अनर्थ का अर्थ
मेरे पड़ोस में रहने वाले गुप्ताजी की तीन लड़कियाँ और एक लड़का है। चूंकि पुत्र इकलौता है, अत: वह माँ – पिता और बहनों सभी का दुलारा है। धन – धान्य से परिपूर्ण व्यवसायी गुप्ताजी के लिए उनका लड़का ही उनके जीवन का केंद्र बिन्दु है। जिसका अधिकांश समय बहनों के सानिध्य में बीतने और उन्हीं के स्नेहिल छाया में जीवन का पाठ पढ़ने के कारण, उसके स्वभाव में कोमलता और भावुकता का समावेश ज्यादा है। और यही बात गुप्ताजी को चिंतित कर देता है। वो चाहते हैं कि उनका पुत्र रौबदार और मर्दानगी के गुणों से भरपूर हो। वो उसे ज़्यादा से ज़्यादा सुख सुविधा का उपभोग करने और घर से बाहर अपने हमउम्र साथियों के बीच वक्त बिताने, घूमने – फिरने की सलाह देते रहते हैं। क्योंकि उनके अनुसार मर्द घर के बाहर ही अच्छे लगते हैं। घर के भीतर रहने वाला और माँ, बहनों और पत्नी के साथ ज्यादा समय बिताने वाला तथा बात – बेबात भावुकता का प्रदर्शन करने वाला पुरुष कमजोर या ‘मऊगा’ बन जाता है।
‘मऊगा’ हमारे समाज, विशेषकर ग्रामीण समाज का एक प्रचलित शब्द है। इसे भदेश शब्दों के समूह में रखा जा सकता है। सामान्यतया यह उपमा वैसे पुरुषों को दी जाती है जिनका व्यवहार, स्वभाव, पसंद – नापसंद आदि को पुरुष समाज औरतनुमा मानता है। यदि किसी मर्द के स्वभाव और व्यवहार में कोमलता की भावना अधिक हो, वो फिल्में देखते वक्त, कथा – कहानियां पढ़ते वक्त या कोई भी ऐसी घटना जो उसके मन को छूती हो, वो बातें यदि उसके आँखों में आंसू ला देती है या कहे की वह रो देता है तो उसे ‘मउगा’ की संज्ञा से विभूषित कर दी जाती है। वैसे लोग भी जो अपने काम के अलावा अपना अधिकांश समय घर में व्यतीत करते है, शराब, सिगरेट जैसे दूर्व्यसनों से दूर रहते हैं। अनावश्यक लड़ाई – झगड़े या अन्य असामाजिक गतिविधियों से दूर रहते हैं, महिलाओं से मित्रतापूर्ण और समतामूलक व्यवहार करते है और पत्नी के फैसलों तथा अधिकारों का सम्मान करते है उन्हें भी बेहिचक मउगा का तमगा दे दिया जाता है। एक बड़ा वर्ग ऐसे लड़कों या पुरुषों को मजाक और हिकारत की दृष्टि से देखता है। उन्हें कमजोर और कमअक्ल की संज्ञा भी दी जाती है। साथ ही उन्हें मर्दानगी से मुक्त मान लिया जाता है।
प्रचलित अर्थो में मउगा शब्द को मर्दानगी का विलोम माना जा सकता है। इस शब्द को ज्यादा गहराई से जानने समझने के लिए मर्दानगी को हमारे समाज में किन संदर्भो में देखा जाता है, इसे जानना समझना होगा। मर्दानगी का अर्थ है – पुरूषत्व, बहादुरी। यह मर्द शब्द का विशेषण है। मर्द शब्द का एक अर्थ मर्दन करना, कुचलना, नर, पुरूष आदि होता है। अकसरहा हमारे समाज की बनावट में मर्द के खांचे में उसे रखा जाता है, जो किसी की परवाह न करता हो, कुछ भी करके जीत हासिल करना जिसकी आदत हो, जिसे अपनी पत्नी की याद सिर्फ सांझ ढले ही आती हो और जो यह मानता हो कि औरत की भूमिका पति की आज्ञापालक के रूप में ही है। साथ ही उसका अधिकांश समय घर के बाहर, चौक-चौराहों, शराब और पान के दूकानों, कथित दोस्तों की महफिलों में बीतता हो आदि, आदि। समाज का एक बड़ा हिस्सा इन सारे तमगो से विभूषित पुरूष को ही सच्चा मर्द घोषित करता है। ऐसे में उपरोक्त असहज और बनावटी तथ्यों को स्वीकार्य और मान्य बना चूके लोगों के लिए एक सहज शब्द ‘मऊगा’ को गाली का प्रयाय बना दिया जाना स्वभाविक ही है।
ध्यातव्य है कि हमारे उसी समाज में औरत के लिए भी एक शब्द आता है, वो है – ‘मउगी’। यह औरत शब्द का ही पर्यायवाची होता है। इसे मऊगा का स्त्रीलिंग रूप भी कह सकते हैं। बिना किसी नकारात्मकता के इसे औरतों ने अत्यंत ही सहजता से स्वीकारा है। हमारे गांवों में लोग अत्यंत ही सहजता से महिलाओं को ‘फलाने – चिलाने की मऊगी या बहू’ कहकर बूलाते हैं। और इसे औरतें वगैर किसी नकारात्मकता और असहजता के इसे स्वीकारती हैं। अब ऐसे में एक स्वभाविक सा प्रश्न मन में उठता है कि एक ही शब्द के दो भिन्न रूपों को दो भिन्न लिंग वालो ने इतने अलग स्वरूपो में क्यूँ देखा और समझा है? क्या उपरोक्त स्थितियां महज भ्रामक जैविक श्रेष्ठता के कुचक्र में फंसे पुरुषों के वास्तविक सामाजिक और मानसिक विकास में अवरोध नहीं पैदा कर रहा है? प्रश्न ये भी उठता है कि क्या अपने मिथ्या गर्व, प्रपंच से परिपूर्ण शक्ति और सत्ता की होड़, अपनी अंतहीन भूख और लिप्सा की प्राप्ति की दौड़ में इस वर्ग का एक बड़ा हिस्सा स्वयं को मानसिक पिछड़ेपन की आग में नहीं झोकता जा रहा है? प्रश्न अत्यंत ही माकूल और विचारणीय है। अत: एक बार जरूर ठहरकर विचारने की जरुरत है।