रवीन्‍द्रनाथ और निराला : कितने दूर, कितने पास

अरुण प्रसाद रजक पश्चिम बंगाल शिक्षा सेवा (W.B.E.S) के अंतर्गत सहायक प्राध्यापक गोरुबथान राजकीय महाविद्यालय, दार्जीलिंग उच्चतर शिक्षा विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार

छायावादी काव्‍यधारा में निराला का काव्‍य रवीन्‍द्रनाथ से अत्‍यधिक प्रभावित है। निराला हिन्‍दी के पहले ऐसे कवि हैं जिन्‍होंने हिन्‍दी साहित्‍य को रवीन्‍द्र से परिचित करवाया। ‘रवीन्‍द्र कविता- कानन’ जैसी भावनापूर्ण और आधिकारिक समालोचना लिखकर निराला ने हिन्‍दी साहित्यिकों का ध्‍यान टैगोर की ओर आकर्षित किया। इस आलोचनात्‍मक कृति का साहित्यिक एवं ऐतिहासिक महत्‍व है। इसमें रवि बाबू के काव्‍य के सामाजिक संदर्भों, रहस्‍यवाद, रहस्‍यवाद के लौकिक पक्ष एवं उनकी मानवीय संवेदना पर विवेचन किया गया है। इसमें निराला ने रवीन्‍द्रनाथ को भारत के महान राष्‍ट्रीय कवि के रूप में देखा है। इसके साथ ही रवीन्‍द्र काव्‍य पर कुछ प्रश्‍न चिह्न भी लगाया गया है। रवीन्‍द्र काव्‍य पर आक्षेप बंगला के अनेक साहित्‍यकारों ने भी लगाया है।

निराला की काव्‍य-साधना का प्रारंभ कलकत्‍ते से हुआ था। उस दौरान रवीन्‍द्रनाथ भारतीय साहित्य-जगत के शिखर-पुरुष थे। निराला अपने आपको रवीन्‍द्र प्रभाव से बचा नहीं पाए। उनकी आरंभिक कविताओं पर रवीन्‍द्रनाथ का प्रभाव स्‍पष्‍ट दिखाई देता है। निराला ने स्‍वयं यह स्‍वीकार किया है कि उन्‍होंने रवीन्‍द्रनाथ की कुछ कविताओं का रूपांतरण किया है। ‘परिमल’ की अनेक कविताएं गीतांजलि से प्रभावित हैं। लेकिन यहां कवि निराला ने अपनी विशिष्‍ट संवेदना द्वारा उसे एक अलग रूप दे दिया है। एक तरह से निराला की सृजनात्‍मक –प्रेरणा का उत्‍स रवीन्‍द्र को मानते हुए डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने सटीक टिप्‍पणी की है कि “निराला जो महान कवियों में से हैं, जिनका पालन-पोषण बंगाल में हुआ, ने विद्रोह का झंडा ऊँचा रखा। उन्‍होंने रवीन्‍द्र की कुछ कविताओं का अनुवाद किया और रवीन्‍द्र साहित्‍य का पूर्ण अध्ययन और मनन किया। मुझे गलत न समझा जाए। निराला को किसी प्रकार से रवीन्‍द्रनाथ की ‘कार्बन-कॉपी’ नहीं कहा जा सकता। निराला भिन्‍न हैं, किंतु उनकी सर्जनात्‍मक प्रतिभा रवीन्‍द्र-काव्‍य से अत्‍यधिक प्रभावित थी।”

निराला की आरंभिक कविताएं (रहस्‍यवादी) रवि बाबू से प्रभावित हैं। अनामिका की प्रसिद्ध कविता ‘क्षमा-प्रार्थना’ रवि बाबू के ‘जीवन-देवता’ के भावों के आधार पर रचित हैं। रवि बाबू कहते हैं — “जे सुरे बांधिले ए वीणार तार, नामिया नामिया गेछे बारबार ।”

निराला रवीन्‍दनाथ की ही तरह कहते हैं –

“बांधे थे तुमने जिस स्‍वर में तार, उतर गये उससे ये बारम्‍बार ।”

‘मतवाला’ में प्रकाशित उनकी कविताओं पर रवीन्‍द्र–छाया को लेकर जो साहित्यिक वाद-विवाद चला था, उसका विस्‍तृत विवरण रामविलास शर्मा ने ‘निराला की साहित्‍य-साधना’ के पहले खण्‍ड में दिया है। डॉ. रामविलास शर्मा निराला पर रवीन्‍द्र के प्रभाव के बारे में लिखते हैं– “निराला पर रवीन्‍द्रनाथ के रहस्‍यवाद का प्रभाव आंशिक रूप से सन् 1930 तक रहता है। ‘परिमल’ के दूसरे खण्‍ड की पहली कविता ‘भर देते हो’ में जो ‘देव’ निरंतर उनके अंतर में आते हैं, वह रवीन्‍द्रनाथ के काव्‍य -देवता हैं।” निराला पर रवीन्‍द्र का प्रभाव एक सीमा तक रहता है। जब तक उनका प्रभाव निराला पर हावी रहा, तब तक निराला ‘निराला’ न हो पाए। रामविलास शर्मा लिखते हैं — “रहस्‍यवाद से अधिक निराला पर रवीन्‍द्रनाथ की रूमानी कविताओं का प्रभाव है। यह प्रभाव पहले चरण में अधिक है, दूसरे में बहुत कम, तीसरे में नगण्‍य। निराला ने कुछ कविताएं रवीन्‍द्रनाथ की रचनाओं के आधार पर लिखी थीं, जिनकी आलोचना ‘भावों की भिड़ंत’ लेख में हुई थी। उस लेख का सुफल यह हुआ कि वह रवीन्‍द्रनाथ की पूरी कविताओं को आधार मान कर नया कुछ लिखने से विरत हुए। यह भी सही है कि सन् 1923-24 की ही उनकी बहुत-सी रचनाएं न केवल रवीन्‍द्रनाथ के प्रभाव से मुक्‍त है वरन् उस प्रभाव की विरोधी दिशा में चलती है।”

यह सही है कि निराला रवीन्‍द्रनाथ की काव्‍य-प्रतिभा पर मुग्‍ध थे। लेकिन वे रवीन्‍द्रनाथ के अंध-भक्‍त नहीं थे। उन्‍होंने रवीन्‍द्रनाथ की आलोचना भी की है। वे तुलसीदास के त्‍याग के सामने रवीन्‍द्रनाथ के वैभव को क्षुद्र मानते थे और स्‍वयं को तुलसीदास की परंपरा का मानते थे। आर्थिक हैसियत की दृष्टि से निराला और रवीन्‍द्रनाथ की कोई तुलना नहीं है। निराला आजीवन पारिवारिक संकटों के साथ आर्थिक अभावों से भी जूझते रहे जबकि रवीन्‍द्रनाथ एक बड़े जमींदार कुल के वारिस थे और उनके साथ एक भरा-पूरा परिवार भी था। रवीन्‍द्रनाथ जिस दुनिया को खिड़की से देखते थे, निराला उसी दुनिया के उपज थे। बहरहाल, जिस दौर में बंगला के अनेक साहित्‍यकार रवीन्‍द्र प्रभामंडल में अपना अस्तित्‍व खो चुके थे, उस दौर में निराला ने उस प्रभामंडल को तोड़कर एक अलग रास्‍ता अख्‍तीयार किया। महाकवि निराला जानते थे कि भूख क्‍या चीज है, दारिद्रय क्‍या है। उनके साहित्‍य में जो यथार्थ है वह उनका अपना भोगा हुआ यथार्थ है। निराला की यह काव्‍य-पंक्तियां बेहद मार्मिक हैं — ”वह तोड़ती पत्‍थर

देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर – वह तोड़ती पत्‍थर, न कोई छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्‍वीकार ।”

रवीन्‍द्रनाथ भी करुणा के असाधारण गायक हैं। निराला की तरह रवीन्‍द्रनाथ ने भी लिखा है—

“ओरा काज करे देश-देशान्‍तरे, अंग-बंग कलिंगेर, समुद्र-नदीर घाटे-घाटे, पंजाबे बोम्‍बाई गुजराते।”

यहां निराला की कविता जिस तरह चाबुक की तरह प्रहार करती है, वैसी रवीन्‍द्रनाथ की नहीं। भावों की प्रखरता निराला की विशेषता है और भावों की उदात्‍तता रवीन्‍द्रनाथ का वैशिष्‍ट्य है। विशुद्ध काव्‍य-सौंदर्य की दृष्टि से यदि विचार किया जाए तो रवीन्‍द्रनाथ निश्चित रूप से निराला से श्रेष्‍ठ हैं। लेकिन दूसरी ओर क्रांतिकारी चेतना की प्रखरता की दृष्टि से निराला रवीन्‍द्रनाथ से आगे निकल जाते हैं।

तात्‍पर्य यह है कि रवीन्‍द्रनाथ निराला के श्रद्धेय एवं प्रेरक पुरुष थे, लेकिन रवि बाबू को आत्‍मसात करते हुए निराला ने उनसे पृथक सशक्‍त व्‍यक्तित्‍व बनाकर स्‍वयं को हिन्‍दी का महाकवि सिद्ध किया।

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