सुजानहित घनानंद

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    1. अंतर हौं किधौ अंत रहौ

    अंतर हौं किधौ अंत रहौ दृग फारि फिरौकि अभागनि भीरौं।
    आगि जरौं अकि पानी परौं अब कैसी करौं हिय का विधि धीरौं।
    जौ धन आनंद ऐसी रुची तौ कहा बस हैं अहो प्राननि पीरौं।
    पाऊं कहां हरि हाय तुम्हें, धरती में धसौं कि अकासहि चीरौं।

    2. ईछन तीछन बान बरवान सों

    ईछन तीछन बान बरवान सों पैनी दसान लै सान चढ़ावत
    प्राननि प्यासे, भरे अति पानिप, मायल घायल चोंप, चढ़ावत।
    यौं घनआनंद छावत भावत जान सजीवन ओरे ते आंवत।
    लोग हैं लागि कवित्त बनावत मोहितो मेरे कवित्त बनावत।

    3. कहियै काहि जलाय हाय जो मो मधि बीतै

    कहियै काहि जलाय हाय जो मो मधि बीतै।
    जरनि बुझै दुख जाल धकौं, निसि बासर ही तैं।
    दुसह सुजान वियोग बसौं के संजोग नित।
    बहरि परै नहिं समै गमै जियरा जितको तित।
    अहो दई रचना निरखि रीझि खीझि मुरझैं सुमन।
    ऐसी विरचि विरचिको कहा सरयौ आनंद धन।

    4. बहुत दिनानके अवधि आस-पास परे

    बहुत दिनानके अवधि आस-पास परे
    खरे अरवरनि भरे हैं उठि जान को
    कहि कहि आवन संदेसौ मन भावन को
    गहि गहि राखति ही दै दै सनमान को
    झूठी बतियानि की पत्यानि तै उदास ह्वै कें
    अब न धिरत घन आनंद निदान को।
    अधर लगे हैं आनि करिकै पयान प्रान
    चाहत चलन ये संदेसो लै सुजान को।

    5. मंतर में उर अंतर मैं सुलहै नहिं क्यों

    मंतर में उर अंतर मैं सुलहै नहिं क्यों सुखरासि निरंतर,
    दंतर हैं गहे आँगुरी ते जो वियोग के तेह तचे पर तंतर,
    जो दुख देखति हौं घन आनंद रैनि-दिना बिन जान सुतंतर
    जानैं बेई दिनराति बखाने ते जाय परै दिनराति कौ अंतर।

    6. मरम भिदै न जौ लौं करम न पावै तौलों

    मरम भिदै न जौ लौं करम न पावै तौलों,
    मरमहिं भेदै कैसें सुरनि धोइयौ।
    राग हीते राग के सरूपसों चिन्हारि लेति,
    मैन हीन काननि असूझ टकटोइबौ।
    अकथ कथा है क्यों बखानियै अथा है तान,
    ब्यौरिबौ कथा है बादि औसरहि खोइबौ।
    प्रेम आगि जागें लागैझर, घन आनंद को,
    रोइबौन आवै तौ पैगाइबौ हूरोइबौ।

    7. रस आरस सोय उठी कछु भोय लगी

    रस आरस सोय उठी कछु भोय लगी लसैं पीक पगी पलकैं,
    घन आनंद ओप बढ़ी मुख और सुझेलि फबीं सुथरी अलकैं।
    अंग राति जम्हाति लजाति लखैं, अंग-अंग अनंग दिपैं झलकें।
    अपरानि में आधियैं बात धरैं लड़कानि की आनि परी छलकैं।

    8. रूप चमूय सज्यौ दल देखि भज्यौ

    रूप चमूय सज्यौ दल देखि भज्यौ तजि देसहि धीर मवासी।
    नैन मिले उरके पुर पैठते बाज लुटी न छुटी तिनका सी।
    प्रेम दुहाई फिरी घन आनंद बांधि लिये कुलनेम गुढ़ासी।
    रीझ सुजान सची पटरानी बची बुधि बापरी है कर दासी।

    9. लै ही रहे हौ सदा मन और कौ

    लै ही रहे हौ सदा मन और कौ, दैबौ न जानत जानदुलारे।
    देख्यौ न है सपने हूं कहूं दुखं, त्यागे सकोच औ सोच सुखारे।
    कैसौ संयोग वियोग धौ आहि, फिरौ घन आनंद हवै मतवारे।
    मो गति बूझि परै तबहि जब होहु घरीक लौ आपु ते न्यारे।

    10. हंसनि लसनि आछी बोलनि चितौनि चाल

    हंसनि लसनि आछी बोलनि चितौनि चाल,
    मूरति रसाल रोमरोम छवि हेरे की।
    अंग अंग आभा संग द्र्रवित स्रंवित ह्वै कै,
    रुचि रुचि लीनी सौंज रंगनि घनेरे की।
    लिखिराख्यौ चित्रायौं प्रवाह रूपी नैननि पै,
    लही न परति गति उलटि अनेरे की।
    रूप कौ चरित्रा है आनंद घन जान प्यारी,
    अकि धौं विचित्राताई मोचित चितेरे की।

    प्रिया प्रसाद घनानंद

    प्रिया प्रसाद

    राधा राधा राधा कहौं ।
    कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥

    राधा जानौं राधा मानौं ।
    मन राधा रस ही मैं सानौं ॥२॥

    राधा जीवन राधा प्रान ।
    राधा ही राधा गुनगान ॥३॥

    राधा वृन्दावन की रानी ।
    राधा ही मेरी ठकुरानी ॥४॥

    राधा व्रज जीवन की ज्यारी ।
    राधा प्राननाथ की प्यारी ॥५॥

    राधा राधा राधा एक ।
    सर्वोपर राधा हित टेक ॥६॥

    राधा अतुलरूप गुनभरी ।
    ब्रजवनिता कदंब मंजरी ॥७॥

    राधा मदन गुपालहिं भावै ।
    मुरली मैं राधा गुन गावै ॥८॥

    राधा रस प्रसाद की साधा ।
    रसिक राय कैं राधा राधा ॥९॥

    या राधा कों हौं आराधौं ।
    राधा ही राधा रट साधौं ॥१०॥

    राधा वचन, मौन हूँ राधा ।
    राधा राधा राधा राधा ॥११॥

    सोये राधा, जागे राधा ।
    रातिघौस राधा ही राधा ॥१२॥

    राधा हेरौं राधा सुनौं ।
    राधा समझौं राधा गुनौं ॥१३॥

    राधा मेरी स्वामिनि साँची ।
    थिर चित ह्वै राधा हित नाची ॥१४॥

    राधा जि कछु कहै, सो करौं ।
    महल टहल टकोर अनुसरौं ॥१५॥

    राधा राधा गीत सुनाऊँ ।
    राधा आगें राग जमाऊँ ॥१६॥

    राधा कौं बहु भाँति रिझाऊँ ।
    तीखी बातनि चोख हसाऊँ ॥१७॥

    राधा की चटकीली चेरी ।
    चित ही चढ़ी रहित नित मेरी ॥१८॥

    राधा रुचि हि लिए ई रहौं ।
    विहरत गृह वनगोहन महौं ॥१९॥

    रूप उज्यारी राधा देखौं ।
    भागन को सुख कहा बिसेखौं ॥२०॥

    राधा सबही भाँति लड़ाऊँ ।
    राधा रीझें राधा पाऊँ ॥२१॥

    राधा सो कछु कहौं कहानी ।
    परम रसीली अति मनमानी ॥२२॥

    चाँपत चरन तनक झुकि जाऊँ ।
    हुवै सीस राधा के पाऊँ ॥२३॥

    चरन हलाय जगाये जागौं ।
    बहुरि औंधि नित पाय ना लागूँ ॥२४॥

    राधा धर्यौ बहुगुनी नाऊँ ।
    टरि लगि रहौं बुलाये जाऊँ ॥२५॥

    राधा की जूठनि ही जियैं ।
    राधा की प्यासनि ही पियैं ॥२६॥

    राधा को सुख सदा मनाऊँ ।
    सुख दै दै हौं हूँ सुख पाउँ ॥२७॥

    राधा ढिग जब श्याम निहारौं ।
    समय उचित सुख टहल विचारौं ॥२८॥

    राधा पिय पै विजना ढोरौं ।
    श्रम जल सुखऊँ, मन रस बोरौं ॥२९॥

    पियमय ह्वै प्यारी हित पा लौं ।
    ललना लाल परस पर लालौं ॥३०॥

    राधा मोहन एकै दोऊ ।
    नैन प्रान मन प्रेम समोऊ ॥३१॥

    राधा हि लग कहत नहिं आवै ।
    मोहन की राधा रुचि पावै ॥३२॥

    राधा मोहन मोहन राधा ।
    हिलनि मिलनि विहरनि बिनु बाधा ॥३३॥

    राधा प्रेम रसामृत सरसी ।
    केलि कमल कुल सुषमा दरसी ॥३४॥

    राधा मन मैं मन दैं रहौं ।
    राधा के मन की सब लहौं ॥३५॥

    राधा को स्वभाव पहिचानौं ।
    राधा की रुचि रचना ठानौं ॥३६॥

    राधा मन की मोसों बोलैं ।
    गुपत गाँस अपनी रुचि खोलैं ॥३७॥

    हौं राधा की, राधा मेरी ।
    कीरति की घर जाई चेरी ॥३८॥

    राधा की मन भाव तिलौंडी ।
    राधा की आनंदनि औंड़ी ॥३९॥

    राधा चीर उतारन पाऊँ ।
    भाग बड़ाई कहा जनाऊं ॥४०॥

    राधा मोकर पाय झवावै ।
    भाग भरी महावरो घावै ॥४१॥

    राधा कौं हौंसनि हौं प्यारी ।
    जाते तन कौं करति न न्यारी ॥४२॥

    लालबिहारी हूँ सौं ऐड़नि ।
    राधा के गुमान की पैड़नि ॥४३॥

    उसरि भरौं हित ढरौं अंग सौं ।
    करौं टहल रसमसी रंग सौं ॥४४॥

    अड़े दाय कौ काय परै जब ।
    बिन बहुगुनी सवारै को तब ॥४५॥

    मेरौ सुख हौही भर देखौं ।
    राधा कौ सुख अंतर लेखौं ॥४६॥

    लिखौं सुख, जब जब मुख देखौं ।
    राधा कौं सुख कहा बिसेखौं ॥४७॥

    राधा कौ सुख मेरो सुख है ।
    मदन गुपाल निहारै मुख है ॥४८॥

    वेरी, पै अभिमान भरी हौं ।
    ठकुराइनिया भाँति करी हौं ॥४९॥

    राधा की बलिहार भई हौं ।
    राधा यौं अपनाय लई हौं ॥५०॥

    राधा बिन कछु और न सूझौं ।
    सुरझि सुरझि अभिलाष उरुझौं ॥५१॥

    राधा आँखिन आगे रहै ।
    राधा मन कौ मारग गहै ॥५२॥

    रोम रोम राधा की व्यापनि ।
    रसिक जीवनी राधा जापनि ॥५३॥

    राधा रटि सोई ह्वै जाऊँ ।
    तब पाऊँ राधा को गाऊँ ॥५४॥

    राधा बरसाने की जाई ।
    ह्वै सँकेत नंदी सुर आई ॥५५॥

    राधा की हौं कहौं कहा लौं ।
    ब्रजबन राधामई जहाँ लौं ॥५६॥

    राधा के हित वंशी बाजै ।
    राधा राग भरे सुख साजै ॥५७॥

    राधा बंसी की ठकुरायनि ।
    सुर पावड़े बिछावति चायनि ॥५८॥

    नाम गाम सब राधा नेरैं ।
    राधा ही के बसौं बसेरैं ॥५९॥

    यौ राधा न श्याम बिन रहै ।
    मेरे मन मैं राधा महै ॥६०॥

    या राधा की महा अगमगति ।
    प्रेम पुंज मतिवती परम रति ॥६१॥

    या राधा कौ प्रेम कहै को ।
    या राधा कौ नेम गहै को ॥६२॥

    राधा रमन रमन हू राधा ।
    एकमेक ह्वै रहे अबाधा ॥६३॥

    मिलन बिछोह कछु न सुधि परैं
    अचिरज रीति राधिका धरैं ॥६४॥

    या राधा कौ रस अपरस है ।
    रस मूरति कौ परम सरस है ॥६५॥

    दोहा

    कहिबो सुनिबो समझिबो राधा ही कौ होय ।
    राधा के हित की कथा भूलि सुमिरिहै सोय ॥६६॥

    राधा अकथ कथा कहौं, यह कहिबे की नाहिं ।
    राधा के जिय की दसा प्रीतम के हिय माहिं ॥६७॥

    व्रजमोहन आनंदघन, वृंदावन रसधाम ।
    अभिलाषनि बरसत रहै, राधा हित अभिराम ॥६८॥

    मधुर केलि रस-झेलि सों, रसना स्वाद सुरूप ।
    सुफल सुवानी वेलि को, राधा नाम अनूप ॥६९॥

    मेरे मन दृग रीझि की, राधा ही कों बूझि ।
    राधा के मन रीझि की, मोहिं बूझि अरु सूझि ॥७०॥

    राधा मेरे प्रान है, राधा प्रान गुपाल ।
    साँस कंठ धारे रहौं, राधा-मोहन माल ॥७१॥

    आनँदघन बरसत सदा, राधा-जीवन स्याम ।
    उज्वल रस में गौरता, प्रेम अवधि अभिराम ॥७२॥

    दोऊ मिलि एकै भये ललित रंगीली जोट ।
    जमुना तटनि रखौं सदा तरु बेलिनि की ओट ॥७३॥

    निपट लटपटे अटपटे, भरे चटपटी चोंप ।
    राधा मोद पयोद रस प्रगट केलिकुल कोंप ॥७४॥

    व्रज मोहन उर अवनि मैं राधा सुपद बिहार ।
    रोम-रोम आनंद घन भीजे रसिक उदार ॥७५॥

    राधा हित आनंदघन मुरली गरज रसाल ।
    राधा हींके रस भरे मोहन मदन गुपाल ॥७६॥

    राधा के आनंद कौ मनमोहक मन साखि ।
    राधा को अभिलाष जो, राधा पिय अभिलाषि ॥७७॥

    राधा रसिक सँजीवनी, राधा जीवन लाल ।
    राधा मोहन मैं सबै ब्रजबन बेलि तमाल ॥७८॥

    राधा मेरी संपदा, जिय की जीवन मूल ।
    राधा राधा रट सदा रोम रोम अनुकूल ॥७९॥

    राधा मोहन मुख लगी मुरली ह्वै दिन राति ।
    राधा ही राधा बजै अति मोहन धुनि जाति ॥८०॥

    राधा रास सिरोमनि, राधा केलि कुलीन ।
    राधा सकल कलाभरी, रस मूरति हित लीन ॥८१॥

    जो कछु है सो राधिका, मो कछु और न चाह ।
    राधा पद पन पैज कौ, राधा हाथ निबाह ॥८२॥

    राधा सब ठाँ, सब समै, रहति बहुगुनी संग ।
    तान रमन गुनगान की लै बरसावति रंग ॥८३॥

    राधा अचल सुहाग के ललित रँगीले गीत ।
    रागनि भींजी बहुगुनी रिझवति राधामीत ॥८४॥

    राधा चाहनि चाह सौं, राधा चाहनि चाह ।
    राधा ही रस सिंधु मैं, राधा राधा थाहि ॥८५॥

    राधा मो दृग पूतरी, भई स्याम लखि स्याम ।
    राधा राधा रमन कौ, अनुपम रूप ललाम ॥८६॥

    राधा पिय प्यासनि भरी, आनँदघन रसरासि ।
    स्याम रँगमगी सगमगी राधा रही प्रकासि ॥८७॥

    राधा राधा नाम कौ, रसनै महासवाद ।
    या प्रबंध कौ नामहू पायौ प्रिया प्रसाद ॥८८॥

    प्रिया प्रसाद प्रबंध कौं पाय सवादहिं लेत ।
    नित हित सहित सनेह च्वै रसना इह सुख देत ॥८९॥

    राधा मंगल मालती, सरस मधुव्रत श्याम ।
    जमुना तट राजत सदा रसिक सँजीवनि धाम ॥९०॥