शब्द (गुरू ग्रंथ साहिब) संत नामदेव जी

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    Poetry/Vani Sant Namdev 

    अनुक्रम

    शब्द (गुरू ग्रंथ साहिब) संत नामदेव जी

    रागु गउड़ी चेती बाणी नामदेउ जीउ की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    1. देवा पाहन तारीअले

    देवा पाहन तारीअले ॥
    राम कहत जन कस न तरे ॥1॥रहाउ॥

    तारीले गनिका बिनु रूप कुबिजा बिआधि अजामलु तारीअले ॥
    चरन बधिक जन तेऊ मुकति भए ॥
    हउ बलि बलि जिन राम कहे ॥1॥

    दासी सुत जनु बिदरु सुदामा उग्रसैन कउ राज दीए ॥
    जप हीन तप हीन कुल हीन क्रम हीन नामे के सुआमी तेऊ तरे ॥2॥1॥345॥

    (देवा=हे देव, पाहन=पत्थर, कस=क्यों, गनिका=वैश्या,
    कुबिजा=कंस की गोली, ब्याधि=रोगी,विकारी पुरुष,
    बधिक=शिकारी जिसने कृष्ण जी के पैर में तीर
    मारा था, सुत=पुत्र, उग्रसेन=कंस का पिता, तेऊ=
    वह सभी)

    आसा बाणी स्री नामदेउ जी की

    2. एक अनेक बिआपक पूरक जत देखउ तत सोई

    एक अनेक बिआपक पूरक जत देखउ तत सोई ॥
    माइआ चित्र बचित्र बिमोहित बिरला बूझै कोई ॥1॥

    सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई ॥
    सूतु एकु मणि सत सहंस जैसे ओति पोति प्रभु सोई ॥1॥रहाउ॥

    जल तरंग अरु फेन बुदबुदा जल ते भिंन न होई ॥
    इहु परपंचु पारब्रहम की लीला बिचरत आन न होई ॥2॥

    मिथिआ भरमु अरु सुपन मनोरथ सति पदारथु जानिआ ॥
    सुक्रित मनसा गुर उपदेसी जागत ही मनु मानिआ ॥3॥

    कहत नामदेउ हरि की रचना देखहु रिदै बीचारी ॥
    घट घट अंतरि सरब निरंतरि केवल एक मुरारी ॥4॥1॥485॥

    (पूरक =भरपूर, जत=जिस तरफ, तत=उधर, बचित्र=रंगारंग
    की तस्वीरें, मणि=मनके, सत=सैंकड़े, सहंस=हज़ारों,
    तरंग=लहर, फेन=झाग, परपंचु=दिखता जगत तमाशा,
    बिचरत=विचार कर, आन=अप्रीचित, सति=हमेशा रहने वाला,
    सुक्रित=नेकी, मनसा=समझ)

    3. आनीले कु्म्भ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ

    आनीले कु्म्भ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ ॥
    बइआलीस लख जी जल महि होते बीठलु भैला काइ करउ ॥1॥

    जत्र जाउ तत बीठलु भैला ॥
    महा अनंद करे सद केला ॥1॥रहाउ॥

    आनीले फूल परोईले माला ठाकुर की हउ पूज करउ ॥
    पहिले बासु लई है भवरह बीठल भैला काइ करउ ॥2॥

    आनीले दूधु रीधाईले खीरं ठाकुर कउ नैवेदु करउ ॥
    पहिले दूधु बिटारिओ बछरै बीठलु भैला काइ करउ ॥3॥

    ईभै बीठलु ऊभै बीठलु बीठल बिनु संसारु नही ॥
    थान थनंतरि नामा प्रणवै पूरि रहिओ तूं सरब मही ॥4॥2॥485॥

    (आनीले=लाए, कु्म्भ=घड़ा, भराईले=भर कर, उदक=
    पानी, ठाकुर=मूर्ति, बीठलु=हरी, भैला=बसता था, जत्र=जहाँ,
    केला=आनंद, हउ=मैं, बासु=सुगंध, नैवेदु=भेंट, बिटारिओ=
    जूठा किया, ईभै=नीचे, ऊभै=ऊपर, प्रणवै=विनती करता है,
    मही=धरती)

    4. मनु मेरो गजु जिहबा मेरी काती

    मनु मेरो गजु जिहबा मेरी काती ॥
    मपि मपि काटउ जम की फासी ॥1॥

    कहा करउ जाती कह करउ पाती ॥
    राम को नामु जपउ दिन राती ॥1॥रहाउ॥

    रांगनि रांगउ सीवनि सीवउ ॥
    राम नाम बिनु घरीअ न जीवउ ॥2॥

    भगति करउ हरि के गुन गावउ ॥
    आठ पहर अपना खसमु धिआवउ ॥3॥

    सुइने की सूई रुपे का धागा ॥
    नामे का चितु हरि सउ लागा ॥4॥3॥485॥

    (कैंची=कैंची, मपि मपि=माप माप कर, पाती=
    गोत्र, रांगनि=मट्टी, रुपे=चाँदी)

    5. सापु कुंच छोडै बिखु नही छाडै

    सापु कुंच छोडै बिखु नही छाडै ॥
    उदक माहि जैसे बगु धिआनु माडै ॥1॥

    काहे कउ कीजै धिआनु जपंना ॥
    जब ते सुधु नाही मनु अपना ॥1॥रहाउ॥

    सिंघच भोजनु जो नरु जानै ॥
    ऐसे ही ठगदेउ बखानै ॥2॥

    नामे के सुआमी लाहि ले झगरा ॥
    राम रसाइन पीओ रे दगरा ॥3॥4॥485॥

    (कुंच=केचुली, उदक=पानी, बगु=बगुला,
    माडै=जोड़ता है, सिंघचु=शेर का भाव
    बेरहमी वाला, ठगदेउ=बड़ा ठग,
    दगरा=पत्थर)

    6. पारब्रहमु जि चीन्हसी आसा ते न भावसी

    पारब्रहमु जि चीन्हसी आसा ते न भावसी ॥
    रामा भगतह चेतीअले अचिंत मनु राखसी ॥1॥

    कैसे मन तरहिगा रे संसारु सागरु बिखै को बना ॥
    झूठी माइआ देखि कै भूला रे मना ॥1॥रहाउ॥

    छीपे के घरि जनमु दैला गुर उपदेसु भैला ॥
    संतह कै परसादि नामा हरि भेटुला ॥2॥5॥486॥

    (जि=जो मानव, चीन्हसी=पहचानते हैं, ते न भावसी =
    उनको अच्छी नहीं लगती, दैला=दिया, भैला=
    मिल गया)

    गूजरी स्री नामदेव जी के पदे
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    7. जौ राजु देहि त कवन बडाई

    जौ राजु देहि त कवन बडाई ॥
    जौ भीख मंगावहि त किआ घटि जाई ॥1॥

    तूं हरि भजु मन मेरे पदु निरबानु ॥
    बहुरि न होइ तेरा आवन जानु ॥1॥ रहाउ ॥

    सभ तै उपाई भरम भुलाई ॥
    जिस तूं देवहि तिसहि बुझाई ॥2॥

    सतिगुरु मिलै त सहसा जाई ॥
    किसु हउ पूजउ दूजा नदरि न आई ॥3॥

    एकै पाथर कीजै भाउ ॥
    दूजै पाथर धरीऐ पाउ ॥
    जे ओहु देउ त ओहु भी देवा ॥
    कहि नामदेउ हम हरि की सेवा ॥4॥1॥525॥

    (पदु=दर्जा, निरबानु=आशा रहित,
    तूं=तू,ईश्वर, सहसा=मन की घबराहट,
    भाउ=प्यार)

    8. मलै न लाछै पार मलो परमलीओ बैठो री आई

    मलै न लाछै पार मलो परमलीओ बैठो री आई ॥
    आवत किनै न पेखिओ कवनै जाणै री बाई ॥1॥

    कउणु कहै किणि बूझीऐ रमईआ आकुलु री बाई ॥1॥रहाउ॥

    जिउ आकासै पंखीअलो खोजु निरखिओ न जाई ॥
    जिउ जल माझै माछलो मारगु पेखणो न जाई ॥2॥

    जिउ आकासै घड़ूअलो म्रिग त्रिसना भरिआ ॥
    नामे चे सुआमी बीठलो जिनि तीनै जरिआ ॥3॥2॥525॥

    (मलै=मैल का, लाछै=लांछण,दाग़,दोष, पार मलो=मल-रहित,
    परमलीओ=सुगंध, री आई=हे माँ !, री बाई=हे बहन !,
    आकुलु=सर्व-ब्यापक, खोजु=रास्ता, निरखिओ=देखा,
    माझै=में, मारगु=रास्ता, घड़ूअलो=पानी का घड़ा, म्रिग त्रिसना=
    ठग-नीरा,रेत पर पानी का वहम, चे=के, तीनै जरिआ=तीनो
    ताप जला दिए हैं)

    रागु सोरठि बाणी भगत नामदे जी की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    9. जब देखा तब गावा

    जब देखा तब गावा ॥
    तउ जन धीरजु पावा ॥1॥

    नादि समाइलो रे सतिगुरु भेटिले देवा ॥1॥ रहाउ ॥

    जह झिलि मिलि कारु दिसंता ॥
    तह अनहद सबद बजंता ॥
    जोती जोति समानी ॥
    मै गुर परसादी जानी ॥2॥

    रतन कमल कोठरी ॥
    चमकार बीजुल तही ॥
    नेरै नाही दूरि ॥
    निज आतमै रहिआ भरपूरि ॥3॥

    जह अनहत सूर उज्यारा ॥
    तह दीपक जलै छंछारा ॥
    गुर परसादी जानिआ ॥
    जनु नामा सहज समानिआ ॥4॥1॥656॥

    (देखा=देखूँ, तउ=तब, जन=हे भाई,
    पावा=मैं हासिल करता हाँ, धीरजु=शान्ति,
    नादि=शब्द में, समाइलो=समा गया है,
    रे=हे भाई, भेटिले=मिला दिया है, देवा=हरी ने,
    झिलि मिलि कारु=सदा चंचलता ही चंचलता, दिसंता=
    दिखाई देती थी, कमल कोठरी=दिल में, रतन=ईश्वरीय गुण,
    तह=उसी दिल में, छंछारा=धीमा, अनहत=एक-रस,
    लगातार)

    10. पाड़ पड़ोसणि पूछि ले नामा का पहि छानि छवाई हो

    पाड़ पड़ोसणि पूछि ले नामा का पहि छानि छवाई हो ॥
    तो पहि दुगणी मजूरी दैहउ मो कउ बेढी देहु बताई हो ॥1॥

    री बाई बेढी देनु न जाई ॥
    देखु बेढी रहिओ समाई ॥
    हमारै बेढी प्रान अधारा ॥1॥रहाउ॥

    बेढी प्रीति मजूरी मांगै जउ कोऊ छानि छवावै हो ॥
    लोग कुट्मब सभहु ते तोरै तउ आपन बेढी आवै हो ॥2॥

    ऐसो बेढी बरनि न साकउ सभ अंतर सभ ठांई हो ॥
    गूंगै महा अम्रित रसु चाखिआ पूछे कहनु न जाई हो ॥3॥

    बेढी के गुण सुनि री बाई जलधि बांधि ध्रू थापिओ हो ॥
    नामे के सुआमी सीअ बहोरी लंक भभीखण आपिओ हो ॥4॥2॥657॥

    (पाड़=साथ की, का पहि=किस से, छानि=छपरी,
    छवाई=बनवाई, बाई=बहन, बेढी=बढ़ई, आपन=
    अपने आप, ठांई=स्थान पर, जलधि=सागर, बांधि=
    बाँध कर, सीअ=सीता, बहोरी=वापिस लाई, आपिओ=
    मालिक बना दिया)

    11. अणमड़िआ मंदलु बाजै

    अणमड़िआ मंदलु बाजै ॥
    बिनु सावण घनहरु गाजै ॥
    बादल बिनु बरखा होई ॥
    जउ ततु बिचारै कोई ॥1॥

    मो कउ मिलिओ रामु सनेही ॥
    जिह मिलिऐ देह सुदेही ॥1॥रहाउ॥

    मिलि पारस कंचनु होइआ ॥
    मुख मनसा रतनु परोइआ ॥
    निज भाउ भइआ भ्रमु भागा ॥
    गुर पूछे मनु पतीआगा ॥2॥

    जल भीतरि कु्मभ समानिआ ॥
    सभ रामु एकु करि जानिआ ॥
    गुर चेले है मनु मानिआ ॥
    जन नामै ततु पछानिआ ॥3॥3॥657॥

    (अणमड़िआ=बिना मढ़े, मंदलु=
    ढोल, घनहरु=बादल, कंचनु=सोना,
    मुख मनसा=कहने और ख्यालों में,
    पतीआगा=संतुष्ट हो गया, तसल्ली हो
    गयी है, कु्मभ=पानी का घड़ा,आत्मा)

    धनासरी बाणी भगत नामदेव जी की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    12. गहरी करि कै नीव खुदाई ऊपरि मंडप छाए

    गहरी करि कै नीव खुदाई ऊपरि मंडप छाए ॥
    मारकंडे ते को अधिकाई जिनि त्रिण धरि मूंड बलाए ॥1॥

    हमरो करता रामु सनेही ॥
    काहे रे नर गरबु करत हहु बिनसि जाइ झूठी देही ॥1॥रहाउ॥

    मेरी मेरी कैरउ करते दुरजोधन से भाई ॥
    बारह जोजन छत्रु चलै था देही गिरझन खाई ॥2॥

    सरब सोइन की लंका होती रावन से अधिकाई ॥
    कहा भइओ दरि बांधे हाथी खिन महि भई पराई ॥3॥

    दुरबासा सिउ करत ठगउरी जादव ए फल पाए ॥
    क्रिपा करी जन अपुने ऊपर नामदेउ हरि गुन गाए ॥4॥1॥692॥

    (मंडप=महल, छाए=बनवाए, त्रिण धरि मूंड=
    सिर पर भूसा रख कर,घास की कुटिया डाल कर, बलाए=समय
    बिताया, जोजन=चार कोस, छत्रु चलै था=सेना का फैलाव
    था, कहा भइओ=क्या हुया?, दुरबासा=क्रोधी
    ऋषि, ठगउरी=मखौल,जादव=कृष्ण जी की कुल)

    13. दस बैरागनि मोहि बसि कीन्ही पंचहु का मिट नावउ

    दस बैरागनि मोहि बसि कीन्ही पंचहु का मिट नावउ ॥
    सतरि दोइ भरे अम्रित सरि बिखु कउ मारि कढावउ ॥1॥

    पाछै बहुरि न आवनु पावउ ॥
    अम्रित बाणी घट ते उचरउ आतम कउ समझावउ ॥1॥ रहाउ ॥

    बजर कुठारु मोहि है छीनां करि मिंनति लगि पावउ ॥
    संतन के हम उलटे सेवक भगतन ते डरपावउ ॥2॥

    इह संसार ते तब ही छूटउ जउ माइआ नह लपटावउ ॥
    माइआ नामु गरभ जोनि का तिह तजि दरसनु पावउ ॥3॥

    इतु करि भगति करहि जो जन तिन भउ सगल चुकाईऐ ॥
    कहत नामदेउ बाहरि किआ भरमहु इह संजम हरि पाईऐ ॥4॥2॥693॥

    (बैरागनि=वैरागिनी, जिसने अपने सभी इन्दरे शांत किये हुए थे,
    मोहि=मैं, पंचहु का=पाँच कामादिकों का। नावउ=नाम-निशान ही,
    सतरि दोइ=बहत्तर हज़ार नाड़ियाँ, अम्रित बाणी=आतमक जीवन देण
    वाले नाम-जल के सरोवर के साथ, बिखु=ज़हर, पाछै=फिर, बहुरि=फिर,
    घट ते= दिल से, उचरउ=मैं उच्चारण करता हूँ, आतम कउ=अपने आप को,
    बजर=वज्जर,कड़ा, कुठारु=कुलहाड़ा, लगि=लग कर। पावउ=चरनी, डरपावउ=
    डरदा हूँ, छूटउ=बचता हूँ, तिह=इस माया को, इतु करि=इस तरह, करहि=
    करदे हैं, चुकाईऐ=दूर हो जाता है)

    14. मारवाड़ि जैसे नीरु बालहा बेलि बालहा करहला

    मारवाड़ि जैसे नीरु बालहा बेलि बालहा करहला ॥
    जिउ कुरंक निसि नादु बालहा तिउ मेरै मनि रामईआ ॥1॥

    तेरा नामु रूड़ो रूपु रूड़ो अति रंग रूड़ो मेरो रामईआ ॥1॥रहाउ॥

    जिउ धरणी कउ इंद्रु बालहा कुसम बासु जैसे भवरला ॥
    जिउ कोकिल कउ अम्बु बालहा तिउ मेरै मनि रामईआ ॥2॥

    चकवी कउ जैसे सूरु बालहा मान सरोवर हंसुला ॥
    जिउ तरुणी कउ कंतु बालहा तिउ मेरै मनि रामईआ ॥3॥

    बारिक कउ जैसे खीरु बालहा चात्रिक मुख जैसे जलधरा ॥
    मछुली कउ जैसे नीरु बालहा तिउ मेरै मनि रामईआ ॥4॥

    साधिक सिध सगल मुनि चाहहि बिरले काहू डीठुला ॥
    सगल भवण तेरो नामु बालहा तिउ नामे मनि बीठुला ॥5॥3॥693॥

    (मारवाड़ि=मारवाड़ जैसी रेतीली जगह में, बालहा=प्यारा,
    करहला=उठ को, कुरंक=हिरण, निसि=रात, नादु=घंडेहेड़े दी
    आवाज़, रूड़ो=सुंदर, इंद्रु=बारिश, कुसम बासु=फूल की सुगंध,
    भवरला=भौंरे को, सूरु=सूरज, तरुणी=जवान स्त्री, खीरु=दूध,
    जलधरा=बादल, बीठुला=माया से परे,परमातमा)

    15. पहिल पुरीए पुंडरक वना

    पहिल पुरीए पुंडरक वना ॥
    ता चे हंसा सगले जनां ॥
    क्रिस्ना ते जानऊ हरि हरि नाचंती नाचना ॥1॥

    पहिल पुरसाबिरा ॥
    अथोन पुरसादमरा ॥
    असगा अस उसगा ॥
    हरि का बागरा नाचै पिंधी महि सागरा ॥1॥ रहाउ ॥

    नाचंती गोपी जंना ॥
    नईआ ते बैरे कंना ॥
    तरकु न चा ॥
    भ्रमीआ चा ॥
    केसवा बचउनी अईए मईए एक आन जीउ ॥2॥

    पिंधी उभकले संसारा ॥
    भ्रमि भ्रमि आए तुम चे दुआरा ॥
    तू कुनु रे ॥
    मै जी ॥
    नामा ॥
    हो जी ॥
    आला ते निवारणा जम कारणा ॥3॥4॥693॥

    (पहल पुरीए=पहले पहल, पुंडरक वना=कंवलां
    दा बन या खेत, पुंडरक= सफ़ेद कमल फूल, ता चे=
    उस के, सगले जनां=सभी जीव जंत, क्रिस्ना=माया,
    ते=से, जानऊ=जानो, समझो, हरि हरि=प्रभु की माया,
    हरी नाचना=प्रभु की नाचने वाली सृष्टि, नाचंती=नाच रही है,
    पुरसाबिरा=(पुरस आबिरा) परमात्मा प्रकट हुआ, अथोन=
    उस के बाद, पुरसादमरा=(पुरशात अमरा)पुरुष से माया,
    असगा=इस का, अस=और, उसगा=उस का, बागरा=सुंदर जेहा
    बाग़, पिंधी=खौपड़ीों, सागरा=समुद्र,पानी, गोपी जंना=स्त्रियों अते
    मरद, नईआ=नायक,परमात्मा, ते=से, बैरे=अलग, कंना=कोई नहीं,
    केसवा बचउनी=केशव के वचन ही, अईए मईए=स्त्री मर्द में,
    एक आन=एक अयन,एक ही राहे,एक-रस, उभकले=डुबकियाँ, संसारा=
    संसार समुद्र में, भ्रमि भ्रमि=भटक भटक कर, तुम चे=तुम्हारे, कुनु=कौन?
    जी=हे प्रभु जी ! आला=आलय,घर,जगत, ते=से, निवारणा=बचा ले, जम
    कारणा=जम के डर का कारन)

    16. पतित पावन माधउ बिरदु तेरा

    पतित पावन माधउ बिरदु तेरा ॥
    धंनि ते वै मुनि जन जिन धिआइओ हरि प्रभु मेरा ॥1॥

    मेरै माथै लागी ले धूरि गोबिंद चरनन की ॥
    सुरि नर मुनि जन तिनहू ते दूरि ॥1॥ रहाउ ॥

    दीन का दइआलु माधौ गरब परहारी ॥
    चरन सरन नामा बलि तिहारी ॥2॥5॥694॥

    (पतित=गिरे हुए, पावन=पवित्र, बिरदु=आधार-कदीम
    का सुभाउ, धंनि=भागें वाले, ते वै=वह,
    मुनि जन=ऋषि लोग, लागी ले=लगी है, धूरि=धूल,
    सुरि=देवते, दूरि=परे, ते=से, गरब=अहंकार,
    परहारी=दूर करन वाला, बलि=सदके)

    टोडी
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    17. कोई बोलै निरवा कोई बोलै दूरि

    कोई बोलै निरवा कोई बोलै दूरि ॥
    जल की माछुली चरै खजूरि ॥1॥

    कांइ रे बकबादु लाइओ ॥
    जिनि हरि पाइओ तिनहि छपाइओ ॥1॥ रहाउ ॥

    पंडितु होइ कै बेदु बखानै ॥
    मूरखु नामदेउ रामहि जानै ॥2॥1॥718॥

    (बोलै=कहता है, निरवा=नज़दीक, चरै=चढ़ती है,
    कांइ=किसके लिए? बकबादु=व्यर्थ झगड़ा,
    जिनि=जिस ने, पाइओ=मिला है, तिनहि=उसी ने ही,
    पंडितु=विद्वान, होइ कै=बन कर, बखानै=विचार के
    सुणाउंदा है, रामहि=राम को ही)

    18. कउन को कलंकु रहिओ राम नामु लेत ही

    कउन को कलंकु रहिओ राम नामु लेत ही ॥
    पतित पवित भए रामु कहत ही ॥1॥ रहाउ ॥

    राम संगि नामदेव जन कउ प्रतगिआ आई ॥
    एकादसी ब्रतु रहै काहे कउ तीरथ जाईं ॥1॥

    भनति नामदेउ सुक्रित सुमति भए ॥
    गुरमति रामु कहि को को न बैकुंठि गए ॥2॥2॥718॥

    (कउन को=किस का, कलंकु=पाप, भए=हो जाते हैं,
    राम संगि=नाम की संगती में, जन कउ=दास को,
    प्रतगिआ=निश्चय, रहै=रह गया है, काहे कउ=
    काहदे के लिए? भनति=कहता है, सुक्रित=अच्छी करणी
    वाले, सुमति=अच्छी मत वाले, को को न=कौन कौन नहीं?)

    19. तीनि छंदे खेलु आछै

    तीनि छंदे खेलु आछै ॥1॥ रहाउ ॥

    कु्मभार के घर हांडी आछै राजा के घर सांडी गो ॥
    बामन के घर रांडी आछै रांडी सांडी हांडी गो ॥1॥

    बाणीए के घर हींगु आछै भैसर माथै सींगु गो ॥
    देवल मधे लीगु आछै लीगु सीगु हीगु गो ॥2॥

    तेली कै घर तेलु आछै जंगल मधे बेल गो ॥
    माली के घर केल आछै केल बेल तेल गो ॥3॥

    संतां मधे गोबिंदु आछै गोकल मधे सिआम गो ॥
    नामे मधे रामु आछै राम सिआम गोबिंद गो ॥4॥3॥718॥

    (तीनि छंदे खेलु आछै=त्रिगुनी संसार का तमाशा है,
    रांडी=पत्री,विधवा, देवल=मंदिर, मधे=अंदर, लीगु=लिंग)

    तिलंग

    20. मै अंधुले की टेक तेरा नामु खुंदकारा

    मै अंधुले की टेक तेरा नामु खुंदकारा ॥
    मै गरीब मै मसकीन तेरा नामु है अधारा ॥1॥रहाउ॥

    करीमां रहीमां अलाह तू गनीं ॥
    हाजरा हजूरि दरि पेसि तूं मनीं ॥1॥

    दरीआउ तू दिहंद तू बिसीआर तू धनी ॥
    देहि लेहि एकु तूं दिगर को नही ॥2॥

    तूं दानां तूं बीनां मै बीचारु किआ करी ॥
    नामे चे सुआमी बखसंद तूं हरी ॥3॥1॥2॥727॥

    (खुंदकारा=सहारा, मसकीन=आजिज, करीमां=
    है बखशस करन वाले, गनी=अमीर, दरि पेसि तूं
    मनीं=तू मेरे सामने, दिहंद=दाता, बिसीआर=
    बहुत, देहि लेहि=देने लेने वाला, दिगर=दूसरा,
    दानां-बीनां=जानने और देखने वाला, चे=दे)

    21. हले यारां हले यारां खुसिखबरी

    हले यारां हले यारां खुसिखबरी ॥
    बलि बलि जांउ हउ बलि बलि जांउ ॥
    नीकी तेरी बिगारी आले तेरा नाउ ॥1॥ रहाउ ॥

    कुजा आमद कुजा रफती कुजा मे रवी ॥
    द्वारिका नगरी रासि बुगोई ॥1॥

    खूबु तेरी पगरी मीठे तेरे बोल ॥
    द्वारिका नगरी काहे के मगोल ॥2॥

    चंदीं हजार आलम एकल खानां ॥
    हम चिनी पातिसाह सांवले बरनां ॥3॥

    असपति गजपति नरह नरिंद ॥
    नामे के स्वामी मीर मुकंद ॥4॥2॥3॥727॥

    (हले यारां=हे मित्र, खुसिखबरी=ख़ुशी देने वाली,
    नीकी=सुंदर, बिगारी=बेगार,किसी के लिए किया काम,
    आले=उच्च् वर्ग,ऊँचा, कुजा=कहाँ से, आमद=तू आया,
    कुजा=कहाँ, रफती=तू गया सौ, मे रवी=तू जा रहा है,
    रासि=रास(नाच), बुगोई=तू कहता है, खूबु=सुंदर,
    चंदीं=कई, आलम=दुनिया, एकल=अकेला,
    खानां=ख़ान,मालिक, हम चिनी=इसी ही तरह का,
    सांवले बरनां=साँवले रंग वाला,कृष्ण, असपति=
    अश्वपति,सूरज देवता, गजपति=इंद्र देवता,
    नरह नरिंद=नरों का राजा,ब्रह्मा, मुकंद=मुकती
    देण वाला,विष्णु और कृष्ण जी का नां)

    बिलावलु बाणी भगत नामदेव जी की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    22. सफल जनमु मो कउ गुर कीना

    सफल जनमु मो कउ गुर कीना ॥
    दुख बिसारि सुख अंतरि लीना ॥1॥

    गिआन अंजनु मो कउ गुरि दीना ॥
    राम नाम बिनु जीवनु मन हीना ॥1॥रहाउ॥

    नामदेइ सिमरनु करि जानां ॥
    जगजीवन सिउ जीउ समानां ॥2॥1॥857॥

    (मो कउ=मुझे, सुख अंतरि=सुख में, बिसारि=भुला कर,
    अंजनु=सुरमा, हीना=तुच्छ, नामदेइ=नामदेव ने, सिउ=के साथ,
    जीउ=जिंद, समानां=लीन हो गई है)

    रागु गोंड बाणी नामदेउ जी की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    23. असुमेध जगने

    असुमेध जगने ॥
    तुला पुरख दाने ॥
    प्राग इसनाने ॥1॥

    तउ न पुजहि हरि कीरति नामा ॥
    अपुने रामहि भजु रे मन आलसीआ ॥1॥रहाउ॥

    गइआ पिंडु भरता ॥
    बनारसि असि बसता ॥
    मुखि बेद चतुर पड़ता ॥2॥

    सगल धरम अछिता ॥
    गुर गिआन इंद्री द्रिड़ता ॥
    खटु करम सहित रहता ॥3॥

    सिवा सकति स्मबादं ॥
    मन छोडि छोडि सगल भेदं ॥
    सिमरि सिमरि गोबिंदं ॥
    भजु नामा तरसि भव सिंधं 4॥1॥873॥

    (असुमेध= वैदिक-काल में किया जाता यज्ञ,
    जिस में एक घोड़ा सजा कर छोड़ दिया जाता था ;
    जिस अप्रीचित रजवाड़े में से घोड़ा गुज़रे, वह राजा जां
    लड़े या अधीनता माने, तुला=तुल कर बराबर का, बराबर,
    प्राग=हिंदु-तीर्थ अलाहबाद), गइआ=गया तीर्थ,
    जो हिंदु दीये-बाती बिना मर जाये उसकी क्रिया गया
    जा कर कराई जाती है, पिंडु=चउलें या ज्वार के आटे दे
    पेड़े जो पित्तरों निमित मणसींदे हैं, असि=बनारस दे
    नाल बहती नदी का नाम है, मुखि=मुँह से, चतुर=चार,
    अछिता=संयुक्त, द्रिड़ता=बस में रखे, खटु करम=
    छे कर्म (विद्या पढ़ना और पढ़ाउना, यज्ञ करना ते
    कराउना, दान देना और लेना), सिवा सकति स्मबादं=
    शिव और पार्वती की परस्पर बात-बात,रामायण,
    भेदं=प्रभु की अपेक्षा दूर रखने वाले काम, तरसि=तरेंगा,
    भव सिंधं=भव सागर, संसार-समुन्दर)

    24. नाद भ्रमे जैसे मिरगाए

    नाद भ्रमे जैसे मिरगाए ॥
    प्रान तजे वा को धिआनु न जाए ॥1॥

    ऐसे रामा ऐसे हेरउ ॥
    रामु छोडि चितु अनत न फेरउ ॥1॥ रहाउ ॥

    जिउ मीना हेरै पसूआरा ॥
    सोना गढते हिरै सुनारा ॥2॥

    जिउ बिखई हेरै पर नारी ॥
    कउडा डारत हिरै जुआरी ॥3॥

    जह जह देखउ तह तह रामा ॥
    हरि के चरन नित धिआवै नामा ॥4॥2॥873॥

    (नाद=आवाज़,घड़े पर चमड़ी मढ़ के
    बणायआ साज़, वा को=उस का,
    हेरउ=देखना, अनत=ओर तरफ़,
    मीना=मछलियों, पसूआरा=झीवर,
    गढते=घड़ते, बिखई=कामी मनुक्ख)

    25. मो कउ तारि ले रामा तारि ले

    मो कउ तारि ले रामा तारि ले ॥
    मै अजानु जनु तरिबे न जानउ बाप बीठुला बाह दे॥1॥रहाउ॥

    नर ते सुर होइ जात निमख मै सतिगुर बुधि सिखलाई ॥
    नर ते उपजि सुरग कउ जीतिओ सो अवखध मै पाई ॥1॥

    जहा जहा धूअ नारदु टेके नैकु टिकावहु मोहि ॥
    तेरे नाम अविल्मबि बहुतु जन उधरे नामे की निज मति एह ॥2॥3॥873॥

    (मो कउ=मुझे, तरिबे न जानउ=मैं तरना नहीं जानता, ते=तों
    सुर=देवते, निमख मै=आँख कांपने के समय में। मै=में,
    अवखध=दवा, जहा जहा=जिस आत्मिक अवस्था में। टेके=
    काए हैं, नैकु=सदा, मोहि=मुझे, अविल्मबि=आसरा, उधरे=
    बच गए, निज मति=अपनी मत्त)

    26. मोहि लागती तालाबेली

    मोहि लागती तालाबेली ॥
    बछरे बिनु गाइ अकेली ॥1॥

    पानीआ बिनु मीनु तलफै ॥
    ऐसे राम नामा बिनु बापुरो नामा ॥1॥रहाउ॥

    जैसे गाइ का बाछा छूटला ॥
    थन चोखता माखनु घूटला ॥2॥

    नामदेउ नाराइनु पाइआ ॥
    गुरु भेटत अलखु लखाइआ ॥3॥

    जैसे बिखै हेत पर नारी ॥
    ऐसे नामे प्रीति मुरारी ॥4॥

    जैसे तापते निरमल घामा ॥
    तैसे राम नामा बिनु बापुरो नामा ॥5॥4॥874॥

    (तालाबेली=तिलमिलाहट, मीनु=
    मच्छी, तलफै=तड़पती है, बापुरो=
    विचारा, चोखता=चुंघदा है, बिखै हित=
    विशे की ख़ातिर, तापते=(जीव) तपते ने,
    घामा=गर्मी,धुप)

    27. हरि हरि करत मिटे सभि भरमा

    हरि हरि करत मिटे सभि भरमा ॥
    हरि को नामु लै ऊतम धरमा ॥
    हरि हरि करत जाति कुल हरी ॥
    सो हरि अंधुले की लाकरी ॥1॥

    हरए नमसते हरए नमह ॥
    हरि हरि करत नही दुखु जमह ॥1॥ रहाउ ॥

    हरि हरनाकस हरे परान ॥
    अजैमल कीओ बैकुंठहि थान ॥
    सूआ पड़ावत गनिका तरी ॥
    सो हरि नैनहु की पूतरी ॥2॥

    हरि हरि करत पूतना तरी ॥
    बाल घातनी कपटहि भरी ॥
    सिमरन द्रोपद सुत उधरी ॥
    गऊतम सती सिला निसतरी ॥3॥

    केसी कंस मथनु जिनि कीआ ॥
    जीअ दानु काली कउ दीआ ॥
    प्रणवै नामा ऐसो हरी ॥
    जासु जपत भै अपदा टरी ॥4॥1॥5॥874॥

    (हरि हरि करत=प्रभु का नाम सिमर्यें, भरमा=
    भटकना, हरी=नाश हो जाती है, लाकरी=लकडी,
    डंगोरी, हरए=हरी को, हरे प्राण=जान ले ली,
    सूआ=तोता, गनिका=वैश्या, पूतरी=पुतली, पूतना=
    जिस को हल्का बुख़ार ने गोकुल में कृष्ण जी के मारने वासते
    घल्या था, घातनी=मारने वाली, कपट=धोखा, द्रोपद
    सुत=द्रोपद पुत्री, द्रोपद की बेटी, द्रोपती, सती=नेक स्त्री,
    जो अपने पति के श्राप के साथ सिला बन गई थी,
    श्री रामचन्द्र जी ने इस को मुक्त किया था, किस तरह की=
    एक दैत्य जिस नूं हल्का बुख़ार ने कृष्ण जी के मारने के
    लिए गोकुल भेजा था, मथनु=नास, जिनि=जिस ने, काली=
    एक नाग था जिस को कृष्ण जीने यमुना से निकाला था,
    जीअ दान=जिंद-स्वामी, प्रणवै=बेनती करता है, जासु=
    जिस को, पदा=मुसीबत, टरी=टल जाती है)

    28. भैरउ भूत सीतला धावै

    भैरउ भूत सीतला धावै ॥
    खर बाहनु उहु छारु उडावै ॥1॥

    हउ तउ एकु रमईआ लैहउ ॥
    आन देव बदलावनि दैहउ ॥1॥ रहाउ ॥

    सिव सिव करते जो नरु धिआवै ॥
    बरद चढे डउरू ढमकावै ॥2॥

    महा माई की पूजा करै ॥
    नर सै नारि होइ अउतरै ॥3॥

    तू कहीअत ही आदि भवानी ॥
    मुकति की बरीआ कहा छपानी ॥4॥

    गुरमति राम नाम गहु मीता ॥

    प्रणवै नामा इउ कहै गीता ॥5॥2॥6॥874॥

    (भैरउ=एक जती का नाम था, सीतला=चेचक दी
    देवी, खर=गधा, खर बाहनु=गधे की सवारी करन
    वाला, छारु=राख, तउ=तो, रमईआ=सुंदर राम,
    लैहउ=लूँगा, आन=ओर, बदलावनि=बदले में, पत्थर,
    दैहउ=के द्यांगा, बरद=बैल, डउरू=डमरू, महा माई=
    वड्डी माँ, पार्वती, सै=से, होइ=बन कर, अउतरै=जन्म लेता है,
    कहीअत=कही जाती है, भवानी=दुर्गा देवी, बरिआ=बारी,
    छपानी=छिप जाती है, गहु=पकड़, मीता=हे मित्तर)

    29. आजु नामे बीठलु देखिआ मूरख को समझाऊ रे

    आजु नामे बीठलु देखिआ मूरख को समझाऊ रे ॥ रहाउ ॥

    पांडे तुमरी गाइत्री लोधे का खेतु खाती थी ॥
    लै करि ठेगा टगरी तोरी लांगत लांगत जाती थी ॥1॥

    पांडे तुमरा महादेउ धउले बलद चड़िआ आवतु देखिआ था ॥
    मोदी के घर खाणा पाका वा का लड़का मारिआ था ॥2॥

    पांडे तुमरा रामचंदु सो भी आवतु देखिआ था ॥
    रावन सेती सरबर होई घर की जोइ गवाई थी ॥3॥

    हिंदू अंन्हा तुरकू काणा ॥
    दुहां ते गिआनी सिआणा ॥
    हिंदू पूजै देहुरा मुसलमाणु मसीति ॥
    नामे सोई सेविआ जह देहुरा न मसीति ॥4॥3॥7॥874॥

    (आजु=आज, अरे=हे पांडे ! समझाऊ=मैं समझावा, गायत्री=
    गायत्री मंत्र, लोधा=जाटों की एक जाति का नहीं है, ठेगा=
    सोटा, लांगत=लंगड़ा कर, धउले=सफ़ेद, मोदी=भंडारी,
    हवा का=उस का, सरबर=लड़ाई, जोइ=स्त्री, तुरकू=
    मुसलमान, जह=जिस का, मंदिर=मन्दर)

    बाणी नामदेउ जीउ की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    30. आनीले कागदु काटीले गूडी आकास मधे भरमीअले

    आनीले कागदु काटीले गूडी आकास मधे भरमीअले ॥
    पंच जना सिउ बात बतऊआ चीतु सु डोरी राखीअले ॥1॥

    मनु राम नामा बेधीअले ॥
    जैसे कनिक कला चितु मांडीअले ॥1॥रहाउ॥

    आनीले कु्मभु भराईले ऊदक राज कुआरि पुरंदरीए ॥
    हसत बिनोद बीचार करती है चीतु सु गागरि राखीअले ॥2॥

    मंदरु एकु दुआर दस जा के गऊ चरावन छाडीअले ॥
    पांच कोस पर गऊ चरावत चीतु सु बछरा राखीअले ॥3॥

    कहत नामदेउ सुनहु तिलोचन बालकु पालन पउढीअले ॥
    अंतरि बाहरि काज बिरूधी चीतु सु बारिक राखीअले ॥4॥1॥972॥

    (आनीले=लाया, गुड्डी=पतंग, मधे=में, बात
    बतऊआ=बात बात, बेधियले=टिकना,विझ्झना, कनिक
    कला=सोनो का कारीगर भाव सुनार, मांडियले=
    जुड़्या रहता है, कुंभु=घड़ा, उदक=पानी, राज कुँआरी=
    जुआन लड़कियाँ, पुरन्दरीए=शहर में से, पालन=पालना,
    पउढियले=पाई रखती है, बिरूधी=व्यस्त होई)

    31. बेद पुरान सासत्र आनंता गीत कबित न गावउगो

    बेद पुरान सासत्र आनंता गीत कबित न गावउगो ॥
    अखंड मंडल निरंकार महि अनहद बेनु बजावउगो ॥1॥

    बैरागी रामहि गावउगो ॥
    सबदि अतीत अनाहदि राता आकुल कै घरि जाउगो ॥1॥रहाउ॥

    इड़ा पिंगुला अउरु सुखमना पउनै बंधि रहाउगो ॥
    चंदु सूरजु दुइ सम करि राखउ ब्रहम जोति मिलि जाउगो ॥2॥

    तीरथ देखि न जल महि पैसउ जीअ जंत न सतावउगो ॥
    अठसठि तीरथ गुरू दिखाए घट ही भीतरि न्हाउगो ॥3॥

    पंच सहाई जन की सोभा भलो भलो न कहावउगो ॥
    नामा कहै चितु हरि सिउ राता सुंन समाधि समाउगो ॥4॥2॥972॥

    (आनंता=असंख्य, न गावउगो=मैं नहीं गाउंदा, अखंड मंडल=
    अविनाशी टिकाने वाला, अनहद बेनु=एक-रस लगती रहण
    वाली बाँसुरी, बजावउगो=मैं बजा रहा हूँ, बैरागी=वैरागवान हो कर,
    अतीत=विरक्त,उदास, अनाहदि=अनाहद में, एक-रस में,
    आकुल कै घरि=सर्व-व्यापक प्रभु के चरणों में, जाउगो=मैं
    जांदा हूँ, मैं टिका रहता हूँ, पउनै बंधी=पवन को बाँध कर,
    चन्दु=बांयी सुर इड़ा, सूरजु=दाहिनी सुर लंगड़ा, सम=बराबर,
    न पैसउ=नहीं पड़ता, भीतरी=अंदर, पंच सहायक=सज्जन मित्र,
    राता=रंगा हुआ, सुन्न समाधी=मन की विचार रहित इकाग्रता)

    32. माइ न होती बापु न होता करमु न होती काइआ

    माइ न होती बापु न होता करमु न होती काइआ ॥
    हम नही होते तुम नही होते कवनु कहां ते आइआ ॥1॥

    राम कोइ न किस ही केरा ॥
    जैसे तरवरि पंखि बसेरा ॥1॥रहाउ॥

    चंदु न होता सूरु न होता पानी पवनु मिलाइआ ॥
    सासतु न होता बेदु न होता करमु कहां ते आइआ ॥2॥

    खेचर भूचर तुलसी माला गुर परसादी पाइआ ॥
    नामा प्रणवै परम ततु है सतिगुर होइ लखाइआ ॥3॥3॥973॥

    (माय=माँ, काया=मनुष्य शरीर, हम तुम=हम सभी जीव, होते=होते था,
    कैरा=का, तरवर=वृक्षों पर, पक्षी=पक्षी, सूअर=सूरज, करमू कहूँ और आया=
    जीव के किये कर्मों की अजय हस्ती ही नहीं था, खेचर=(आसमान में=आकाश, चर=चलना)
    प्राण ऊपर चढाने, बेवकूफ़=(भूमी=धरती) प्राण नीचे उतारने, खेचर बेवकूफ़=प्राण चाढ़ने
    उतारने, प्राणायाम, ततु=मूल, परम ततु=सब से बड़ा जो जगत का मूल है, हुए=प्रगट हो के)

    33. बानारसी तपु करै उलटि तीरथ मरै अगनि दहै काइआ कलपु कीजै

    बानारसी तपु करै उलटि तीरथ मरै अगनि दहै काइआ कलपु कीजै ॥
    असुमेध जगु कीजै सोना गरभ दानु दीजै राम नाम सरि तऊ न पूजै॥1॥

    छोडि छोडि रे पाखंडी मन कपटु न कीजै ॥
    हरि का नामु नित नितहि लीजै ॥1॥रहाउ॥

    गंगा जउ गोदावरि जाईऐ कु्मभि जउ केदार न्हाईऐ गोमती सहस गऊ दानु कीजै ॥
    कोटि जउ तीरथ करै तनु जउ हिवाले गारै राम नाम सरि तऊ न पूजै ॥2॥

    असु दान गज दान सिहजा नारी भूमि दान ऐसो दानु नित नितहि कीजै ॥
    आतम जउ निरमाइलु कीजै आप बराबरि कंचनु दीजै राम नाम सरि तऊ न पूजै ॥3॥

    मनहि न कीजै रोसु जमहि न दीजै दोसु निरमल निरबाण पदु चीन्हि लीजै ॥
    जसरथ राइ नंदु राजा मेरा राम चंदु प्रणवै नामा ततु रसु अम्रितु पीजै ॥4॥4॥973॥

    (उलटि=उल्टा लटक कर, दहै=जले, काया=शरीर, काया कलपु=शरीर का इलाज,
    असमेध जगु=वह यज्ञ जिस में घोड़ो की बलि दी जाती थी, गर्भ दानु=छिपा के
    दान, श्री=बराबर, सुराही= और, केदार=एक हिंदु तीर्थ, गोमती=एक नदी, गोदावरी=
    गो (सवरग) देने वाली दक्षिण की एक नदी, सहस=हज़ार, कोटी=करोड़ों, हिवाले=हिमालै परबत
    उत्ते, आश्विन=घोड़े, सेहजा=सेज, भूमि=ज़मीन, आतमु=अपना आप, निरमायलु=देवतों की भेंट,
    कंचनु=सोना, मनह=मन में, रोसु=गिला,गुस्सा, जमह=यम को, निर्वाण पदु=वह अवस्था जो
    वाशना-रहित है, चीनी लिजे=पहचान लें, जसरथ राय नन्दू=राजा जसरथ का पुत्र, मेरा=
    मेरे लिए, ततु रस=नाम-रूप रस, पीजै=पीना चाहिए)

    माली गउड़ा बाणी भगत नामदेव जी की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    34. धनि धंनि ओ राम बेनु बाजै

    धनि धंनि ओ राम बेनु बाजै ॥
    मधुर मधुर धुनि अनहत गाजै ॥1॥रहाउ॥

    धनि धनि मेघा रोमावली ॥
    धनि धनि क्रिसन ओढै कांबली ॥1॥

    धनि धनि तू माता देवकी ॥
    जिह ग्रिह रमईआ कवलापती ॥2॥

    धनि धनि बन खंड बिंद्राबना ॥
    जह खेलै स्री नाराइना ॥3॥

    बेनु बजावै गोधनु चरै ॥
    नामे का सुआमी आनद करै ॥4॥1॥988॥

    (धन्नि=सदके होने-योग्य, राम बेनु=राम दी
    बंसरी, बाजे=लग रही है, अग्नि=सुर, अनहद=
    इक्क-रस, गाजे=गरज रही है, मेघा=मेढ़ा,
    रोमावली=(रोम आवली) रोमों की कतार, ऊन,
    ओढे=पहनता है, जेह ग्रेह=जिसके घर में,
    रमईआ=सुंदर राम जी, कवलापती=बेवकूफ दे
    पती, बनखंड=जंगल का हिस्सा, वृंदावन=तुलसी
    दा जंगल, गोधनु=गाईं,आनदु=ख़ुशी,कौतक)

    35. मेरो बापु माधउ तू धनु केसौ सांवलीओ बीठुलाइ

    मेरो बापु माधउ तू धनु केसौ सांवलीओ बीठुलाइ ॥1॥रहाउ॥

    कर धरे चक्र बैकुंठ ते आए गज हसती के प्रान उधारीअले ॥
    दुहसासन की सभा द्रोपती अम्बर लेत उबारीअले ॥1॥

    गोतम नारि अहलिआ तारी पावन केतक तारीअले ॥
    ऐसा अधमु अजाति नामदेउ तउ सरनागति आईअले ॥2॥2॥988॥

    (माधउ=हे माधो, धनु=धन्नू,सलाहुण-योग्य, मामले से= लंबे मामलों वाला प्रभु,
    कर=हाथों में, रखे=रख कर, हस्ती=हाथी, आसमान लेत=कपड़े लांहद्यें,
    उबारियले= बचायी, गौतम नारी=गौतम ऋषि की दुल्हन, पवित्र=पवित्र,
    केतक=कई जीव, अधमु=नीच, अजाति=नीची जाति वाला, तउ=तेरी)

    36. सभै घट रामु बोलै रामा बोलै

    सभै घट रामु बोलै रामा बोलै ॥
    राम बिना को बोलै रे ॥1॥रहाउ॥

    एकल माटी कुंजर चीटी भाजन हैं बहु नाना रे ॥
    असथावर जंगम कीट पतंगम घटि घटि रामु समाना रे ॥1॥

    एकल चिंता राखु अनंता अउर तजहु सभ आसा रे ॥
    प्रणवै नामा भए निहकामा को ठाकुरु को दासा रे ॥2॥3॥988॥

    (घट=शरीर, को=कौन, अकेलापन=एक ही, कुंजर=हाथी,
    चिटी=चींटी, भाजन=बर्तन, नाना=कई तरह के, असथावर=
    इक्को जगह टिकने वाले,वृक्ष, जंगम=चलने-फिरन वाले, कीट=
    कीड़े, अनंता=असंख्य प्रभु, नेहकामा=सुगंध रहत)

    कबीर का सबदु रागु मारू बाणी नामदेउ जी की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    37. चारि मुकति चारै सिधि मिलि कै दूलह प्रभ की सरनि परिओ

    चारि मुकति चारै सिधि मिलि कै दूलह प्रभ की सरनि परिओ ॥
    मुकति भइओ चउहूं जुग जानिओ जसु कीरति माथै छत्रु धरिओ ॥1॥

    राजा राम जपत को को न तरिओ ॥
    गुर उपदेसि साध की संगति भगतु भगतु ता को नामु परिओ ॥1॥रहाउ॥

    संख चक्र माला तिलकु बिराजित देखि प्रतापु जमु डरिओ ॥
    निरभउ भए राम बल गरजित जनम मरन संताप हिरिओ ॥2॥

    अ्मबरीक कउ दीओ अभै पदु राजु भभीखन अधिक करिओ ॥
    नउ निधि ठाकुरि दई सुदामै ध्रूअ अटलु अजहू न टरिओ ॥3॥

    भगत हेति मारिओ हरनाखसु नरसिंघ रूप होइ देह धरिओ ॥
    नामा कहै भगति बसि केसव अजहूं बलि के दुआर खरो ॥4॥1॥1105॥

    (चारि मुक्ति=चार किस्म की मुकतियें, सीधी मिल कै=चार मुकतियां
    अठारें सीधी के साथ मिल कर, दूलह क्या=खसम की, जानो=प्रसिद्ध हो गया,
    जसु=शोभा, को को न=कौन नहीं, हीरा=दूर हो जाता है, अमबरीक=सूरज बंसी
    इक राजा, भक्त हैती=भक्त की ख़ातिर, देह रखनाती=शरीर धारा, बसी=
    वस्स में, केसव=लंबे मामलों वाला, बल्ल्ही=एक भक्त राजा सी)

    भैरउ बाणी नामदेउ जीउ की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    38. रे जिहबा करउ सत खंड

    रे जिहबा करउ सत खंड ॥
    जामि न उचरसि स्री गोबिंद ॥1॥

    रंगी ले जिहबा हरि कै नाइ ॥
    सुरंग रंगीले हरि हरि धिआइ ॥1॥रहाउ॥

    मिथिआ जिहबा अवरें काम॥
    निरबाण पदु इकु हरि को नामु ॥2॥

    असंख कोटि अन पूजा करी ॥
    एक न पूजसि नामै हरी ॥3॥

    प्रणवै नामदेउ इहु करणा ॥
    अनंत रूप तेरे नाराइणा ॥4॥1॥1163॥

    (सतखंड=सौ टुकड़े, जामि=जब, सुरंग=
    सोहने रंग, माना=झूठ,व्यर्थ, अन=
    होरें दी)

    39. पर धन पर दारा परहरी

    पर धन पर दारा परहरी ॥
    ता कै निकटि बसै नरहरी ॥1॥

    जो न भजंते नाराइणा ॥
    तिन का मै न करउ दरसना ॥1॥रहाउ॥

    जिन कै भीतरि है अंतरा ॥
    जैसे पसु तैसे ओइ नरा ॥2॥

    प्रणवति नामदेउ नाकहि बिना ॥
    ना सोहै बतीस लखना॥ ॥3॥2॥1163॥

    (दारा=स्त्री, प्रहरी=त्याग दी,
    अंतरा=फ़र्क,दूरी, नाकह=नाक से,
    बतीस समझना=बत्तीस लक्षणों वाला,सुन्दर)

    40. दूधु कटोरै गडवै पानी

    दूधु कटोरै गडवै पानी ॥
    कपल गाइ नामै दुहि आनी ॥1॥

    दूधु पीउ गोबिंदे राइ ॥
    दूधु पीउ मेरो मनु पतीआइ ॥
    नाही त घर को बापु रिसाइ ॥1॥रहाउ॥

    सोइन कटोरी अम्रित भरी ॥
    लै नामै हरि आगै धरी ॥2॥

    एकु भगतु मेरे हिरदे बसै ॥
    नामे देखि नराइनु हसै ॥3॥

    दूधु पीआइ भगतु घरि गइआ ॥
    नामे हरि का दरसनु भइआ ॥4॥3॥1163॥

    (कपल गाय=गोरी गाय, पतियाइ=
    धीरज आ जाये, रिसाय=दुखी होगा,
    सुइन=सोनो की,पवित्तर)

    41. मै बउरी मेरा रामु भतारु

    मै बउरी मेरा रामु भतारु ॥
    रचि रचि ता कउ करउ सिंगारु ॥1॥

    भले निंदउ भले निंदउ भले निंदउ लोगु ॥
    तनु मनु राम पिआरे जोगु ॥1॥रहाउ॥

    बादु बिबादु काहू सिउ न कीजै ॥
    रसना राम रसाइनु पीजै ॥2॥

    अब जीअ जानि ऐसी बनि आई ॥
    मिलउ गुपाल नीसानु बजाई ॥3॥

    उसतति निंदा करै नरु कोई ॥
    नामे स्रीरंगु भेटल सोई ॥4॥4॥1164॥

    (बउरी=बेवकूफ, पति=खसम, रची=
    फब, दिया कउ=उस की ख़ातिर, जोगु=लायक,
    रसायनु=उत्तम रस, नीसानु बजायी=ढोल बजा कर, श्रीरंगु=
    परमात्मा, भेटल=मिल पड़ा है)

    42. कबहू खीरि खाड घीउ न भावै

    कबहू खीरि खाड घीउ न भावै ॥
    कबहू घर घर टूक मगावै ॥
    कबहू कूरनु चने बिनावै ॥1॥

    जिउ रामु राखै तिउ रहीऐ रे भाई ॥
    हरि की महिमा किछु कथनु न जाई ॥1॥रहाउ॥

    कबहू तुरे तुरंग नचावै ॥
    कबहू पाइ पनहीओ न पावै ॥2॥

    कबहू खाट सुपेदी सुवावै ॥
    कबहू भूमि पैआरु न पावै ॥3॥

    भनति नामदेउ इकु नामु निसतारै ॥
    जिह गुरु मिलै तिह पारि उतारै ॥4॥5॥1164॥

    (खीरि=खीर,तस्मई, कूरनु=कूड़ा,
    चने=चने, बिनावै=चुणाउंदा है,
    तुरे,घोड़ा=घोड़े, डाले=पैरीं, पनहीयो=
    जुत्ती, पैआरु=पराली)

    43. हसत खेलत तेरे देहुरे आइआ

    हसत खेलत तेरे देहुरे आइआ ॥
    भगति करत नामा पकरि उठाइआ ॥1॥

    हीनड़ी जाति मेरी जादिम राइआ ॥
    छीपे के जनमि काहे कउ आइआ ॥1॥रहाउ॥

    लै कमली चलिओ पलटाइ ॥
    देहुरै पाछै बैठा जाइ ॥2॥

    जिउ जिउ नामा हरि गुण उचरै ॥
    भगत जनां कउ देहुरा फिरै ॥3॥6॥1164॥

    (देहुरे=मंदिर में, जादिम रायआ=
    है कृष्ण ! हे प्रभु !)

    44. जैसी भूखे प्रीति अनाज

    जैसी भूखे प्रीति अनाज ॥
    त्रिखावंत जल सेती काज ॥
    जैसी मूड़ कुट्मब पराइण ॥
    ऐसी नामे प्रीति नराइण ॥1॥

    नामे प्रीति नाराइण लागी ॥
    सहज सुभाइ भइओ बैरागी ॥1॥रहाउ॥

    जैसी पर पुरखा रत नारी ॥
    लोभी नरु धन का हितकारी ॥
    कामी पुरख कामनी पिआरी ॥
    ऐसी नामे प्रीति मुरारी ॥2॥

    साई प्रीति जि आपे लाए ॥
    गुर परसादी दुबिधा जाए ॥
    कबहु न तूटसि रहिआ समाइ ॥
    नामे चितु लाइआ सचि नाइ ॥3॥

    जैसी प्रीति बारिक अरु माता ॥
    ऐसा हरि सेती मनु राता ॥
    प्रणवै नामदेउ लागी प्रीति ॥
    गोबिदु बसै हमारै चीति ॥4॥1॥7॥1164॥

    (त्रिखावंत=प्यासा, सफ़ेद=के साथ, काम=ज़रूरत,
    कुटम्ब=परिवार, निर्भर=आसरे, सहज सुभाय=
    सुते ही, बैरागी=विरक्त, रक्त=रत्ती हुई, हितकारी=
    हित (प्रेम) करन वाला, कामी=लैंगिक, कामिनी=स्त्री,
    सायी=वही, जी=जो, दुविधा=सुमेर पर्वत-तैर, न तूटसि=
    कदे टूटती नहीं, नाय=नाम में, राता=रंगा हुआ, चिति=चित्त में)

    45. घर की नारि तिआगै अंधा

    घर की नारि तिआगै अंधा ॥
    पर नारी सिउ घालै धंधा ॥
    जैसे सि्मबलु देखि सूआ बिगसाना ॥
    अंत की बार मूआ लपटाना ॥1॥

    पापी का घरु अगने माहि ॥
    जलत रहै मिटवै कब नाहि ॥1॥रहाउ॥

    हरि की भगति न देखै जाइ ॥
    मारगु छोडि अमारगि पाइ ॥
    मूलहु भूला आवै जाइ ॥
    अम्रितु डारि लादि बिखु खाइ ॥2॥

    जिउ बेस्वा के परै अखारा ॥
    कापरु पहिरि करहि सींगारा ॥
    पूरे ताल निहाले सास ॥
    वा के गले जम का है फास ॥3॥

    जा के मसतकि लिखिओ करमा ॥
    सो भजि परि है गुर की सरना ॥
    कहत नामदेउ इहु बीचारु ॥
    इन बिधि संतहु उतरहु पारि ॥4॥2॥8॥1165॥

    (घालै धंधा=मंद कर्म करता है, सूआ=तोता,
    बिगसाना=ख़ुश होता है, लपटाना=फंस कर,
    अगने प्रेमी=आग में, अमारगि=गलत रास्ते पर,
    मूलहु=जगत के मूल प्रभु से, डारि=गिरा कर,
    लादी=भार कर, अखारा=अखाड़ा,तमाशा, पूरे
    ताल=नाचती है, नेहाले=देखती है, कर्मा=बख़शश
    भजि=दौड़ कर, प्रिय है=पड़ता है, इन बिधि=इसतरीके नाल)

    46. संडा मरका जाइ पुकारे

    संडा मरका जाइ पुकारे ॥
    पड़ै नही हम ही पचि हारे ॥
    रामु कहै कर ताल बजावै चटीआ सभै बिगारे ॥1॥

    राम नामा जपिबो करै ॥
    हिरदै हरि जी को सिमरनु धरै ॥1॥रहाउ॥

    बसुधा बसि कीनी सभ राजे बिनती करै पटरानी ॥
    पूतु प्रहिलादु कहिआ नही मानै तिनि तउ अउरै ठानी ॥2॥

    दुसट सभा मिलि मंतर उपाइआ करसह अउध घनेरी ॥
    गिरि तर जल जुआला भै राखिओ राजा रामि माइआ फेरी ॥3॥

    काढि खड़गु कालु भै कोपिओ मोहि बताउ जु तुहि राखै ॥
    पीत पीतांबर त्रिभवण धणी थ्मभ माहि हरि भाखै ॥4॥

    हरनाखसु जिनि नखह बिदारिओ सुरि नर कीए सनाथा ॥
    कहि नामदेउ हम नरहरि धिआवह रामु अभै पद दाता ॥5॥3॥9॥1165॥

    (संडा मरका=सुक्राचारय दे दो पुत्र संड और अमरक
    जो प्रहलाद को पढ़ाने के लिए नियुक्त किये गए थे,
    पचि हारे=नष्ट हो लत्थे हूँ, कर=हाथों के साथ,
    चाटा=विद्यार्थी, जपिबो करे=सदा जपता रहता है,
    बसुधा=धरती, तीनी=उस ने, अउरै=कोई होर
    गल्ल ही, ठानी=मन में पकी की हुई है, मंतर
    उपायआ=सलाह पका के लिए, करसह…घनेरी=उमर
    मुका देंगे, गिरी=पहाड़, तैर=वृक्ष, ज्वाला=अग्ग
    मायआ फेरी=माया का सुभाउ उल्टा दिया, खड़गु=
    तलवार, कोप्यो=गुस्से में आया, पितांबर=पीले
    कप्पड़्यें वाला कृष्ण,प्रभु, त्रिभवन धनी= परमात्मा,
    भाखै=बोलता है, जिनि=जिसने, नखह=नाख़ुनों के साथ,
    बिदार्यो=चीर दिया, सनाथा=(स नाथ) खसम वाले,
    नरहरि=परमात्मा, अभय ओहदा दाता=निडरता दा
    दरजा देने वाला)

    47. सुलतानु पूछै सुनु बे नामा

    सुलतानु पूछै सुनु बे नामा ॥
    देखउ राम तुम्हारे कामा ॥1॥

    नामा सुलताने बाधिला ॥
    देखउ तेरा हरि बीठुला ॥1॥रहाउ॥

    बिसमिलि गऊ देहु जीवाइ ॥
    नातरु गरदनि मारउ ठांइ ॥2॥

    बादिसाह ऐसी किउ होइ ॥
    बिसमिलि कीआ न जीवै कोइ ॥3॥

    मेरा कीआ कछू न होइ ॥
    करि है रामु होइ है सोइ ॥4॥

    बादिसाहु चड़्हिओ अहंकारि ॥
    गज हसती दीनो चमकारि ॥5॥

    रुदनु करै नामे की माइ ॥
    छोडि रामु की न भजहि खुदाइ ॥6॥

    न हउ तेरा पूंगड़ा न तू मेरी माइ ॥
    पिंडु पड़ै तउ हरि गुन गाइ ॥7॥

    करै गजिंदु सुंड की चोट ॥
    नामा उबरै हरि की ओट ॥8॥

    काजी मुलां करहि सलामु ॥
    इनि हिंदू मेरा मलिआ मानु ॥9॥

    बादिसाह बेनती सुनेहु ॥
    नामे सर भरि सोना लेहु ॥10॥

    मालु लेउ तउ दोजकि परउ ॥
    दीनु छोडि दुनीआ कउ भरउ ॥11॥

    पावहु बेड़ी हाथहु ताल ॥
    नामा गावै गुन गोपाल ॥12॥

    गंग जमुन जउ उलटी बहै ॥
    तउ नामा हरि करता रहै ॥13॥

    सात घड़ी जब बीती सुणी ॥
    अजहु न आइओ त्रिभवण धणी ॥14॥

    पाखंतण बाज बजाइला ॥
    गरुड़ चड़्हे गोबिंद आइला ॥15॥

    अपने भगत परि की प्रतिपाल ॥
    गरुड़ चड़्हे आए गोपाल ॥16॥

    कहहि त धरणि इकोडी करउ ॥
    कहहि त ले करि ऊपरि धरउ ॥17॥

    कहहि त मुई गऊ देउ जीआइ ॥
    सभु कोई देखै पतीआइ ॥18॥

    नामा प्रणवै सेल मसेल ॥
    गऊ दुहाई बछरा मेलि ॥19॥

    दूधहि दुहि जब मटुकी भरी ॥
    ले बादिसाह के आगे धरी ॥20॥

    बादिसाहु महल महि जाइ ॥
    अउघट की घट लागी आइ ॥21॥

    काजी मुलां बिनती फुरमाइ ॥
    बखसी हिंदू मै तेरी गाइ ॥22॥

    नामा कहै सुनहु बादिसाह ॥
    इहु किछु पतीआ मुझै दिखाइ ॥23॥

    इस पतीआ का इहै परवानु ॥
    साचि सीलि चालहु सुलितान ॥24॥

    नामदेउ सभ रहिआ समाइ ॥
    मिलि हिंदू सभ नामे पहि जाहि ॥25॥

    जउ अब की बार न जीवै गाइ ॥
    त नामदेव का पतीआ जाइ ॥26॥

    नामे की कीरति रही संसारि ॥
    भगत जनां ले उधरिआ पारि ॥27॥

    सगल कलेस निंदक भइआ खेदु ॥
    नामे नाराइन नाही भेदु ॥28॥1॥10॥1165॥

    (बे=हे, बाध्या=बाँध लिया, बीठुला=प्रभु,
    बिसमिलि=मरी हुई, नातर=नहीं तो,
    ठाय=इसी जगह, चमकारि दिनों=उकसाया,
    पूंगड़ा=बच्चा, पिंडु पड़े हुए=अगर शरीर भी नाश हो जाऐ,
    गजिन्दु=हाथी,बड़ा हाथी, उबरै=बच गया, कब्ज़ा करा=
    तोड़ दिया है, सर भरी=तोल बराबर, मालू=घूस दा
    धन, भरउ=इकट्ठी करूँ, पाखंतण=पंख, बाज=बाजा,
    बजायला=बजाया, आइला=आया, प्रिय=पर,
    इकोडी=टेढ़ी,उलटी, ले किए=पकड़ कर, ऊपरी धरउ=मैं
    टंग वालों, पतियाइ=परता कर, सेलम=छेद,रस्सी नाल
    बन्न्हना, सेल=पिछले पैर, अउघट क्या कम=मुश्किल घड़ी,
    पतिया=तसल्ली, स्वीकृत=माप,अंदाज़ा, साचि=सत्य में,
    सिली=अच्छे सुभाउ में, खेदु=दुक्ख)

    48. जउ गुरदेउ त मिलै मुरारि

    जउ गुरदेउ त मिलै मुरारि ॥
    जउ गुरदेउ त उतरै पारि ॥
    जउ गुरदेउ त बैकुंठ तरै ॥
    जउ गुरदेउ त जीवत मरै ॥1॥

    सति सति सति सति सति गुरदेव ॥
    झूठु झूठु झूठु झूठु आन सभ सेव ॥1॥रहाउ॥

    जउ गुरदेउ त नामु द्रिड़ावै ॥
    जउ गुरदेउ न दह दिस धावै ॥
    जउ गुरदेउ पंच ते दूरि ॥
    जउ गुरदेउ न मरिबो झूरि ॥2॥

    जउ गुरदेउ त अम्रित बानी ॥
    जउ गुरदेउ त अकथ कहानी ॥
    जउ गुरदेउ त अम्रित देह ॥
    जउ गुरदेउ नामु जपि लेहि ॥3॥

    जउ गुरदेउ भवन त्रै सूझै ॥
    जउ गुरदेउ ऊच पद बूझै ॥
    जउ गुरदेउ त सीसु अकासि ॥
    जउ गुरदेउ सदा साबासि ॥4॥

    जउ गुरदेउ सदा बैरागी ॥
    जउ गुरदेउ पर निंदा तिआगी ॥
    जउ गुरदेउ बुरा भला एक ॥
    जउ गुरदेउ लिलाटहि लेख ॥5॥

    जउ गुरदेउ कंधु नही हिरै ॥
    जउ गुरदेउ देहुरा फिरै ॥
    जउ गुरदेउ त छापरि छाई ॥
    जउ गुरदेउ सिहज निकसाई ॥6॥

    जउ गुरदेउ त अठसठि नाइआ ॥
    जउ गुरदेउ तनि चक्र लगाइआ ॥
    जउ गुरदेउ त दुआदस सेवा ॥
    जउ गुरदेउ सभै बिखु मेवा ॥7॥

    जउ गुरदेउ त संसा टूटै ॥
    जउ गुरदेउ त जम ते छूटै॥
    जउ गुरदेउ त भउजल तरै ॥
    जउ गुरदेउ त जनमि न मरै ॥8॥

    जउ गुरदेउ अठदस बिउहार ॥
    जउ गुरदेउ अठारह भार॥
    बिनु गुरदेउ अवर नही जाई॥
    नामदेउ गुर की सरणाई ॥9॥1॥2॥11॥1166॥

    (सति=सदा-स्थिर रहने वाली, आन=ओर,
    दहदिस=दस पैसे का सिक्का तरफ, पंच=कामादिक,
    अनकहा=उस प्रभु की जो बयान नहीं हो सकता, अमृत=
    पवित्तर, देह=शरीर, सीसु=सिर,दिमाग़,मन,
    लिलाटह=माथे पर, कंधु=शरीर, न हीरे=चुरांदा
    नहीं, छापरि=कुटिया,झोंपड़ी, सेहज=खाट,पलंग,
    निकसायी=निकाल दी, अठसठि=अड़सठ तीर्थ,
    तनी=शरीर पर, दुआदस सेवा=बारह सिव-लिंगां
    दी पूजा, आठ दस=अठरह सिंमृतियें, अठारह भार=
    सारी वनस्पती, बेटी=थां)

    49. आउ कलंदर केसवा

    आउ कलंदर केसवा ॥
    करि अबदाली भेसवा ॥रहाउ॥

    जिनि आकास कुलह सिरि कीनी कउसै सपत पयाला ॥
    चमर पोस का मंदरु तेरा इह बिधि बने गुपाला ॥1॥

    छपन कोटि का पेहनु तेरा सोलह सहस इजारा ॥
    भार अठारह मुदगरु तेरा सहनक सभ संसारा ॥2॥

    देही महजिदि मनु मउलाना सहज निवाज गुजारै ॥
    बीबी कउला सउ काइनु तेरा निरंकार आकारै ॥3॥

    भगति करत मेरे ताल छिनाए किह पहि करउ पुकारा ॥
    नामे का सुआमी अंतरजामी फिरे सगल बेदेसवा ॥4॥1॥1167॥

    (आउ=सुस्वागतम, कलंदर=हे कलंदर ! केसवा=हे केशव,
    करी=कर कर, अब्दाली भेसवा=अब्दाली फकीरों वाला सुंदर भेस,
    जिनि=जिस ने, कुलह=टोपी,कुल्ला, कउसै=खड़ावें, प्याला=पाताल,
    चमर पोस=चमड़ा की पोशाक वाले,सभी जीव-जंत, मंदिर=घर, गुपाला=
    है धरती के रक्षक, छिपा हुआ कोटी=छप्पन करोड़ बादल, पेहन=चोग़ा,
    सोलह सहस=सोलह हज़ार, एकाधिकार=धोती, भार अठारह= सारी वनस्पती,
    मुदगरु=फ़कीर लोगों का डंडा, सहनक=मिट्टी की रकेबी, महजिदि=मस्जिद,
    मउलाना=मौलवी,मूल्यों, सहज आदर दे=स्थिरता-रूप निमाज़, कउला=माया,
    सउ=के साथ,के साथ, कायनु=नकाह,विवाह, छिनाए=खुहाए, केह पहना=ओर किस
    पास? पुकारा=फ़रियाद, शिकैत, सगल बेदेसवा=सभी देशों विच)

    बसंतु बाणी नामदेउ जी की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    50. साहिबु संकटवै सेवकु भजै

    साहिबु संकटवै सेवकु भजै ॥
    चिरंकाल न जीवै दोऊ कुल लजै ॥1॥

    तेरी भगति न छोडउ भावै लोगु हसै ॥
    चरन कमल मेरे हीअरे बसैं ॥1॥रहाउ॥

    जैसे अपने धनहि प्रानी मरनु मांडै ॥
    तैसे संत जनां राम नामु न छाडैं ॥2॥

    गंगा गइआ गोदावरी संसार के कामा ॥
    नाराइणु सुप्रसंन होइ त सेवकु नामा ॥3॥1॥1195॥

    (संकटवै=संकट दे, भागे=भाग जाऐ, चिरंकाल=बहुत समय,
    लजै=लाज लांदा है, हास्य=मज़ाक करे, हियरे=हृदय में,
    धनह=धन की ख़ातिर, मांडै=ठान लेता है, मरनु मांडै=
    मरना ठान लेता है, त=तब ही)

    51. लोभ लहरि अति नीझर बाजै

    लोभ लहरि अति नीझर बाजै ॥
    काइआ डूबै केसवा ॥1॥

    संसारु समुंदे तारि गोबिंदे ॥
    तारि लै बाप बीठुला ॥1॥रहाउ॥

    अनिल बेड़ा हउ खेवि न साकउ ॥
    तेरा पारु न पाइआ बीठुला ॥2॥

    होहु दइआलु सतिगुरु मेलि तू मो कउ ॥
    पारि उतारे केसवा ॥3॥

    नामा कहै हउ तरि भी न जानउ ॥
    मो कउ बाह देहि बाह देहि बीठुला ॥4॥2॥1196॥

    (नीझर=झील,चश्मा, बाजे=लग रही हैं, अनिल=
    हवा, खेवि न साकउ=चप्पू नहीं लगा सकता, खेवि= चप्पू किसान का सारा सामान,
    पारु=दूसरा किनारा, मो कउ=मुझे, उतारे=उतारी,निकलवा,त्रि न जानउ=
    मैं तरना नहीं जाणदा)

    52. सहज अवलि धूड़ि मणी गाडी चालती

    सहज अवलि धूड़ि मणी गाडी चालती ॥
    पीछै तिनका लै करि हांकती ॥1॥

    जैसे पनकत थ्रूटिटि हांकती ॥
    सरि धोवन चाली लाडुली ॥1॥रहाउ॥

    धोबी धोवै बिरह बिराता ॥
    हरि चरन मेरा मनु राता ॥2॥

    भणति नामदेउ रमि रहिआ ॥
    अपने भगत पर करि दइआ ॥3॥3॥1196॥

    (सहज असाध्य=पहले सहज ही सहज ही, धूली वीर्य=
    मेले कपड़े, तिनका=लाठी, पनकत=की तरफ,
    थ्रूटिटि=कह कह कर, हाँकती=हाँकती है,सरी=
    तालाब, लाडुली=प्यारी, बिरह बिराता=बिरहा
    (प्यार) के रंग में रंगा, भणति=आखदा है,
    रमी रही=सब स्थान पर हेरे=हे !)

    सारंग बाणी नामदेउ जी की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    53. काएं रे मन बिखिआ बन जाइ

    काएं रे मन बिखिआ बन जाइ ॥
    भूलौ रे ठगमूरी खाइ ॥1॥रहाउ॥

    जैसे मीनु पानी महि रहै ॥
    काल जाल की सुधि नही लहै ॥
    जिहबा सुआदी लीलित लोह ॥
    ऐसे कनिक कामनी बाधिओ मोह ॥1॥

    जिउ मधु माखी संचै अपार ॥
    मधु लीनो मुखि दीनी छारु ॥
    गऊ बाछ कउ संचै खीरु ॥
    गला बांधि दुहि लेइ अहीरु ॥2॥

    माइआ कारनि स्रमु अति करै ॥
    सो माइआ लै गाडै धरै ॥
    अति संचै समझै नही मूड़्ह ॥
    धनु धरती तनु होइ गइओ धूड़ि ॥3॥

    काम क्रोध त्रिसना अति जरै ॥
    साधसंगति कबहू नही करै ॥
    कहत नामदेउ ता ची आणि ॥
    निरभै होइ भजीऐ भगवान ॥4॥1॥1252॥

    (काएं=क्यों? विष=माया, बन=जंगल,
    भूलो=भ्रो में पड़ा हुआ है, ठगमूरी=ठग-बूटी,
    धतूरा, मापते=मछली, काल जाल क्या=मौत-रूप जाल की,
    सुधि=सूझ, लीलित=निगलदी है, लोहा=लोहो की चिटकनी,
    कनिक=सोना, मधु=शहद, संचै=इकट्ठा करती है, छारु=
    सुआह, बाछ कउ=बछड़ो के लिए, खीरु=दूध, दुह लेई=चो
    लैंदा है, अहीरु=गुज्जर, स्रमु=मेहनत, गाडै=दबा देंदा है,
    मूढ़=मूर्ख, धूली=मिट्टी, सहे=जलता है, दिया चीं=उस की,आनी=ओट)

    54. बदहु की न होड माधउ मो सिउ

    बदहु की न होड माधउ मो सिउ ॥
    ठाकुर ते जनु जन ते ठाकुरु खेलु परिओ है तो सिउ ॥1॥रहाउ॥

    आपन देउ देहुरा आपन आप लगावै पूजा ॥
    जल ते तरंग तरंग ते है जलु कहन सुनन कउ दूजा ॥1॥

    आपहि गावै आपहि नाचै आपि बजावै तूरा ॥
    कहत नामदेउ तूं मेरो ठाकुरु जनु ऊरा तू पूरा ॥2॥2॥1252।

    (की न=क्यों नहीं? बदहु=लांदे, होड=शर्त, मो के साथ=मेरे साथ,
    खेलू=जगत-रूप खेल, के साथ=तुम्हारे साथ, देऊ=देवता, आपन=तूं
    आप ही, तरंग=लहरों, तुर्रा=बाजा, फिरकी=घट्ट)

    55. दास अनिंन मेरो निज रूप

    दास अनिंन मेरो निज रूप ॥
    दरसन निमख ताप त्रई मोचन परसत मुकति करत ग्रिह कूप ॥1॥रहाउ॥

    मेरी बांधी भगतु छडावै बांधै भगतु न छूटै मोहि ॥
    एक समै मो कउ गहि बांधै तउ फुनि मो पै जबाबु न होइ ॥1॥

    मै गुन बंध सगल की जीवनि मेरी जीवनि मेरे दास ॥
    नामदेव जा के जीअ ऐसी तैसो ता कै प्रेम प्रगास ॥2॥3॥1252॥

    (अनिन्न=पक्का, आत्म=अपना, निमख=आँख कांपने जीतने समय के लिए,
    ताप त्रयी=तीनों ही ताप (आधी, ब्याधि, उपाधि), मोचण=नास
    करन वाला, गृह कुआँ=घर (के जंजाल)-रूप कुआँ, मोह=मेरे से,
    गह=पकड़ कर, बांधे=बाँध लिए, तउ=तब, फुनि=फिर, मो पड़=
    मुझसे,गुन बंद=गुणों का बंधा हुआ, जा कर जीव=जिस के चित्त में,
    ता कै=उस के हृदय में, प्रगास=चानण)

    रागु मलार बाणी भगत नामदेव जीउ की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    56. सेवीले गोपाल राइ अकुल निरंजन

    सेवीले गोपाल राइ अकुल निरंजन ॥
    भगति दानु दीजै जाचहि संत जन ॥1॥ रहाउ ॥

    जां चै घरि दिग दिसै सराइचा बैकुंठ भवन चित्रसाला सपत लोक सामानि पूरीअले ॥
    जां चै घरि लछिमी कुआरी चंदु सूरजु दीवड़े कउतकु कालु बपुड़ा कोटवालु सु करा सिरी ॥
    सु ऐसा राजा स्री नरहरी ॥1॥

    जां चै घरि कुलालु ब्रहमा चतुर मुखु डांवड़ा जिनि बिस्व संसारु राचीले ॥
    जां कै घरि ईसरु बावला जगत गुरू तत सारखा गिआनु भाखीले ॥
    पापु पुंनु जां चै डांगीआ दुआरै चित्र गुपतु लेखीआ ॥
    धरम राइ परुली प्रतिहारु ॥
    सो ऐसा राजा स्री गोपालु ॥2॥

    जां चै घरि गण गंधरब रिखी बपुड़े ढाढीआ गावंत आछै ॥
    सरब सासत्र बहु रूपीआ अनगरूआ आखाड़ा मंडलीक बोल बोलहि काछे ॥
    चउर ढूल जां चै है पवणु ॥
    चेरी सकति जीति ले भवणु ॥
    अंड टूक जा चै भसमती ॥
    सो ऐसा राजा त्रिभवण पती ॥3॥

    जां चै घरि कूरमा पालु सहस्र फनी बासकु सेज वालूआ ॥
    अठारह भार बनासपती मालणी छिनवै करोड़ी मेघ माला पाणीहारीआ ॥
    नख प्रसेव जा चै सुरसरी ॥
    सपत समुंद जां चै घड़थली ॥
    एते जीअ जां चै वरतणी ॥
    सो ऐसा राजा त्रिभवण धणी ॥4॥
    जां चै घरि निकट वरती अरजनु ध्रू प्रहलादु अम्बरीकु नारदु नेजै सिध बुध गण गंधरब बानवै हेला ॥
    एते जीअ जां चै हहि घरी ॥
    सरब बिआपिक अंतर हरी ॥
    प्रणवै नामदेउ तां ची आणि ॥
    सगल भगत जा चै नीसाणि ॥5॥1॥1292॥

    (सेवीले=सिमर्या है, नीची जात का=अ कुल,कुल-रहित,
    निरंजन=बिना अंजन, जो माया की कालिख से रहित है,
    जाचह=मांगते हैं, में=का, दुह=का, चीं=की, चे=के, या चे घरि=
    जिस के घर में, कुँआरी=सदा-जवान, दिग् दिखाई दे= सारियां
    दिशें, सरायचा=कनात, चित्रसाला=तस्वीर-घर, सप्त लोग=सारी सृष्टि,
    पूरियले=भरपूर है, कउतकु=खिलौना, बपुड़ा=विचारा, कोटवालु=
    कोतवाल, सुना=वह काल, करा=कर, कुलालु=
    घुम्यार, डांवड़ा=सच्चे(सांचे) में ढलाई वाला, ईसरु=शिव,
    बावला=बेवकूफ, सारखा=जैसा, भाखीले= उच्चारण करा है,डांगिया=
    चोबदार, लेखों=मुनीम, प्रतेहार=दरबार, चित्रगुपतु=यमराज दा
    उह दूत जो मनुष्य के किये अच्छे मंदे कर्मों का हिसाब लिखता है,
    परुली=प्रलो लाने वाला, गण=शिव जी के ख़ास सेवकों का जत्था, गंधर्व=
    देवत्यों के रागी, गावंत आछै=गा रहे हैं, गरूआ=बड़ा, अनगरूआ=छोटा सा,
    काछे=मन-इच्छत, सुंदर, मंडलीक=वह राजे जो किसी बड़े राज
    अग्गे कर भरते होने, शिष्या=दासी, सकती=माया, अंड=सृष्टि,
    अंड उद्धरण=धरती, भसमती=चूल्हा, कुर्मा=विशनू का दूसरा अवतार,
    कछुआ-कछुआ, पालू=पलंग,सहस्र=हज़ार, फनी=फणें वाला, बासकु=
    शेशनाग, वालूआ=तनें, पाणीहारिया=पानी भरने वाले, नख प्रसेव=
    नाख़ुनों का पसीना, सुरसरि=देव-नदी,गंगा, घड़थली=
    घड़वंजी, बरतनी=बर्तन, नेजे=एक ऋषि का नाम है, हेला=खेल,
    बानवे=बावन बीर,तैं चीं=उस की, आनी=ओट, जा चे निसानी=
    जिस के झंडे नीचे हनन)

    57. मो कउ तूं न बिसारि तू न बिसारि

    मो कउ तूं न बिसारि तू न बिसारि ॥
    तू न बिसारे रामईआ ॥1॥रहाउ॥

    आलावंती इहु भ्रमु जो है मुझ ऊपरि सभ कोपिला ॥
    सूदु सूदु करि मारि उठाइओ कहा करउ बाप बीठुला ॥1॥

    मूए हूए जउ मुकति देहुगे मुकति न जानै कोइला ॥
    ए पंडीआ मो कउ ढेढ कहत तेरी पैज पिछंउडी होइला॥2॥

    तू जु दइआलु क्रिपालु कहीअतु हैं अतिभुज भइओ अपारला ॥
    फेरि दीआ देहुरा नामे कउ पंडीअन कउ पिछवारला ॥3॥2॥1292॥

    (बिसारि=भूल न, रामईआ=हे सुंदर राम ! आलावंती=
    उच्चि जाति, भरमु=वहम, भ्रम,कोपिला=गुस्से हो गए हैं,
    सूदु=शूद्र, कहलवा करउ=मैं किह करूँ? जौ=अगर, कोयला=
    कोयी भी, पंडिया=पांडे, ढेढ=नीच, मान=इज्जत, पिछंउडी
    होइला=कम हो गई है, अतिभुज=बड़ी भुजों वाला, अपारला=
    बेअंत, नामे कउ=नामदेव की तरफ, पंडियन कउ=पंडाे की तरफ,
    पिछवारला=पिछला पक्ष,पिट्ठ)

    रागु कानड़ा बाणी नामदेव जीउ की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    58. ऐसो राम राइ अंतरजामी

    ऐसो राम राइ अंतरजामी ॥
    जैसे दरपन माहि बदन परवानी ॥1॥रहाउ॥

    बसै घटा घट लीप न छीपै ॥
    बंधन मुकता जातु न दीसै ॥1॥

    पानी माहि देखु मुखु जैसा ॥
    नामे को सुआमी बीठलु ऐसा ॥2॥1॥131੮॥

    (राम राय=प्रकाश-रूप परमात्मा, परवानी=प्रत्यक्ष,
    घटा कम=हरेक कम में, लीपन=माया का प्रभाव,
    छिपे=लेप, दाग़, न जातु=कदे भी नहीं)

    प्रभाती बाणी भगत नामदेव जी की
    ੴ सतिगुर प्रसादि

    59. मन की बिरथा मनु ही जानै कै बूझल आगै कहीऐ

    मन की बिरथा मनु ही जानै कै बूझल आगै कहीऐ ॥
    अंतरजामी रामु रवांई मै डरु कैसे चहीऐ ॥1॥

    बेधीअले गोपाल गोसाई ॥
    मेरा प्रभु रविआ सरबे ठाई ॥1॥रहाउ॥

    मानै हाटु मानै पाटु मानै है पासारी ॥
    मानै बासै नाना भेदी भरमतु है संसारी ॥2॥

    गुर कै सबदि एहु मनु राता दुबिधा सहजि समाणी ॥
    सभो हुकमु हुकमु है आपे निरभउ समतु बीचारी ॥3॥

    जो जन जानि भजहि पुरखोतमु ता ची अबिगतु बाणी ॥
    नामा कहै जगजीवनु पाइआ हिरदै अलख बिडाणी ॥4॥1॥1350॥

    (बिरथा=दुख, कै=या, बूझल आगे=बुझ्झणहार आगे, रवांयी=
    में सिमरदा हूँ, बेधियले=विन्न्ह लिया है, माने=मन में ही,
    पाटु=पटण शहर, नाना भेदी=अनेकों रूप रंग बणाण वाला,
    राता=रंगा हुआ, दुविधा=देगा-चिता-पन, समतु=एक-समान,
    बिचारी=विचारता है, दिया चीं=उन की, अबिगतु=अदृष्ट प्रभु,
    विडानी=अचरज)

    60. आदि जुगादि जुगादि जुगो जुगु ता का अंतु न जानिआ

    आदि जुगादि जुगादि जुगो जुगु ता का अंतु न जानिआ ॥
    सरब निरंतरि रामु रहिआ रवि ऐसा रूपु बखानिआ ॥1॥

    गोबिदु गाजै सबदु बाजै ॥
    आनद रूपी मेरो रामईआ ॥1॥रहाउ॥

    बावन बीखू बानै बीखे बासु ते सुख लागिला ॥
    सरबे आदि परमलादि कासट चंदनु भैइला ॥2॥

    तुम्ह चे पारसु हम चे लोहा संगे कंचनु भैइला ॥
    तू दइआलु रतनु लालु नामा साचि समाइला ॥3॥2॥1351॥

    (आदि=आधार, जुगादि=युगों के आदि से, रवि रही=
    व्यापक है, बखान्या=बयान किया गया है, गाजे=
    प्रगट हो जाता है, बाज=वज्जदा है, बावन=चंदन, बीखू=
    वृक्ष,बाने बीखे=बन में, बासु और=सुगंध से, लागिला=
    लगता है, परमलादि=सुगंधी का मूल, लकड़ी=काठ, भैइला=
    हो जाता है,तुम्ह चे=तुम्हारे जैसा, हम चे=मेरे जैसा, कंचन=सोना,
    साचि=सदा कायम रहने वाले परमात्मा में, समायला=लीन हो गया है)

    61. अकुल पुरख इकु चलितु उपाइआ

    अकुल पुरख इकु चलितु उपाइआ ॥
    घटि घटि अंतरि ब्रहमु लुकाइआ ॥1॥

    जीअ की जोति न जानै कोई ॥
    तै मै कीआ सु मालूमु होई ॥1॥रहाउ॥

    जिउ प्रगासिआ माटी कु्मभेउ ॥
    आप ही करता बीठुलु देउ ॥2॥

    जीअ का बंधनु करमु बिआपै ॥
    जो किछु कीआ सु आपै आपै ॥3॥

    प्रणवति नामदेउ इहु जीउ चितवै सु लहै ॥
    अमरु होइ सद आकुल रहै ॥4॥3॥1351॥

    (अकुल=जो धरती पर पैदा हुयी किसी चीज में से
    नहीं, चलितु=जगत तमाशा, ब्रहमु=आत्मा,
    कु्मभेउ=घड़ा, आकुल=सर्व-व्यापक)

    सलोक भगत नामदेव जी
    ੴ सतिगुर प्रसादि


    1

    नामा माइआ मोहिआ कहै तिलोचनु मीत ॥
    काहे छीपहु छाइलै राम न लावहु चीतु ॥੨੧੨॥

    2

    नामा कहै तिलोचना मुख ते रामु सम्हालि ॥
    हाथ पाउ करि कामु सभु चीतु निरंजन नालि ॥੨੧੩॥

    3

    ढूंढत डोलहि अंध गति अरु चीनत नाही संत ॥
    कहि नामा किउ पाईऐ बिनु भगतहु भगवंतु ॥੨੪੧॥