी देर जी तो लूँ, नशे के घूँट पी तो लूँ
    नशे के घूँट पी तो लूँ
    अभी तो कुछ कहाँअहीं, अभी तो कुछ सुना नहीं
    अभी न जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं

    सितारे झिलमिला उठे, सितारे झिलमिला उठे, चराग़ जगमगा उठे
    बस अब न मुझको टोकना
    बस अब न मुझको टोकना, न बढ़के राह रोकना
    अगर मैं रुक गई अभी तो जा न पाऊँगी कभी
    यही कहोगे तुम सदा के दिल अभी नहीं भरा
    जो खत्म हो किसी जगह ये ऐसा सिलसिला नहीं
    अभी नहीं अभी नहीं
    नहीं नहीं नहीं नहीं
    अभी न जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं

    अधूरी आस, अधूरी आस छोड़के, अधूरी प्यास छोड़के
    जो रोज़ यूँही जाओगी तो किस तरह निभाओगी
    कि ज़िंदगी की राह में, जवाँ दिलों की चाह में
    कई मुक़ाम आएंगे जो हम को आज़माएंगे
    बुरा न मानो बात का ये प्यार है गिला नहीं
    हाँ, यही कहोगे तुम सदा के दिल अभी नहीं भरा
    हाँ, दिल अभी भरा नहीं
    नहीं नहीं नहीं नहीं

    आप आए तो ख़्याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

    आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए नाशाद आया
    कितने भूले हुए ज़ख़्मों का पता याद आया

    आप के लब पे कभी अपना भी नाम आया था
    शोख नज़रों से मुहब्बत का सलाम आया था
    उम्र भर साथ निभाने का पयाम आया था
    आपको देख के वह अहद-ए-वफ़ा याद आया

    रुह में जल उठे बजती हुई यादों के दिए
    कैसे दीवाने थे हम आपको पाने के लिए
    यूँ तो कुछ कम नहीं जो आपने एहसान किए
    पर जो माँगे से न पाया वो सिला याद आया

    आज वह बात नहीं फिर भी कोई बात तो है
    मेरे हिस्से में यह हल्की-सी मुलाक़ात तो है
    ग़ैर का हो के भी यह हुस्न मेरे साथ तो है
    हाय! किस वक़्त मुझे कब का गिला याद आया

    इतनी हसीन इतनी जवाँ रात क्या करें

    इतनी हसीन इतनी जवाँ रात, क्या करें
    जागे हैं कुछ अजीब से जज़्बात, क्या करें?

    पेड़ों के बाजुओं में महकती है चांदनी
    बेचैन हो रहे हैं ख़्यालात, क्या करें?

    साँसों में घुल रही है किसी साँस की महक
    दामन को छू रहा है कोई हाथ, क्या करें?

    शायद तुम्हारे आने से यह भेद खुल सके
    हैराँ हैं कि आज नई बात क्या करें?

    इश्क़ की गर्मी-ए-जज़्बात किसे पेश करूँ

    इश्क़ की गर्मी-ए-जज़्बात किसे पेश करूँ
    ये सुलग़ते हुए दिन-रात किसे पेश करूँ

    हुस्न और हुस्न का हर नाज़ है पर्दे में अभी
    अपनी नज़रों की शिकायात किसे पेश करूँ

    तेरी आवाज़ के जादू ने जगाया है जिन्हें
    वो तस्सव्वुर, वो ख़यालात किसे पेश करूँ

    ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल, ऐ मेरी ईमान-ए-ग़ज़ल
    अब सिवा तेरे ये नग़मात किसे पेश करूँ

    कोई हमराज़ तो पाऊँ कोई हमदम तो मिले
    दिल की धड़कन के इशारात किसे पेश करूँ

    इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके

    इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके
    जिस ने ये पहनाई है उस दिलदार के सदके

    उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान लब-ओ-रुक़सार के सदके
    हर जलवा था इक शोला हुस्न-ए-यार के सदके

    जवानी माँगती ये हसीं झंकार बरसों से
    तमन्ना बुन रही थी धड़कनों के तार बरसों से
    छुप-छुप के आने वाले तेरे प्यार के सदके
    इस रेशमी पाज़ेब की …

    जवानी सो रही थी हुस्न की रंगीं पनाहों में
    चुरा लाये हम उन के नाज़नीं जलवे निगाहों में
    क़िस्मत से जो हुआ है उस दीदार के सदके
    उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान …

    नज़र लहरा रही थी ज़ीस्त पे मस्ती सी छाई है
    दुबारा देखने की शौक़ ने हल्चल मचाई है
    दिल को जो लग गया है उस अज़ार के सदके
    इस रेशमी पाज़ेब की …

    उड़ें जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी

    उड़ें जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी
    हो, उड़ें जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी
    कुँवारियों का दिल मचले
    जिन्द मेरिये
    हों जब ऐसे चिकने चेहरे
    तो कैसे न नज़र फिसले
    जिन्द मेरिये

    हो, रुत प्यार करन की आई
    के बेरियों के बेर पक गये
    जिंद मेरिये
    कभी डाल इधर भी फेरा
    के तक-तक नैन थक गये
    जिन्द मेरिये

    हो, उस गाँव से सँवर कभी सद्क़े
    के जहाँ मेरा यार बसता
    जिंद मेरिये
    पानी लेने के बहाने आजा
    के तेरा मेरा इक रस्ता
    जिन्द मेरिये
    हो, तुझे चाँद के बहाने देखूँ
    तू छत पर आजा गोरिये
    जिंद मेरिये

    अभी छेड़ेंगे गली के सब लड़के
    के चाँद बैरी छिप जाने दे
    जिन्द मेरिये
    हो, तेरी चाल है नागिन जैसी
    रे जोगी तुझे ले जायेंगे
    जिंद मेरिये

    जायेँ कहीं भी मगर हम सजना
    यह दिल तुझे दे जायेंगे
    जिन्द मेरिये

    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है-1

    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
    के जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिये
    तू अबसे पहले सितारों में बस रही थी कहीं
    तुझे ज़मीं पे बुलाया गया है मेरे लिये
    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है

    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
    के ये बदन ये निगाहें मेरी अमानत हैं
    ये गेसुओं की घनी छाँव हैं मेरी ख़ातिर
    ये होंठ और ये बाहें मेरी अमानत हैं
    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है

    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
    के जैसे तू मुझे चाहेगी उम्र भर यूँही
    उठेगी मेरी तरफ़ प्यार की नज़र यूँही
    मैं जानता हूँ के तू ग़ैर है मगर यूँही
    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है

    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
    के जैसे बजती हैं शहनाइयां सी राहों में
    सुहाग रात है घूँघट उठा रहा हूँ मैं
    सुहाग रात है घूँघट उठा रहा हूँ मैं
    सिमट रही है तू शरमा के मेरी बाहों में
    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है

    कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है-2

    कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

    कि ज़िन्दगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाँव में
    गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
    ये तीरगी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है
    तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी

    अजब न था के मैं बेगाना-ए-अलम रह कर
    तेरे जमाल की रानाईयों में खो रहता
    तेरा गुदाज़ बदन तेरी नीमबाज़ आँखें
    इन्हीं हसीन फ़सानों में महव हो रहता

    पुकारतीं मुझे जब तल्ख़ियाँ ज़माने की
    तेरे लबों से हलावट के घूँट पी लेता
    हयात चीखती फिरती बरहना-सर, और मैं
    घनेरी ज़ुल्फ़ों के साये में छुप के जी लेता

    मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
    के तू नहीं, तेरा ग़म, तेरी जुस्तजू भी नहीं
    गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे
    इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं

    ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
    गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी रह्गुज़ारों से
    महीब साये मेरी सम्त बढ़ते आते हैं
    हयात-ओ-मौत के पुरहौल ख़ारज़ारों से

    न कोई जादह-ए-मंज़िल न रौशनी का सुराग़
    भटक रही है ख़लाओं में ज़िन्दगी मेरी
    इन्हीं ख़लाओं में रह जाऊँगा कभी खोकर
    मैं जानता हूँ मेरी हमनफ़स मगर फिर भी

    कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

    कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया

    कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया ।
    बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया ॥

    हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को ।
    क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया?

    किस लिए जीते हैं हम, किसके लिए जीते हैं?
    बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया ॥

    कौन रोता है किसी और की ख़ातिर, ऐ दोस्त!
    सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया ॥

    कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ

    कह दूँ तुम्हें
    या चुप रहूँ
    दिल में मेरे आज क्या है
    कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ
    दिल में मेरे आज क्या है
    जो बोलो तो जानूँ गुरू तुमको मानूँ
    चलो ये भी वादा है
    कह दूँ तुम्हें…

    सोचा है तुमने कि चलते ही जाएँ
    तारों से आगे कोई दुनिया बसाएँ
    तो तुम बताओ
    सोचा ये है कि तुम्हें रस्ता भुलाएँ
    सूनी जगह पे कहीं छेड़ें सताएँ
    हाय रे ना ना
    ये ना करना
    अरे नहीं रे नहीं रे नहीं रे नहीं रे नहीं नहीं
    कह दूँ तुम्हें…

    सोचा है तुमने कि कुछ गुनगुनाएँ
    मस्ती में झूमें ज़रा धूमें मचाएँ
    तो तुम बताओ ना
    सोचा ये है कि तुम्हें नज़दीक लाएँ
    फूलों से होंठों की लाली चुराएँ
    हाय रे ना ना
    ये ना करना
    अरे नहीं रे नहीं रे नहीं रे नहीं रे नहीं नहीं
    कह दूँ तुम्हें…

    कहीं और मिला कर मुझसे

    ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उलफत ही सही
    तुम को इस वादी-ए-रँगीं से अक़ीदत ही सही
    मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे

    बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी
    सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
    उस पे उलफत भरी रूहों का सफर क्या मानी

    मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तशरीर-ए-वफ़ा
    तूने सतवत के निशानों को तो देखा होता
    मुर्दा शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली,
    अपने तारीक़ मक़ानों को तो देखा होता

    अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
    कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उनके
    लेकिन उनके लिये तश्शीर का सामान नहीं
    क्यूँकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे

    ये इमारत-ओ-मक़ाबिर, ये फ़ासिले, ये हिसार
    मुतल-क़ुलहुक्म शहँशाहों की अज़्मत के सुतून
    दामन-ए-दहर पे उस रँग की गुलकारी है
    जिसमें शामिल है तेरे और मेरे अजदाद का ख़ून

    मेरी महबूब! उनहें भी तो मुहब्बत होगी
    जिनकी सानाई ने बक़शी है इसे शक़्ल-ए-जमील
    उनके प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नमूद
    आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ँदील

    ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा, ये महल
    ये मुनक़्कश दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
    इक शहँशाह ने दौलत का सहारा ले कर
    हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
    मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे

    किस का रस्ता देखे, ऐ दिल, ऐ सौदाई

    किस का रस्ता देखे, ऐ दिल, ऐ सौदाई
    मीलों है खामोशी, बरसों है तनहाई
    भूली दुनिया, कभी की, तुझे भी मुझे भी
    फिर क्यों आँख भर आई
    ओ, किस का रस्ता देखे …

    कोई भी साया नहीं राहों में
    कोई भी आएगा न बाहों में
    तेरे लिए मेरे लिए कोई नहीं रोने वाला हो
    झूटा भी नाता नहीं चाहों में
    तू ही क्यों डूबा रहे आहों में
    कोई किसी संग मरे, ऐसा नहीं होने वाला
    कोई नहीं जो यूँ ही जहाँ में, बाँटे पीर पराई
    हो, किस का रस्ता देखे …

    तुझे क्या बीती हुई रातों से
    मुझे क्या खोई हुई बातों से
    सेज नहीं, चितह सही, जो भी मिले सोना होगा, हो
    गई जो डोरी छूट हाथों से, ओ
    लेना क्या छूटे हुए साथों से
    खुशी जहाँ माँगी तूने, वहीं मुझे रोना होगा
    न कोई तेरा, न कोई मेरा, फिर किसकी याद आई
    ओ, किस का रस्ता देखे …

    किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है

    किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है
    परस्तिश की तमन्ना है, इबादत का इरादा है
    किसी पत्थर की मूरत से …

    जो दिल की धड़कनें समझे न आँखों की ज़ुबाँ समझे
    नज़र की गुफ़्तगू समझे न जज़बों का बयाँ समझे
    उसी के सामने उसकी शिक़ायत का इरादा है
    किसी पत्थर की मूरत से …

    मुहब्बत बेरुख़ी से और भड़केगी वो क्या जाने
    तबीयत इस अदा पे और फड़केगी वो क्या जाने
    वो क्या जाने कि अपना किस क़यामत का इरादा है
    किसी पत्थर की मूरत से …

    सुना है हर जवाँ पत्थर के दिल में आग होती है
    मगर जब तक न छेड़ो, शर्म के पर्दे में सोती है
    ये सोचा है की दिल की बात उसके रूबरू कह दे
    नतीजा कुच भी निकले आज अपनी आरज़ू कह दे
    हर इक बेजाँ तक़ल्लुफ़ से बग़ावत का इरादा है
    किसी पत्थर की मूरत से …

    क्या मिलिए ऐसे लोगों से

    क्या मिलिए ऐसे लोगों से, जिनकी फितरत छुपी रहे
    नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे।

    खुद से भी जो खुद को छुपाए, क्या उनसे पहचान करें
    क्या उनके दामन से लिपटें, क्या उनका अरमान करें
    जिनकी आधी नीयत उभरे, आधी नीयत छुपी रहे
    नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे।

    दिलदारी का ढोंग रचाकर, जाल बिछाएं बातों का
    जीते-जी का रिश्ता कहकर सुख ढूंढे कुछ रातों का
    रूह की हसरत लब पर आए, जिस्म की हसरत छुपी रहे
    नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे।

    जिनके जुल्म से दुखी है जनता हर बस्ती हर गाँव में
    दया धरम की बात करें वो, बैठ के सजी सभाओं में
    दान का चर्चा घर-घर पहुंचे, लूट की दौलत छुपी रहे
    नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे।

    देखें इन नकली चेहरों की कब तक जय-जयकार चले
    उजले कपड़ों की तह में, कब तक काला संसार चले
    कब तक लोगों की नजरों से, छुपी हकीकत चुपी रहे
    नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे।

    क्या मिलिए ऎसे लोगों से, जिनकी फितरत छुपी रहे
    नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे।

    गंगा तेरा पानी अमृत

    गंगा तेरा पानी अमृत झर-झर बहता जाए
    युग-युग से इस देश की धरती तुझसे जीवन पाए
    गंगा तेरा पानी…

    दूर हिमालय से तू आई गीत सुहाने गाती
    बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत सुख-संदेश सुनाती
    तेरी चाँदी जैसी धारा मीलों तक लहराए
    गंगा तेरा पानी…

    कितने सूरज उभरे-डूबे गंगा तेरे द्वारे
    युगों-युगों की कथा सुनाएँ तेरे बहते धारे
    तुझको छोड़ के भारत का इतिहास लिखा न जाए
    गंगा तेरा पानी…

    इस धरती का दुख-सुख तूने अपने बीच समोया
    जब-जब देश ग़ुलाम हुआ है तेरा पानी रोया
    जब-जब हम आज़ाद हुए हैं तेरे तट मुस्काए
    गंगा तेरा पानी…

    खेतों-खेतों तुझसे जागी धरती पर हरियाली
    फ़सलें तेरा राग अलापें झूमे बाली-बाली
    तेरा पानी पी कर मिट्टी सोने में ढल जाए
    गंगा तेरा पानी …

    तेरे दान की दौलत ऊँचे खलिहानों में ढलती
    ख़ुशियों के मेले लगते मेहनत की डाली फलती
    लहक-लहक कर धूम मचाते तेरी गोद में जाए
    गंगा तेरा पानी …

    ग़ैरों पे करम, अपनों पे सितम

    ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम, ऐ जान-ए-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
    रहने दे अभी थोड़ा सा धरम, ऐ जान-ए-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
    ये ज़ुल्म न कर
    ग़ैरों पे करम …

    ग़ैरों के थिरकते शानों पर, ये हाथ गँवारा कैसे करें
    हर बात गंवारा है लेकिन, ये बात गंवारा कैसे करें
    ये बात गंवारा कैसे करें
    मर जाएंगे हम, मिट जाएंगे हम
    ऐ जान-ए-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर, ये ज़ुल्म न कर
    ग़ैरों पे करम …

    हम भी थे तेरे मंज़ूर-ए-नज़र, दिल चाहा तो अब इक़रार न कर
    सौ तीर चला सीने पे मगर, बेगानों से मिलकर वार न कर
    बेगानों से मिलकर वार न कर
    बेमौत कहीं मर जाएं न हम
    ऐ जान-ए-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर, ये ज़ुल्म न कर
    ग़ैरों पे करम …

    हम चाहनेवाले हैं तेरे, यूँ हमको जलाना ठीक नहीं
    मह्फ़िल में तमाशा बन जाएं, इस दर्जा सताना ठीक नहीं
    इस दर्जा सताना ठीक नहीं
    ऐ जान-ए-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर, ये ज़ुल्म न कर
    ग़ैरों पे करम …

    चलो इक बार फिर से

    चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों ।

    न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की,
    न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत अन्दाज़ नज़रों से ।
    न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से,
    न ज़ाहिर हो तुम्हारी कशमकश का राज़ नज़रों से ॥

    तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशक़दमी से,
    मुझे भी लोग कहते हैं ये जलवे पराए हैं ।
    मेरे हमराह भी रुसवाइयाँ हैं मेरे माज़ी की,
    तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं ॥

    तारुफ़ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर,
    ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा ।
    वो अफ़साना जिसे अन्जाम तक लाना न हो मुमकिन,
    उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा ॥

    चांद मद्धम है

    चांद मद्धम है आस्माँ चुप है
    नींद की गोद में जहाँ चुप है

    दूर वादी में दूधिया बादल,झुक के परबत को प्यार करते हैं
    दिल में नाकाम हसरतें लेकर,हम तेरा इंतज़ार करते हैं

    इन बहारों के साए में आ जा,फिर मोहब्बत जवाँ रहे न रहे
    ज़िन्दगी तेरे ना-मुरादों पर,कल तलक मेहरबाँ रहे न रहे

    रोज़ की तरह आज भी तारे,सुबह की गर्द में न खो जाएँ
    आ तेरे गम़ में जागती आँखें,कम से कम एक रात सो जाएँ

    चाँद मद्धम है आस्माँ चुप है
    नींद की गोद में जहाँ चुप है

    छू लेने दो नाज़ुक होठों को

    छू लेने दो नाज़ुक होठों को
    कुछ और नहीं हैं जाम हैं ये
    क़ुदरत ने जो हमको बख़्शा है
    वो सबसे हँसीं ईनाम हैं ये

    शरमा के न यूँ ही खो देना
    रंगीन जवानी की घड़ियाँ
    बेताब धड़कते सीनों का
    अरमान भरा पैगाम है ये, छू लेने दो …

    अच्छों को बुरा साबित करना
    दुनिया की पुरानी आदत है
    इस मय को मुबारक चीज़ समझ
    माना की बहुत बदनाम है ये, छू लेने दो …

    जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग

    जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग
    एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग

    याद रहता है किसे गुज़रे ज़माने का चलन
    सर्द पड़ जाती है चाहत हार जाती है लगन

    अब मौहब्बत भी है क्या एक तिजारत के सिवा
    हम ही नादान थे जो ओढ़ा बीती यादों का कफ़न
    वरना जीने के लिए सब कुछ भुला लेते हैं लोग

    जाने वो क्या लोग थे जिनको वफ़ा का पास था
    दूसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी यह अहसास था

    अब हैं पत्थर केसनम जिनको एहसास न ग़म
    वो ज़माना अब कहाँ जो अहले दिल को रास था
    अब तो मतलब के लिए नाम-ए-वफ़ा लेते हैं लोग

    जाएँ तो जाएँ कहाँ

    जाएँ तो जाएँ कहाँ
    समझेगा कौन यहाँ दर्द भरे दिल की जुबाँ
    जाएँ तो जाएँ कहाँ

    मायूसियों का मजमा है जी में
    क्या रह गया है इस ज़िन्दगी में
    रुह में ग़म दिल में धुआँ
    जाएँ तो जाएँ कहाँ

    उनका भी ग़म है अपना भी ग़म है
    अब दिल के बचने की उम्मीद कम है
    एक किश्ती सौ तूफ़ाँ
    जाएँ तो जाएँ कहाँ

    जाने वो कैसे लोग थे जिनके

    जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्यार को प्यार मिला?
    हमने तो जब कलियाँ मांगीं, काँटों का हार मिला ॥

    खुशियों की मंज़िल ढूंढी तो ग़म की गर्द मिली
    चाहत के नग़में चाहे तो आहें सर्द मिलीं
    दिल के बोझ को दूना कर गया, जो ग़म्ख़्वार मिला

    बिछड़ गया हर साथी दे कर, पल-दो-पल का साथ
    किसको फ़ुरसत है जो थामे, दीवानों का हाथ
    हम को अपना साया तक अक्सर बेज़ार मिला

    इसको ही जीना कहते हैं तो यूँ ही जी लेंगे
    उफ़ न करेंगे, लब सीलेंगे, आँसू पी लेंगे
    ग़म से अब घबराना कैसा, ग़म सौ बार मिला

    जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला?

    जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ

    जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ
    तेरे दिल को जो लुभाए वह सदा कहाँ से लाऊँ

    मैं वो फूल हूँ कि जिसको गया हर कोई मसल के
    मेरी उम्र बह गई है मेरे आँसुओं में ढल के
    जो बहार बन के बरसे वह घटा कहाँ से लाऊँ

    तुझे और की तमन्ना, मुझे तेरी आरजू है
    तेरे दिल में ग़म ही ग़म है मेरे दिल में तू ही तू है
    जो दिलों को चैन दे दे वह दवा कहाँ से लाऊँ

    मेरी बेबसी है ज़ाहिर मेरी आहे बेअसर से
    कभी मौत भी जो मांगी तो न पाई उसके दर से
    जो मुराद ले के आए वह दुआ कहाँ से लाऊँ

    जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ

    जीवन के सफ़र में राही

    जीवन के सफ़र में राही, मिलते हैं बिछड़ जाने को
    और दे जाते हैं यादें, तनहाई में तड़पाने को
    जीवन के सफ़र…

    ये रूप की दौलत वाले, कब सुनते हैं दिल के नाले
    तक़दीर न बस में डाले, इनके किसी दीवाने को
    जीवन के सफ़र…

    जो इनकी नज़र से खेले, दुख पाए मुसीबत झेले
    फिरते हैं ये सब अलबेले, दिल लेके मुकर जाने को
    जीवन के सफ़र…

    दिल लेके दगा देते हैं, इक रोग लगा देते हैं
    हँस हँस के जला देते हैं, ये हुस्न के परवाने को
    जीवन के सफ़र…

    अब साथ न गुज़रेंगे हम, लेकिन ये फ़िज़ा रातों की
    दोहराया करेगी हरदम, इस प्यार के अफ़साने को
    जीवन के सफ़र…

    जो बात तुझ में है, तेरी तस्वीर में नहीं

    जो बात तुझ में है, तेरी तस्वीर में नहीं

    रंगों में तेरा अक्स ढला, तू न ढल सकी
    साँसों की आग, जिस्म की ख़ुशबू न ढल सकी
    तुझ में जो लोच है, मेरी तहरीर में नहीं

    बेजान हुस्न में कहाँ गुफ़तार की अदा
    इन्कार की अदा है न इक़रार की अदा
    कोई लचक भी जुल्फ़े गिरहगीर र्में नहीं

    दुनिया में कोई चीज़ नहीं है तेरी तरह
    फिर एक बार सामने आ जा किसी तरह
    क्या एक और झलक, मेरी तक़दीर में नहीं?

    जो बात तुझ में है, तेरी तस्वीर में नहीं

    ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात-1

    ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी वह बरसात की रात
    एक अन्जान हसीना से मुलाक़ात की रात

    हाय! वह रेशमी जुल्फ़ों से बरसता पानी
    फूल-से गालों पे रुकने को तरसता पानी
    दिल में तूफ़ान उठाए हुए जज़्बात की रात
    ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी वह बरसात की रात

    डर के बिजली से अचानक वह लिपटना उसका
    और फिर शर्म से बल खाके सिमटना उसका
    कभी देखी न सुनी ऎसी तिलिस्मात की रात
    ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी बरसात की रात

    सुर्ख़ आँचल को दबा कर जो निचोड़ा उसने
    दिल पर जलता हुआ एक तीर-सा छोड़ा उसने
    आग पानी में लगाते हुए हालात की रात
    ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी वह बरसात की रात

    मेरे नग़मों में जो बसती है वो तस्वीर थी वो
    नौजवानी के हसीं ख़्वाब की ताबीर थी वो
    आसमानों से उतर आई थी जो रात की रात
    ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी वह बरसात की रात

    ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात-2

    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात
    एक अनजान हसीना से मुलाक़ात की रात
    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी …

    हाय वो रेशमी ज़ुल्फ़ों से बरसता पानी
    फूल से गालों पे रुकने को तरसता पानी
    दिल में तूफ़ान उठाते हुए
    दिल में तूफ़ान उठाते हुए हालात की रात
    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी …

    डर के बिजली से अचानक वो लिपटना उसका
    और फिर शर्म से बल खाके सिमटना उसका
    कभी देखी न सुनी ऐसी हो
    कभी देखी न सुनी ऐसी तिलिस्मात की रात
    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी …

    सुर्ख आँचल को दबाकर जो निचोड़ा उसने
    दिल पे जलता हुआ एक तीर-सा छोड़ा उसने
    आग पानी में लगाते हुए
    आग पानी में लगाते हुए जज़बात की रात
    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी …

    मेरे नग़्मों में जो बसती है वो तस्वीर थी वो
    नौजवानी के हसीं ख़्वाब की ताबीर थी वो
    आसमानों से उतर आई थी जो रात की रात
    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी …

    [लता:]
    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात
    एक अनजान मुसाफ़िर से मुलाक़ात की रात
    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी

    हाय जिस रात मेरे दिल ने धड़कना सीखा
    शोख़ जज़बात ने सीने में भड़कना सीखा
    मेरी तक़दीर में निखरी हुई, हो
    मेरी तक़दीर में निखरी हुई सरमात की रात
    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी

    दिल ने जब प्यार के रंगीन फ़साने छेड़े
    आँखों-आँखों ने वफ़ाओं के तराने छेड़े
    सोज़ में डूब गई आज वही
    सोज़ में डूब गई आज वही नग़्मात की रात
    ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी

    [रफ़ी]
    रूठनेवाली!
    रूठनेवाली मेरी बात पे मायूस ना हो
    बहके-बहके ख़्यालात से मायूस ना हो
    ख़त्म होगी ना कभी तेरे, हो
    ख़त्म होगी ना कभी तेरे मेरे साथ की रात
    ज़िंदगी भर नहीं …

    तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले

    तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले
    अपने पे भरोसा है तो ये दाँव लगा ले

    डरता है ज़माने की निगाहों से भला क्यों
    इन्साफ़ तेरे साथ है इल्ज़ाम उठा ले

    क्या ख़ाक वो जीना है जो अपने ही लिए हो
    ख़ुद मिट के किसी और को मिटने से बचा ले

    टूटे हुए पतवार हैं किश्ती के तो ग़म क्या
    हारी हुई बाहों को ही पतवार बना ले

    तंग आ चुके हैं कश-म-कश-ए-जिन्दगी से हम

    तंग आ चुके हैं कश-म-कश-ए-ज़िन्दगी से हम
    ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बेदिली से हम

    मायूसी-ए-म’अल-ए-मोहब्बत न पूछिए
    अपनों से पेश आए हैं बेग़ानगी से हम

    लो आज हमने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उम्मीद
    लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम

    उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले
    गो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-जिन्दगी से हम

    गर ज़िन्दगी में मिल गए फिर इत्तफ़ाक़ से
    पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम

    अल्लाह रे फ़रेब-ए-मसहीयत कि आज तक
    दुनिया के ज़ुल्म सहते रहे ख़ामोशी से हम

    हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत
    देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िन्दगी से हम

    (माल-ए-मोहब्बत=मोहब्बत का परिणाम)

    तुझको पुकारे मेरा प्यार

    आ.. जा.. आ.. जा.. आ.. जा..
    तुझको पुकारे मेरा प्यार

    आजा, मैं तो मिटा हूँ तेरी चाह में
    तुझको पुकारे मेरा प्यार

    दोनो जहाँ की भेंट चढ़ा दी मैने राह में तेरी
    अपने बदन की खाक़ मिला दी मैने आह में तेरी
    अब तो चली आ इस पार
    आजा मैं तो मिटा हूँ …

    इतने युगों से इतने दुखों को कोई सह ना सकेगा
    मेरी क़सम मुझे तू है किसीकी कोई कह ना सकेगा
    मुझसे है तेरा इक़रार
    आजा, मैं तो मिटा हूँ …

    आखिरी पल है आखिरी आहें तुझे ढूँढ रही हैं
    डूबती साँसें बुझती निगाहें तुझे ढूँढ रही हैं
    सामने आजा एक बार
    आजा, मैं तो मिटा हूँ …

    तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं

    तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं
    तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी

    अब अगर मेल नहीं है तो जुदाई भी नहीं
    बात तोड़ी भी नहीं तुमने निभाई भी नहीं
    ये सहारा भी बहुत है मेरे जीने के लिये
    तुम अगर मेरी नहीं हो तो पराई भी नहीं
    मेरे दिल को न सराहो तो कोई बात नहीं
    गैर के दिल को सराहोगी, तो मुश्किल होगी

    तुम हसीं हो, तुम्हें सब प्यार ही करते होंगे
    मैं तो मरता हूँ तो क्या और भी मरते होंगे
    सब की आँखों में इसी शौक़ का तूफ़ां होगा
    सब के सीने में यही दर्द उभरते होंगे
    मेरे ग़म में न कराहो तो कोई बात नहीं
    और के ग़म में कराहोगी तो मुश्किल होगी.

    फूल की तरह हँसो, सब की निगाहों में रहो
    अपनी मासूम जवानी की पनाहों में रहो
    मुझको वो दिन न दिखाना तुम्हें अपनी ही क़सम
    मैं तरसता रहूँ तुम गैर की बाहों में रहो
    तुम अगर मुझसे न निभाओ तो कोई बात नहीं
    किसी दुश्मन से निभाओगी तो मुश्किल होगी

    तुम अगर साथ देने का वादा करो

    तुम अगर साथ देने का वादा करो
    मैं यूँही मस्त नग़मे लुटाता रहूं
    तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो
    मैन तुम्हें देखकर गीत गाता रहूँ,
    तुम अगर…

    कितने जलवे फ़िज़ाओं में बिखरे मगर
    मैने अबतक किसीको पुकरा नहीं
    तुमको देखा तो नज़रें ये कहने लगीं
    हमको चेहरे से हटना गवारा नहीं
    तुम अगर मेरी नज़रों के आगे रहो
    मैन हर एक शह से नज़रें चुराता रहूँ,
    तुम अगर…

    मैने ख़्वाबों में बरसों तराशा जिसे
    तुम वही संग-ए-मरमर की तस्वीर हो
    तुम न समझो तुम्हारा मुक़द्दर हूँ मैं
    मैं समझता हूं तुम मेरी तक़दीर हो
    तुम अगर मुझको अपना समझने लगो
    मैं बहारों की महफ़िल सजाता रहूँ,
    तुम अगर…

    मैं अकेला बहुत देर चलता रहा
    अब सफ़र ज़िन्दगानी का कटता नहीं
    जब तलक कोई रंगीं सहारा ना हो
    वक़्त क़ाफ़िर जवानी का कटता नहीं
    तुम अगर हमक़दम बनके चलती रहो
    मैं ज़मीं पर सितारे बिछाता रहूँ,
    तुम अगर साथ देने का वादा करो …

    तुम चली जाओगी

    तुम चली जाओगी, परछाईयाँ रह जायेंगी
    कुछ न कुछ हुस्न की रानाइयां रह जायेंगी

    तुम तो इस झील के साहिल पे मिली हो मुझ से
    जब भी देखूंगा यहीं मुझ को नज़र आओगी

    याद मिटती है न मंज़र कोई मिट सकता है
    दूर जाकर भी तुम अपने को यहीं पाओगी

    खुल के रह जायेगी झोंकों में बदन की खुश्बू
    ज़ुल्फ़ का अक्स घटाओं में रहेगा सदियों

    फूल चुपके से चुरा लेंगे लबों की सुर्खी
    यह जवान हुस्न फ़िज़ाओं में रहेगा सदियों

    इस धड़कती हुई शादाब-ओ-हसीं वादी में
    यह न समझो कि ज़रा देर का किस्सा हो तुम

    अब हमेशा के लिए मेरे मुकद्दर की तरह
    इन नजारों के मुकद्दर का भी हिस्सा हो तुम

    तुम चली जाओगी परछाईयाँ रह जायेंगी
    कुछ न कुछ हुस्न की रानाईयां रह जायेंगी

    तुम न जाने किस जहाँ में खो गए

    तुम न जाने किस जहाँ में खो गए
    हम भरी दुनिया में तनहा हो गए

    मौत भी आती नहीं, आस भी जाती नहीं
    दिल को यह क्या हो गया, कोई शैय भाती नहीं
    लूट कर मेरा जहाँ, छुप गए हो तुम कहाँ

    एक जाँ और लाख ग़म, घुट के रह जाए न दम
    आओ तुम को देख लें, डूबती नज़रों से हम
    लूट कर मेरा जहाँ, छुप गए हो तुम कहाँ

    तुम न जाने किस जहाँ में खो गए
    हम भरी दुनिया में तनहा हो गए

    तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको

    सुधा:
    तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको
    मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है

    मेरे दिल की मेरे जज़बात की कीमत क्या है
    उलझे-उलझे से ख्यालात की कीमत क्या है
    मैंने क्यूं प्यार किया तुमने न क्यूं प्यार किया
    इन परेशान सवालात कि कीमत क्या है
    तुम जो ये भी न बताओ तो ये हक़ है तुमको
    मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है
    तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको

    मुकेश:
    ज़िन्दगी सिर्फ़ मुहब्बत नहीं कुछ और भी है
    ज़ुल्फ़-ओ-रुख़सार की जन्नत नहीं कुछ और भी है
    भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनिया में
    इश्क़ ही एक हक़ीकत नहीं कुछ और भी है
    तुम अगर आँख चुराओ तो ये हक़ है तुमको
    मैंने तुमसे ही नहीं सबसे मुहब्बत की है
    तुम अगर आँख चुराओ तो ये हक़ है तुमको

    सुधा:
    तुमको दुनिया के ग़म-ओ-दर्द से फ़ुरसत ना सही
    सबसे उलफ़त सही मुझसे ही मुहब्बत ना सही
    मैं तुम्हारी हूँ यही मेरे लिये क्या कम है
    तुम मेरे होके रहो ये मेरी क़िस्मत ना सही
    और भी दिल को जलाओ ये हक़ है तुमको
    मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है
    तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको

    तुम्हारी नज़र क्यों खफ़ा हो गई

    तुम्हारी नज़र क्यों खफ़ा हो गई
    खता बख्श दो गर खता हो गई
    हमारा इरादा तो कुछ भी न था
    तुम्हारी खता खुद सज़ा हो गई
    तुम्हारी …

    सज़ा ही सही आज कुछ तो मिला है
    सज़ा में भी इक प्यार का सिलसिला है
    सज़ा ही सही आज कुछ तो मिला है
    सज़ा में भी इक प्यार का सिलसिला है
    मोहब्बत का कुछ भी अन्जाम हो
    मुलाक़ात ही इल्तजा हो गई
    तुम्हारी …

    मुलाक़ात पे इतने मगरूर क्यों हो
    हमारी खुशामद पे मजबूर क्यों हो
    मुलाक़ात पे इतने मगरूर क्यों हो
    हमारी खुशामद पे मजबूर क्यों हो
    मनाने की आदत कहां पड़ गई
    खताओं की तालीम क्या हो गई
    तुम्हारी …

    सताते न हम तो मनाते ही कैसे
    तुम्हें अपने नज़दीक लाते ही कैसे
    सताते न हम तो मनाते ही कैसे
    तुम्हें अपने नज़दीक लाते ही कैसे
    किसी दिन की चाहत अमानत ये थी
    वो आज दिल की आवाज़ हो गई
    तुम्हारी …

    तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती

    तुम्हारी मस्त नज़र गर इधर नहीं होती
    नशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती

    तुम्हीं को देखने की दिल में आरज़ूएँ हैं
    तुम्हारे आगे ही और ऊँची नज़र नही होती

    ख़फ़ा न होना अगर बढ़ के थाम लूँ दामन
    ये दिलफ़रेब ख़ता जान कर नहीं होती

    तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है
    फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नहीं होती

    तू हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा

    तू हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा
    इन्सान की औलाद है इन्सान बनेग

    कुदरत ने तो बनाई थी एक ही दुनिया
    हमने उसे हिन्दू और मुसलमान बनाया
    तू सबके लिये अमन का पैगाम बनेगा
    इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा

    ये दिन ये ईमान धरम बेचने वाले
    धन-दौलत के भूखे वतन बेचने वाले
    तू इनके लिये मौत का ऐलान बनेगा
    इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा

    तेरा ख़याल दिल से मिटाया नहीं अभी

    तेरा ख़याल दिल से मिटाया नहीं अभी
    बेदर्द मैं ने तुझ को भुलाया नहीं अभी

    कल तूने मुस्कुरा के जलाया था ख़ुद जिसे
    सीने का वो चराग़ बुझाया नहीं अभी

    गदर्न को आज भी तेरे बाहों की याद है
    चौखट से तेरी सर को उठाया नहीं अभी

    बेहोश होके जल्द तुझे होश आ गया
    मैं बदनसीब होश में आया नहीं अभी

    तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई

    तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई
    यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई
    जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना

    देखो अभी खोना नहीं, कभी जुदा होना नहीं
    हरदम यूँ ही मिले रहेंगे दो नैन
    वादा रहा ये इस शाम का
    जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना

    वादे गये बातें गईं, जागी जागी रातें गईं
    चाह जिसे मिला नहीं, तो भी कोई गिला नहीं
    अपना तो क्या जिये मरे चाहे कुछ हो
    तुझको तो जीना रास आ गया
    जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना

    तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती

    तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती नज़ारे हम क्या देखें
    तुझे मिलके भी प्यास नहीं घटती नज़ारे हम क्या देखें

    पिघले बदन तेरे तपती निगाहों से
    शोलों की आँच आए बर्फ़ीली राहों से
    लगे कदमों से आग लिपटती नज़ारे हम क्या देखें

    रंगों की बरखा है खुशबू का साथ है
    किसको पता है अब दिन है की रात है
    लगे दुनिया भी आज सिमटती नज़ारे हम क्या देखें

    पलकों पे फैला तेरी पलकों का साया है
    चेहरे ने तेरे मेरा चेहरा छुपाया है
    तेरे जलवों की धुँध नहीं छँटती नज़ारे हम क्या देखें

    तेरे दर पे आया हूँ कुछ कर के जाऊँगा

    तेरे दर पे आया हूँ कुछ कर के जाऊँगा
    झोली भर के जाऊँगा या मर के जाऊँगा
    मैं तेरे दर पे आया हूँ …

    तू सब कुछ जाने है हर ग़म पहचाने है
    जो दिल की उलझन है सब तुझ पे रौशन है
    घायल परवाना हूँ वहशी दीवाना हूँ
    तेरी शोहरत सुन सुन के उम्मीदें लाया हूँ
    तेरे दर पे
    मैं तेरे दर पे आया हूँ …

    दिल ग़म से हैराँ है मेरी दुनिया वीराँ है
    नज़रों की प्यास बुझा मेरा बिछड़ा यार मिला
    अब या ग़म छूटेगा वरना दम टूटेगा
    अब जीना मुशकिल है फ़रियादें लाया हूँ
    तेरे दर पे
    मैं तेरे दर पे आया हूँ …

    तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूँ

    तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूँ
    और दुआ देके परेशान सी हो जाती हूँ

    मेरे मुन्ने मेरे गुलज़ार के नन्हे पौधे
    तुझको हालत की आँधी से बचाने के लिये
    आज मैं प्यार के आँचल में छुपा लेती हूँ
    कल ये कमज़ोर सहारा भी न हासिल होगा
    कल तुझे काँटों भरी राहों पे चलना होगा
    ज़िंदगानी की कड़ी धूप में जलना होगा
    तेरे बचपन को जवानी …

    तेरे माथे पे शराफ़त की कोई मोहर नहीं
    चंद होते हैं मुहब्बत के सुकून ही क्या हैं
    जैसे माओं की मुहब्बत का कोई मोल नहीं
    मेरे मासूम फ़रिश्ते तू अभी क्या जाने
    तुझको किस-किसकी गुनाहों की सज़ा मिलनी है
    दीन और धर्म के मारे हुए इंसानों की
    जो नज़र मिलनी है तुझको वो खफ़ा मिलनी है
    तेरे बचपन को जवानी …

    बेड़ियाँ लेके लपकता हुआ कानून का हाथ
    तेरे माँ-बाप से जब तुझको मिली ये सौगात
    कौन लाएगा तेरे वास्ते खुशियों की बारात
    मेरे बच्चे तेरे अंजाम से जी डरता है
    तेरी दुश्मन ही न साबित हो जवानी तेरी
    काँप जाती है जिसे सोचके ममता मेरी
    उसी अंजाम को पहुंचे न कहानी तेरी
    तेरे बचपन को जवानी …

    तोरा मन दर्पण कहलाये

    प्राणी अपने प्रभु से पूछे किस विधि पाऊँ तोहे
    प्रभु कहे तु मन को पा ले, पा जायेगा मोहे

    तोरा मन दर्पण कहलाये
    तोरा मन दर्पण कहलाये
    भले बुरे सारे कर्मों को, देखे और दिखाये
    तोरा मन दर्पण कहलाये
    तोरा मन दर्पण कहलाये

    मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय
    मन उजियारा जब जब फैले, जग उजियारा होय
    इस उजले दर्पण पे प्राणी, धूल न जमने पाये
    तोरा मन दर्पण कहलाये
    तोरा मन दर्पण कहलाये

    सुख की कलियाँ, दुख के कांटे, मन सबका आधार
    मन से कोई बात छुपे ना, मन के नैन हज़ार
    जग से चाहे भाग लो कोई, मन से भाग न पाये
    तोरा मन दर्पण कहलाये
    तोरा मन दर्पण कहलाये

    तन की दौलत ढलती छाया मन का धन अनमोल
    तन के कारण मन के धन को मत माटी में रौंद
    मन की क़दर भुलानेवाला वीराँ जनम गवाये
    तोरा मन दर्पण कहलाये
    तोरा मन दर्पण कहलाये

    दिल कहे रुक जा रे रुक जा, यहीं पे कहीं

    दिल कहे रुक जा रे रुक जा, यहीं पे कहीं
    जो बात
    जो बात इस जगह, है कहीं पे नहीं

    पर्बत ऊपर खिड़की खूले, झाँके सुन्दर भोर,
    चले पवन सुहानी
    नदियों के ये राग रसीले, झरनों का ये शोर
    बहे झर झर पानी
    मद भरा, मद भरा समाँ, बन धुला-धुला
    हर कली सुख पली यहाँ, रस घुला-घुला
    तो दिल कहे रुक जा हे रुक जा…

    ऊँचे-ऊँचे पेड़ घनेरे, छनती जिनसे धूप
    खड़ी बाँह पसारे
    नीली नीली झील में झलके नील गगन का रूप
    बहे रंग के धारे
    डाली-डाली चिड़ियों कि सदा, सुर मिला-मिला
    चम्पाई चम्पाई फ़िजा, दिन खिला-खिला
    तो दिल कहे रुक जा रे रुक…

    परियों के ये जमघट, जिनके फूलों जैसे गाल
    सब शोख हथेली
    इनमें है वो अल्हड़ जिसकी हिरणी जैसी चाल
    बडी छैल-छबीली
    मनचली-मनचली अदा, सब जवाँ जवाँ
    हर घड़ी चढ़ रहा नशा, सुध रही कहाँ
    तो दिल कहे रुक जा रे रुक जा…

    दिल जो न कह सका वही राज़-ए-दिल

    दिल जो ना कह सका
    वोही राज़-ए-दिल कहने की रात आई
    दिल जो ना कह सका

    तौबा ये किस ने अंजुमन सजा के
    टुकड़े किये हैं गुंच-ए-वफ़ा के
    टुकड़े किये हैं गुंच-ए-वफ़ा के
    उछालो गुलों के टुकड़े
    के रंगीं फ़िज़ाओं में रहने की रात आई
    दिल जो ना कह सका

    चलिये मुबारक ये जश्न दोस्ती का
    दामन तो थामा आप ने किसी का
    दामन तो थामा आप ने किसी का
    हमें तो खुशी यही है
    तुम्हें भी किसी को अपना कहने की रात आई
    दिल जो ना कह सका

    सागर उठाओ दिल का किस को ग़म है
    आज दिल की क़ीमत जाम से भी कम है
    पियो चाहे खून-ए-दिल हो
    के पीते पिलाते ही रहने की रात आई
    दिल जो ना कह सका

    दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया

    दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया
    दुनिया की आँधियों से भला ये बुझेगा क्या

    साँसों की आँच पा के भड़कता रहेगा ये
    सीने में दिल के साथ धड़कता रहेगा ये
    धड़कता रहेगा ये
    वो नक़्श क्या हुआ जो मिटाये से मिट गया
    वो दर्द क्या हुआ जो दबाये से दब गया
    दिल में किसी के प्यार का …

    ये ज़िंदगी भी क्या है अमानत उन्हीं की है
    ये शायरी भी क्या है इनायत उन्हीं की है
    इनायत उन्हीं की है
    अब वो करम करें कि सितम उन का फ़ैसला
    हम ने तो दिल में प्यार का शोला जला लिया
    दिल में किसी के प्यार का …

    दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना

    दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना
    जहाँ नहीं चैना वहाँ नहीं रहना
    दुखी मन…

    दर्द हमारा कोई न जाने
    अपनी गरज के सब हैं दीवाने
    किसके आगे रोना रोएं
    देस पराया लोग बेगाने
    दुखी मन…

    लाख यहाँ झोली फैला ले
    कुछ नहीं देंगे इस जग वाले
    पत्थर के दिल मोम न होंगे
    चाहे जितना नीर बहाले
    दुखी मन…

    अपने लिये कब हैं ये मेले
    हम हैं हर इक मेले में अकेले
    क्या पाएगा उसमें रहकर
    जो दुनिया जीवन से खेले
    दुखी मन…

    दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें

    दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें
    तुमको न हो ख़याल तो हम क्या जवाब दें
    दुनिया करे सवाल …

    पूछे कोई कि दिल को कहाँ छोड़ आये हैं
    किस किस से अपना रिश्ता-ए-जाँ तोड़ आये हैं
    मुशकिल हो अर्ज़-ए-हाल तो हम क्या जवाब दें
    तुमको न हो ख़याल तो …

    पूछे कोई कि दर्द-ए-वफ़ा कौन दे गया
    रातों को जागने की सज़ा कौन दे गया
    कहने से हो मलाल तो हम क्या जवाब दें
    तुमको न हो ख़याल तो …

    देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना क़रीब से

    देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना क़रीब से ।
    चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से ।।

    कहने को दिल की बात जिन्हें ढूंढ़ते थे हम,
    महफ़िल में आ गए हैं वो अपने नसीब से ।

    नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीं का प्यार,
    क़ीमत नहीं चुकाई गई एक ग़रीब से ।

    तेरी वफ़ा की लाश पर ला मैं ही डाल दूँ,
    रेशम का यह कफ़न जो मिला है रक़ीब से ।

    नग़मा-ओ-शेर की सौगात किसे पेश करूँ

    नग़मा-ओ-शेर की सौगात किसे पेश करूँ
    ये छलकते हुए जज़बात किसे पेश करूँ

    शोख़ आँखों के उजालों को लुटाऊं किस पर
    मस्त ज़ुल्फ़ों की सियह रात किसे पेश करूँ

    गर्म सांसों में छिपे राज़ बताऊँ किसको
    नर्म होठों में दबी बात किसे पेश करूँ

    कोइ हमराज़ तो पाऊँ कोई हमदम तो मिले
    दिल की धड़कन के इशारत किसे पेश करूँ

    न तू ज़मीं के लिए है

    न तू ज़मीं के लिए है, न आसमाँ के लिए ।
    तेरा वुजूद है अब सिर्फ़, दास्ताँ के लिए ॥

    पलट के सू-ए-चमन देखने से क्या होगा,
    वो शाख ही न रही, जो थी आशियाँ के लिए ।

    ग़रज़-परस्त जहाँ में वफ़ा तलाश न कर
    यह शैय बनी थी किसी दूसरे जहाँ के लिए ।

    ना तो कारवाँ की तलाश है

    ना तो कारवाँ की तलाश है, ना तो हमसफ़र की तलाश है
    मेरे शौक़-ए-खाना खराब को, तेरी रहगुज़र की तलाश है

    मेरे नामुराद जुनून का है इलाज कोई तो मौत है
    जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है

    तेरा इश्क़ है मेरी आरज़ू, तेरा इश्क़ है मेरी आबरू
    दिल इश्क़ जिस्म इश्क़ है और जान इश्क़ है
    ईमान की जो पूछो तो ईमान इश्क़ है
    तेरा इश्क़ है मेरी आरज़ू, तेरा इश्क़ है मेरी आबरू,
    तेरा इश्क़ मैं कैसे छोड़ दूँ, मेरी उम्र भर की तलाश है

    इश्क़ इश्क़ तेरा इश्क़ इश्क़ …

    ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

    जाँसोज़ की हालत को जाँसोज़ ही समझेगा
    मैं शमा से कहता हूँ महफ़िल से नहीं कहता क्योंकि
    ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

    सहर तक सबका है अंजाम जल कर खाक हो जाना,
    भरी महफ़िल में कोई शम्मा या परवाना हो जाए क्योंकि
    ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

    वहशत-ए-दिल रस्म-ओ-दीदार से रोकी ना गई
    किसी खंजर, किसी तलवार से रोकी ना गई
    इश्क़ मजनू की वो आवाज़ है जिसके आगे
    कोई लैला किसी दीवार से रोकी ना गई, क्योंकि
    ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

    वो हँसके अगर माँगें तो हम जान भी देदें,
    हाँ ये जान तो क्या चीज़ है ईमान भी देदें क्योंकि
    ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

    नाज़-ओ-अंदाज़ से कहते हैं कि जीना होगा,
    ज़हर भी देते हैं तो कहते हैं कि पीना होगा
    जब मैं पीता हूँ तो कहतें है कि मरता भी नहीं,
    जब मैं मरता हूँ तो कहते हैं कि जीना होगा
    ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

    मज़हब-ए-इश्क़ की हर रस्म कड़ी होती है,
    हर कदम पर कोई दीवार खड़ी होती है
    इश्क़ आज़ाद है, हिंदू ना मुसलमान है इश्क़,
    आप ही धमर् है और आप ही ईमान है इश्क़
    जिससे आगाह नही शेख-ओ-बरहामन दोनो,
    उस हक़ीक़त का गरजता हुआ ऐलान है इश्क़

    इश्क़ ना पुच्छे दीन धरम नू, इश्क़ ना पुच्छे जाताँ
    इश्क़ दे हाथों गरम लहू विच, डुबियाँ लख बराताँ
    के … ये इश्क़
    ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

    राह उल्फ़त की कठिन है इसे आसाँ ना समझ
    ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

    बहुत कठिन है डगर पनघट की
    अब क्या भर लाऊँ मै जमुना से मटकी
    मै जो चली जल जमुना भरन को
    देखो सखी जी मै जो चली जल जमुना भरन को
    नंदकिशोर मोहे रोके झाड़ों तो
    क्या भर लाऊँ मै जमुना से मटकी
    अब लाज राखो मोरे घूँघट पट की

    जब जब कृष्ण की बंसी बाजी, निकली राधा सज के
    जान अजान का मान भुला के, लोक लाज को तज के
    जनक दुलारी बन बन डोली, पहन के प्रेम की माला
    दशर्न जल की प्यासी मीरा पी गई विष का प्याला
    और फिर अरज करी के
    लाज राखो राखो राखो, लाज राखो देखो देखो,
    लाज राखो राखो, हे हे हे,
    लाज राखो राखो, हे हे हे,
    लाज राखो राखो
    ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

    अल्लाह रसूल का फ़रमान इश्क़ है
    याने हफ़ीज़ इश्क़ है, क़ुरान इश्क़ है
    गौतम का और मसीह का अरमान इश्क़ है
    ये कायनात जिस्म है और जान इश्क़ है
    इश्क़ सरमद, इश्क़ ही मंसूर है
    इश्क़ मूसा, इश्क़ कोह-ए-नूर है
    ख़ाक़ को बुत, और बुत को देवता करता है इश्क़
    इन्तहा ये है के बंदे को ख़ुदा करता है इश्क़

    हाँ इश्क़ इश्क़ तेरा इश्क़ इश्क़
    तेरा इश्क़ इश्क़, इश्क़ इश्क़ …

    न मुँह छुपा के जियो

    न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो
    ग़मों का दौर भी आये तो मुस्कुरा के जियो
    न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो

    घटा में छुपके सितारे फ़ना नहीं होते
    अँधेरी रात में दिये जला के चलो
    न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो

    ना जाने कौन-सा पल मौत की अमानत हो
    हर एक पल की खुशी को गले लगा के जियो
    न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो

    ये ज़िंदगी किसी मंज़िल पे रुक नहीं सकती
    हर इक मक़ाम पे क़दम बढ़ा के चलो
    न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो

    निगाहें मिलाने को जी चाहता है

    राज़ की बात है
    मेहफ़िल में कहें या न कहें
    बस गया है कोई इस दिल में कहें या न कहें
    कहें या न कहें

    निगाहें मिलाने को जी चाहता है
    दिल-ओ-जाँ लुटाने को जी चाहता है

    वो तोहमत जिसे इश्क़ कहती है दुनिया
    वो तोहमत उठाने को जी चाहता है

    किसी के मनाने में लज़्ज़त वो पायी
    कि फिर रूठ जाने को जी चाहता है

    वो जलवा जो ओझल भी है सामने भी
    वो जलवा चुराने को जी चाहता है

    ओ…
    जिस घड़ी मेरी निगाहों को तेरी दीद हुई
    वो घड़ी मेरे लिये ऐश की तमहीद हुई
    जब कभी मैंने तेरा चाँद सा चेहरा देखा
    ईद हो या कि न हो मेरे लिये ईद हुई
    वो जलवा जो ओझल भी है सामने भी
    वो जलवा चुराने को जी चाहता है

    मुलाक़ात का कोई पैग़ाम दीजिये की
    छुप छुपके आने को जी चाहता है
    और आके न जाने को जी चाहता है
    और आके न जाने को जी चाहता है
    निगाहें मिलाने को जी चाहता है

    नीले गगन के तले

    हे….,
    नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले

    ऐसे ही जग में, आती हैं सुबहें
    ऐसे ही शाम ढले
    हे….,
    नीले गगन……

    शबनम के मोती, फूलों पे बिखरे
    दोनों की आस फले
    हे….,
    नीले गगन……

    बलखाती बेलें, मस्ती में खेलें
    पेड़ों से मिलके गले
    हे….,
    नीले गगन……

    नदिया का पानी, दरिया से मिलके
    सागर किस ओर चले
    हे….,
    नीले गगन……

    प्यार कर लिया तो क्या प्यार है खता नहीं

    प्यार कर लिया तो क्या प्यार है खता नहीं
    प्यार कर लिया तो क्या प्यार है खता नहीं
    तेरी मेरी उम्र में किसने ये किया नहीं
    प्यार कर लिया तो क्या प्यार है खता नहीं

    तेरे होंठ मेरे होंठ सिल गये तो क्या हुआ
    तेरे होंठ मेरे होंठ सिल गये तो क्या हुआ
    दिल की तरह जिस्म भी मिल गये तो क्या हुआ
    दिल की तरह जिस्म भी मिल गये तो क्या हुआ
    इससे पहले क्या कभी ये सितम हुआ नहीं
    प्यार कर लिया तो क्या प्यार है खता नहीं

    मैं भी होशमंद हूँ तू भी होशमंद है
    उस तरह जियेंगे हम जिस तरह पसंद है
    मैं भी होशमंद हूँ तू भी होशमंद है
    उस तरह जियेंगे हम जिस तरह पसंद है
    उनकी बात क्यूँ सुनें जिनसे वास्ता नहीं
    प्यार कर लिया तो क्या प्यार है खता नहीं

    रस्म क्या रिवाज़ क्या धर्म क्या समाज क्या
    दुश्मनों का खौफ़ क्यूँ दोस्तों की लाज क्या
    रस्म क्या रिवाज़ क्या धर्म क्या समाज क्या
    दुश्मनों का खौफ़ क्यूँ दोस्तों की लाज क्या
    ये वो शोख है कि जिससे कोई भी बचा नहीं

    प्यार कर लिया तो क्या प्यार है खता नहीं
    प्यार कर लिया तो क्या प्यार है खता नहीं
    तेरी मेरी उम्र में किसने ये किया नहीं
    प्यार कर लिया तो क्या प्यार है खता नहीं

    बच्चे मन के सच्चे

    बच्चे मन के सच्चे सारी जग के आँख के तारे
    ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे

    खुद रूठे, खुद मन जाये,
    फिर हमजोली बन जाये
    झगड़ा जिसके साथ करें,
    अगले ही पल फिर बात करें
    इनकी किसी से बैर नहीं,
    इनके लिये कोई ग़ैर नहीं
    इनका भोलापन मिलता है सबको बाँह पसारे
    बच्चे मन के सच्चे …

    इन्ससान जब तक बच्चा है,
    तब तक समझ का कच्चा है
    ज्यों ज्यों उसकी उमर बढ़े,
    मन पर झूठ क मैल चढ़े
    क्रोध बढ़े, नफ़रत घेरे,
    लालच की आदत घेरे
    बचपन इन पापों से हटकर अपनी उमर गुज़ारे
    बच्चे मन के सच्चे …

    तन कोमल मन सुन्दर
    हैं बच्चे बड़ों से बेहतर
    इनमें छूत और छात नहीं,
    झूठी जात और पात नहीं
    भाषा की तक़रार नहीं,
    मज़हब की दीवार नहीं
    इनकी नज़रों में एक हैं, मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे
    बच्चे मन के सच्चे …

    बरबाद मुहब्बत की दुआ साथ लिए जा

    बरबाद मौहब्बत की दुआ साथ लिए जा
    टूटा हुआ इक़रार-ए-वफ़ा साथ लिए जा

    एक दिल था जो पहले ही तुझे सौंप दिया था
    यह जान भी, ऎ जान-ए-अदा! साथ लिए जा

    तपती हुई राहों से तुझे आँच न पहुँचे
    दीवानों के अश्कों की घटा साथ लिए जा

    शामिल है मेरा ख़ून-ए-जिगर तेरी हिना में
    यह कम हो तो अब ख़ून-ए-वफ़ा साथ लिए जा

    हम जुर्म-ए-मौहब्बत की सज़ा पाएंगे तन्हा
    जो तुझ से हुई हो वह ख़ता साथ लिए जा

    मतलब निकल है तो, पहचानते नहीं

    मतलब निकल गया है तो, पहचानते नहीं
    यूँ जा रहे हैं जैसे हमें, जानते नहीं

    अपनी गरज़ थी जब तो लिपटना क़बूल था
    बाहों के दायरे में सिमटना क़बूल था
    अब हम मना रहे हैं मगर मानते नहीं

    हमने तुम्हें पसंद किया, क्या बुरा किया
    रुतबा ही कुछ बलन्द किया क्या बुरा किया
    हर इक गली की ख़ाक तो हम छानते नहीं

    मुँह फेर कर न जाओ हमारे क़रीब से
    मिलता है कोई चाहने वाला नसीब से
    इस तरह आशिक़ों पे कमाँ तानते नहीं

    माँग के साथ तुम्हारा

    माँग के साथ तुम्हारा मैंने, मांग लिया संसार
    माँग के साथ तुम्हारा मैंने, मांग लिया संसार
    माँग के साथ तुम्हारा

    दिल कहे दिलदार मिला, हम कहें हमें प्यार मिला
    प्यार मिला हमें यार मिला, एक नया संसार मिला
    आस मिली अरमान मिला
    जीने का सामान मिला
    दोनो: मिल गया एक सहारा,
    माँग के साथ तुम्हारा …

    दिल जवां और रुत हंसीं, चल यूँही चल दें कहीं
    तू चाहे ले चल कहीं, तुझ पे है मुझको यकीं
    जान भी तू है दिल भी तू ही
    राह भी तू मंज़िल भी तू ही
    और तू ही आस का तारा, ओ ओ ओ ओ
    माँग के साथ तुम्हारा…

    मिलती है जिंदगी में मोहब्बत कभी कभी

    मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी-कभी
    होती है दिल्बरों की इनायत कभी-कभी

    शर्मा के मुँह न फेर नज़र के सवाल पर
    लाती है ऐसे मोड़ पर क़िस्मत कभी-कभी

    खुलते नहीं हैं रोज़ दरिचे बहार के
    आती है जान-ए-मन ये क़यामत कभी-कभी

    तनहा न कट सकेंगे जवानी के रास्ते
    पेश आएगी किसीकी ज़रूरत कभी-कभी

    फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में
    मिलती है पास आने की मुहलत कभी-कभी

    होती है दिलबरों की इनायत कभी-कभी
    मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी

    मेरा तुझ से है पहले का नाता कोई

    मेरा तुझ से है पहले का नाता कोई
    यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई
    जाने तू या जाने न
    माने तू या माने न

    धुआँ-धुआँ था वो समा
    यहाँ-वहाँ जाने कहाँ
    तू और मैं कहीं मिले थे पहले
    देखा तुझे तो दिल ने कहा
    जाने तू या जाने न
    माने तू या माने न

    तू भी रही मेरे लिए
    मैं भी रहा तेरे लिए
    पहले भी मैं तुझे बाहों में लेके
    झूमा किया और झूमा किया
    जाने तू या जाने न
    माने तू या माने न

    देखो अभी खोना नहीं
    कभी जुदा होना नहीं
    अब खेल में यूँही रहेंगे दोनों
    वादा रहा ये इस शाम का
    जाने तू या जाने न
    माने तू या माने न

    मेरे घर आई एक नन्ही परी

    मेरे घर आई एक नन्ही परी, एक नन्ही परी
    चाँदनी के हसीन रथ पे सवार
    मेरे घर आई एक नन्ही परी

    उसकी बातों में शहद जैसी मिठास
    उसकी सासों में इतर की महकास
    होंठ जैसे के भीगे-भीगे गुलाब
    गाल जैसे के बहके-बहके अनार
    मेरे घर आई एक नन्ही परी

    उसके आने से मेरे आंगन में
    खिल उठे फूल गुनगुनायी बहार
    देख कर उसको जी नहीं भरता
    चाहे देखूँ उसे हज़ारों बार
    चाहे देखूँ उसे हज़ारों बार
    मेरे घर आई एक नन्ही परी

    मैने पूछा उसे के कौन है तू
    हंसके बोली के मैं हूँ तेरा प्यार
    मैं तेरे दिल में थी हमेशा से
    घर में आई हूँ आज पहली बार
    मेरे घर आई एक नन्ही परी

    मेरे दिल में आज क्या है

    मेरे दिल में आज क्या है
    तू कहे तो मैं बता दूँ
    तेरी ज़ुल्फ़ फिर सवारूँ
    तेरी माँग फिर सजा दूँ
    मेरे दिल में …

    मुझे देवता बनाकर, तेरी चाहतों ने पूजा
    मुझे देवता बनाकर, तेरी चाहतों ने पूजा
    मेरा प्यार कह रहा है,
    मैं तुझे खुदा बना दूँ
    तेरी ज़ुल्फ़ फिर …

    कोई ढूँढ्ने भी आए, तो हमें ना ढूँढ़ पाए
    कोई ढूँढ्ने भी आए, तो हमें ना ढूँढ़ पाए
    तू मुझे कहीं छुपा दे,
    मैं तुझे कहीं छुपा दूँ
    तेरी ज़ुल्फ़ फिर …

    मेरे बाज़ुओं मे आकर, तेरा दर्द चैन पाए
    मेरे बाज़ुओं मे आकर, तेरा दर्द चैन पाए
    तेरे गेसुओं मे छुपकर,
    मैं जहाँ के ग़म भुला दूँ
    तेरी ज़ुल्फ़ फिर …

    मेरे भैया मेरे चँदा मेरे अनमोल रतन

    मेरे भैया मेरे चँदा
    मेरे अनमोल रतन
    तेरे बदले मैं ज़माने की
    कोई चीज़ न लूँ
    मेरे भैया मेरे चँदा
    मेरे अनमोल रतन
    तेरे बदले मैं ज़माने की
    कोई चीज़ न लूँ

    तेरी साँसों की कसम खाके, हवा चलती है
    तेरे चहरे की खलक पाके, बहार आती है
    एक पल भी मेरी नज़रों से तू जो ओझल हो
    हर तरफ़ मेरी नज़र तुझको पुकार आती है

    मेरे भैया मेरे चँदा
    मेरे अनमोल रतन
    तेरे बदले मैं ज़माने की
    कोई चीज़ न लूँ
    मेरे भैया मेरे चँदा
    मेरे अनमोल रतन
    तेरे बदले मैं ज़माने की
    कोई चीज़ न लूँ

    तेरे चहरे की महकती हुई लड़ियों के लिए
    अनगिनत फूल उम्मीदों के चुने हैं मैंने
    वो भी दिन आएं कि उन ख़्वाबों के ताबीर मिलें
    तेरे ख़ातिर जो हसीं ख़्वाब बुने हैं मैंने

    मेरे भैया मेरे चँदा
    मेरे अनमोल रतन
    तेरे बदले मैं ज़माने की
    कोई चीज़ न लूँ
    मेरे भैया मेरे चँदा
    मेरे अनमोल रतन
    तेरे बदले मैं ज़माने की
    कोई चीज़ न लूँ

    चंदा रे, मेरे भैया से कहना

    चंदा रे, मेरे भैया से कहना,
    ओ मेरे भैय्या से कहना, बहना याद करे
    ओ चँदा रे…

    क्या बतलाऊँ कैसा है वो
    बिलकुल तेरे जैसा है वो
    तू उसको पहचान ही लेगा
    देखेगा तो जान ही लेगा
    तू सारे सँसार में चमके
    हर बस्ती हर गाँव में दमके
    कहना अब घर वापस आ जा
    तू है घर का गहना
    बहना याद करे
    ओ चंदा रे…

    राखी के धागे सब लाए
    कहना अब न राह दिखाए
    माँ के नाम की कसमें देना
    भेंट मेरी की रसमें देना
    पूछना उस रूठे भाई से
    भूल हुई क्या माँ-जाई से
    बहन पराया धन है कहना
    उसने सदा नहीं रहना
    बहना याद करे
    ओ चंदा रे…

    मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से

    ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
    तुम को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही

    मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से

    बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी
    सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
    उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी

    मेरी महबूब पस-ए-पदर्आ-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा
    तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता
    मुदर्आ शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
    अपने तारीक मकानों को तो देखा होता

    मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया

    मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
    हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

    बरबादियों का सोग़ मनाना फ़ुजूल था
    बरबादियों का जश्न मनाता चला गया

    जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
    जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया

    ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
    मैं दिल को उस मुक़ाम पर लाता चला गया

    मैंने तुझे माँगा तुझे पाया है

    मैंने तुझे माँगा तुझे पाया है
    तूने मुझे माँगा मुझे पाया है
    आगे हमें जो भी मिले या ना मिले गिला नहीं

    छाँव घनी ही नहीं धूप कड़ी भी होती है राहों में
    ग़म हो कि ख़ुशियाँ हों हमको सभी लेना है बाँहों में
    यों दुखी हो के जीने वाले क्या ये तुझे पता नहीं
    मैने तुझे माँगा …

    ज़िद है तुम्हें तो लो लब पे न शिकवा कभी भी लाएँगे
    हँस के सहेंगे जो दर्द या ग़म ये जहाँ से पाएँगे
    तुझको जो बुरा लगे ऐसा भी किया नहीं
    मैने तुझे माँगा …

    मैं पल दो पल का शायर हूँ

    मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है ।
    पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है ॥

    मुझ से पहले कितने शायर आए और आ कर चले गए,
    कुछ आहें भर कर लौट गए, कुछ नग़में गा कर चले गए ।
    वे भी एक पल का क़िस्सा थे, मैं भी एक पल का क़िस्सा हूँ,
    कल तुम से जुदा हो जाऊंगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ ॥

    मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है ।
    पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है ॥

    कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले,
    मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले ।
    कल कोई मुझ को याद करे, क्यों कोई मुझ को याद करे
    मसरुफ़ ज़माना मेरे लिए, क्यों वक़्त अपना बरबाद करे ॥

    मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है ।
    पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है ॥

    मैं हर इक पल का शायर हूँ

    मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
    हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है

    रिश्तों का रूप बदलता है, बुनियादें खत्म नहीं होतीं
    ख़्वाबों और उमँगों की मियादें खत्म नहीं होतीं
    इक फूल में तेरा रूप बसा, इक फूल में मेरी जवानी है
    इक चेहरा तेरी निशानी है, इक चेहरा मेरी निशानी है

    मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
    हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है

    तुझको मुझको जीवन अम्रित अब इन हाथों से पीना है
    इनकी धड़कन में बसना है, इनकी साँसों में जीना है
    तू अपनी अदाएं बक्ष इन्हें, मैं अपनी वफ़ाएं देता हूँ
    जो अपने लिए सोचीं थी कभी, वो सारी दुआएं देता हूँ

    मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
    हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है

    ये कूचे ये नीलामघर

    ये कूचे ये नीलामघर दिलक़शी के
    ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के
    कहां हैं कहां हैं मुहाफ़िज़ ख़ुदी के
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    ये पुरपेंच गलियां ये बेख़्वाब बाज़ार
    ये गुमनाम राही ये सिक्कों की झंकार
    ये इस्मत के सौदे ये सौदों पे तकरार
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    तअफ्फुन से पुरनीम रौशन ये गलियां
    ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियां
    ये बिकती हुई खोखली रंगरलियां
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    वो उजले दरीचों में पायल की छनछन
    तऩफ्फ़ुस की उलझन पे तबले की धनधन
    ये बेरूह कमरों में खांसी की धनधन
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    ये गूंजे हुए कहकहे रास्तों पर
    ये चारों तरफ भीड़ सी खिड़कियों पर
    ये आवाज़ें खिंचते हुए आंचलों पर
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    ये फूलों के गजरे ये पीकों के छींटे
    ये बेबाक़ नज़रें ये गुस्ताख़ फ़िक़रे
    ये ढलके बदन और ये मदक़ूक़ चेहरे
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    ये भूखी निगाहें हसीनों की जानिब
    ये बढ़ते हुए हाथ सीनों की जानिब
    लपकते हुए पांव ज़ीनों की जानिब
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    यहां पीर भी आ चुके हैं जवां भी
    तनूमंद बेटे भी अब्बा मियां भी
    ये बीवी भी है और बहन भी है मां भी
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
    यशोदा की हमजिंस राधा की बेटी
    पयंबर की उम्मत ज़ुलेख़ा की बेटी
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    ज़रा मुल्क़ के रहबरों को बुलाओ
    ये कूचे ये गलियां ये मंज़र दिखाओ
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ को लाओ
    सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|

    ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं

    लता:
    ये दिल तुम बिन, कहीं लगता नहीं, हम क्या करें
    ये दिल तुम बिन, कहीं लगता नहीं, हम क्या करें
    तसव्वुर में कोई बसता नहीं, हम क्या करें
    तुम्ही कह दो, अब ऐ जानेवफ़ा, हम क्या करें

    रफ़ी:
    लुटे दिल में दिया जलता नहीं, हम क्या करें
    तुम्ही कह दो, अब ऐ जाने-अदा, हम क्या करें

    लता:
    ये दिल तुम बिन, कहीं लगता नहीं, हम क्या करें
    किसी के दिल में बस के दिल को, तड़पाना नहीं अच्छा
    किसी के दिल में बस के दिल को, तड़पाना नहीं अच्छा
    निगाहों को छलकते देख के छुप जाना नहीं अच्छा,
    उम्मीदों के खिले गुलशन को, झुलसाना नहीं अच्छा
    हमें तुम बिन, कोई जंचता नहीं, हम क्या करें,
    तुम्ही कह दो, अब ऐ जानेवफ़ा, हम क्या करें

    रफ़ी:
    लुटे दिल में दिया जलता नहीं, हम क्या करें
    मुहब्बत कर तो लें लेकिन, मुहब्बत रास आये भी
    मुहब्बत कर तो लें लेकिन, मुहब्बत रास आये भी
    दिलों को बोझ लगते हैं, कभी ज़ुल्फ़ों के साये भी
    हज़ारों ग़म हैं इस दुनिया में, अपने भी पराये भी
    मुहब्बत ही का ग़म तन्हा नहीं, हम क्या करें
    तुम्ही कह दो, अब ऐ जाने-अदा, हम क्या करें

    लता: ये दिल तुम बिन, कहीं लगता नहीं, हम क्या करें

    बुझा दो आग दिल की, या इसे खुल कर हवा दे दो
    बुझा दो आग दिल की, या इसे खुल कर हवा दे दो

    रफ़ी:
    जो इसका मोल दे पाये, उसे अपनी वफ़ा दे दो

    लता:
    तुम्हारे दिल में क्या है बस, हमें इतना पता दे दो,
    के अब तन्हा सफ़र कटता नहीं, हम क्या करें

    रफ़ी:
    लुटे दिल में दिया जलता नहीं, हम क्या करें

    लता:
    ये दिल तुम बिन, कहीं लगता नहीं, हम क्या करे

    ये देश है वीर जवानों का

    ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का
    ओ…
    ओ…

    ये देश है वीर जवानों का
    अलबेलों का मस्तानों का
    इस देश का यारों … होय!!
    इस देश का यारों क्या कहना
    ये देश है दुनिया का गहना

    ओ… ओ…
    यहाँ चौड़ी छाती वीरों की
    यहाँ भोली शक्लें हीरों की
    यहाँ गाते हैं राँझे … होय!!
    यहाँ गाते हैं राँझे मस्ती में
    मस्ती में झूमें बस्ती में

    ओ… ओ…
    पेड़ों में बहारें झूलों की
    राहों में कतारें फूलों की
    यहाँ हँसता है सावन … होय!!
    यहाँ हँसता है सावन बालों में
    खिलती हैं कलियाँ गालों में

    ओ… ओ…
    कहीं दंगल शोख जवानों के
    कहीं करतब तीर कमानों के
    यहाँ नित नित मेले … होय!!
    यहाँ नित नित मेले सजते हैं
    नित ढोल और ताशे बजते हैं

    ओ… ओ…
    दिलबर के लिये दिलदार हैं हम
    दुश्मन के लिये तलवार हैं हम
    मैदाँ में अगर हम … होय!!
    मैदाँ में अगर हम डट जाएँ
    मुश्किल है के पीछे हट जाएँ

    ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें

    ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
    ख़ामोशियों की सदाएँ बुला रही हैं तुम्हें

    तरस रहे हैं जवाँ फूल होंठ छूने को
    मचल-मचल के हवाएँ बुला रही हैं तुम्हें

    तुम्हारी जुल्फ़ों से ख़ुशबू की भीख लेने को
    झुकी-झुकी-सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें

    हसीन चम्पई पैरों को जबसे देखा है
    नदी की मस्त अदाएँ बुला रही हैं तुम्हें

    मेरा कहा न सुनो, उनकी बात तो सुन लो
    हर एक दिल की दुआएँ बुला रही हैं तुम्हें

    रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ

    रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ
    ये मुरादों की हंसीं रात किसे पेश करूँ, किसे पेश करूँ

    मैने जज़बात निभाए हैं उसूलों की जगह
    अपने अरमान पिरो लाया हूँ फूलों की जगह
    तेरे सेहरे की…
    तेरे सेहरे की ये सौगात किसे पेश करूँ
    ये मुरादों की हसीं रात किसे पेश करूँ, किसे पेश करूँ

    ये मेरे शेर मेरे आखिरी नज़राने हैं
    मैं उन अपनों मैं हूँ जो आज से बेगाने हैं
    बेत-आ-लुख़ सी मुलाकात किसे पेश करूँ
    ये मुरादों की हंसीं रात किसे पेश करूँ, किसे पेश करूँ

    सुर्ख जोड़े की तबोताब मुबारक हो तुझे
    तेरी आँखों का नया ख़्वाब मुबारक हो तुझे
    ये मेरी ख़्वाहिश ये ख़यालात किसे पेश करूँ
    ये मुरादों की हंसीं रात किसे पेश करूँ, किसे पेश करूँ

    कौन कहता है चाहत पे सभी का हक़ है
    तू जिसे चाहे तेरा प्यार उसी का हक़ है
    मुझसे कह दे…
    मुझसे कह दे मैं तेरा हाथ किसे पेश करूँ
    ये मुरादों की हंसीं रात किसे पेश करूँ, किसे पेश करूँ

    रंग और नूर की…

    रात भी है कुछ भीगी-भीगी

    रात भी है कुछ भीगी- भीगी, चांद भी है कुछ मद्धम-मद्धम

    तुम आओ तो आँखें खोले, सोई हुई पायल की छम-छम
    किसको बताएँ, कैसे बताएँ, आज अजब है दिल का आलम

    चैन भी है कुछ हलका-हलका, दर्द भी है कुछ मद्धम-मद्धम

    तपते दिल पर यूँ गिरती है, तेरी नज़र से प्यार की शबनम
    जलते हुए जंगल पर जैसे, बरखा बरसे रुक-रुक थम-थम

    रात भी है कुछ भीगी-भीगी, चांद भी है कुछ मद्धम-मद्धम

    होश में थोड़ी बेहोशी है, बेहोशी में होश है कम-कम
    तुझ को पाने की कोशिश में दोनों जहाँ से खो गए हम

    चैन भी है कुछ हलका-हलका, दर्द भी है कुछ मद्धम-मद्धम

    लागा चुनरी में दाग

    लागा, चुनरी में दाग, छुपाऊँ कैसे
    लागा, चुनरी में दाग
    चुनरी में दाग, छुपाऊँ कैसे, घर जाऊँ कैसे
    लागा, चुनरी में दाग …

    हो गई मैली मोरी चुनरिया
    कोरे बदन सी कोरी चुनरिया
    जाके बाबुल से, नज़रें मिलाऊँ कैसे, घर जाऊँ कैसे
    लागा, चुनरी में दाग…

    भूल गई सब बचन बिदा के
    खो गई मैं ससुराल में आके
    जाके बाबुल से, नज़रे मिलाऊँ कैसे, घर जाऊँ कैसे
    लागा, चुनरी में दाग…

    कोरी चुनरिया आत्मा मोरी
    मैल है माया जाल
    वो दुनिया मोरे बाबुल का घर
    ये दुनिया ससुराल
    हाँ जाके, बाबुल से, नज़रे मिलाऊँ कैसे, घर जाऊँ कैसे
    लागा, चुनरी में दाग…

    वादा करो नहीं छोड़ोगी तुम मेरा साथ

    किशोर:
    वादा करो नहीं छोड़ोगी तुम मेरा साथ
    जहाँ तुम हो वहाँ मैं भी हूँ
    वादा करो नहीं छोड़ोगी तुम मेरा साथ
    जहाँ तुम हो वहाँ मैं भी हूँ

    आशा:
    छुओ नहीं देखो ज़रा पीछे रखो हाथ
    जवाँ तुम हो जवाँ मैं भी हूँ
    छुओ नहीं देखो ज़रा पीछे रखो हाथ
    जवाँ तुम हो जवाँ मैं भी हूँ

    किशोर:
    सुनो मेरी जाँ हँस के मुझे ये कह दो
    भीगे-भीगे लबों की नरमी मेरे लिए है
    जवाँ नज़र की मस्ती मेरे लिए है
    हसीं अदा की शोख़ी मेरे लिए है
    मेरे लिए ले के आई हो ये सौग़ात
    जहाँ तुम हो वहाँ मैं भी हूँ

    आशा:
    छुओ नहीं देखो …

    मेरे ही पीछे आख़िर पड़े हो तुम क्यों
    इक मैं जवाँ नहीं हूँ और भी तो हैं
    हो मुझे ही घेरे आख़िर खड़े हो तुम क्यों
    मैं ही यहाँ नहीं हूँ और भी तो हैं
    जाओ जा के ले लो जो भी दे-दे तुम्हें हाथ
    जहाँ सब हैं वहाँ मैं भी हूँ
    जहाँ सब हैं वहाँ मैं भी हूँ

    किशोर:
    वादा करो नहीं छोड़ोगी तुम मेरा साथ
    जहाँ तुम हो वहाँ मैं भी हूँ

    वो सुबह कभी तो आएगी

    वो सुबह कभी तो आएगी

    इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा
    जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा
    जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी

    वो सुबह कभी तो आएगी

    जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
    जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
    इन भूखी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमाएगी

    वो सुबह कभी तो आएगी

    माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
    मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इन्सानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
    इन्सानों की इज्जत जब झूठे सिक्कों में न तोली जाएगी

    वो सुबह कभी तो आएगी

    दौलत के लिए जब औरत की इस्मत को ना बेचा जाएगा
    चाहत को ना कुचला जाएगा, इज्जत को न बेचा जाएगा
    अपनी काली करतूतों पर जब ये दुनिया शर्माएगी

    वो सुबह कभी तो आएगी

    बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूख के और बेकारी के
    टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारादारी के
    जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी

    वो सुबह कभी तो आएगी

    मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फांकेगा
    मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीख न मांगेगा
    हक़ मांगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी

    वो सुबह कभी तो आएगी

    फ़आक़ों की चिताओ पर जिस दिन इन्सां न जलाए जाएंगे
    सीने के दहकते दोज़ख में अरमां न जलाए जाएंगे
    ये नरक से भी गंदी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जाएगी

    वो सुबह कभी तो आएगी

    जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
    जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
    वो सुबह न आए आज मगर, वो सुबह कभी तो आएगी

    वो सुबह कभी तो आएगी

    संसार की हर शैय का

    संसार की हर शैय का इतना ही फ़साना है
    इक धुन्ध से आना है, इक धुन्ध में जाना है

    यह राह कहाँ से है यह राह कहाँ तक है
    यह राज़ कोई राही समझा है, न जाना है

    एक पल की पलक पर है, ठहरी हुई यह दुनिया
    एक पलक झपकने तक हर खेल सुहाना है

    क्या जाने कोई किस पर, किस मोड़ पर क्या बीते
    इस राह में ऎ राही हर मोड़ बहाना है

    हम लोग खिलौना हैं एक ऎसे खिलाड़ी का
    जिस को अभी सदियों तक यह खेल रचाना है

    साथी हाथ बढ़ाना

    साथी हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना
    एक अकेला थक जायेगा मिल कर बोझ उठाना
    साथी हाथ बढ़ाना

    हम मेहनतवालों ने जब भी मिलकर कदम बढ़ाया
    सागर ने रस्ता छोड़ा पर्वत ने शीश झुकाया
    फ़ौलादी हैं सीने अपने फ़ौलादी हैं बाहें
    हम चाहें तो पैदा करदें, चट्टानों में राहें,
    साथी हाथ बढ़ाना

    मेहनत अपनी लेख की रेखा मेहनत से क्या डरना
    कल गैरों की खातिर की अब अपनी खातिर करना
    अपना दुख भी एक है साथी अपना सुख भी एक
    अपनी मंजिल सच की मंजिल अपना रस्ता नेक,
    साथी हाथ बढ़ाना

    एक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरिया
    एक से एक मिले तो ज़र्रा बन जाता है सेहरा
    एक से एक मिले तो राई बन सकती है पर्वत
    एक से एक मिले तो इन्सान बस में कर ले किस्मत,
    साथी हाथ बढ़ाना

    माटी से हम लाल निकालें मोती लाएँ जल से
    जो कुछ इस दुनिया में बना है बना हमारे बल से
    कब तक मेहनत के पैरों में ये दौलत की ज़ंज़ीरें
    हाथ बढ़ाकर छीन लो अपने सपनों की तस्वीरें,
    साथी हाथ बढ़ाना

    हम इन्तज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक

    हम इन्तज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक
    ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए

    यह इन्तज़ार भी एक इम्तिहान होता है
    इसी से इश्क का शोला जवान होता है
    यह इन्तज़ार सलामत हो और तू आए

    बिछाए शौक़ के सजदे वफ़ा की राहों में
    खड़े हैं दीद की हसरत लिए निगाहों में
    कुबूल दिल की इबादत हो और तू आए

    वो ख़ुशनसीब हो जिसको तू इन्तिख़ाब करे
    ख़ुदा हमारी मोहब्बत को कामयाब करे
    जवाँ सितार-ए-क़िस्मत हो और तू आए
    ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए

    हुस्न हाज़िर है मुहब्बत की सज़ा पाने को

    हुस्न हाज़िर है मुहब्बत की सज़ा पाने को
    कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को

    मेरे दीवाने को इतना न सताओ लोगों
    ये तो वहशी है तुम्हीं होश में आओ लोगों
    बहुत रंजूर है ये, ग़मों से चूर है ये
    ख़ुदा का ख़ौफ़ उठाओ बहुत मजबूर है ये
    क्यों चले आये हो बेबस पे सितम ढाने को
    कोई पत्थर से न मारे …

    मेरे जलवों की ख़ता है जो ये दीवाना हुआ
    मैं हूँ मुजरिम ये अगर होश से बेगाना हुआ
    मुझे सूली चढ़ा दो या शोलों पे जला दो
    कोई शिक़वा नहीं है जो जी चाहे सज़ा दो
    बख़्श दो इस को मैं तैयार हूँ मिट जाने को
    कोई पत्थर से न मारे …

    पत्थरों को भी वफ़ा फूल बना सकती है
    ये तमाशा भी सर-ए-आम दिखा सकती है
    लो अब पत्थर उठाओ, ज़माने के ख़ुदाओं
    मैं तुम को आज़माऊँ, मुझे तुम आज़माओ
    अब दुआ अर्श पे जाती है असर लाने को
    कोई पत्थर से न मारे …