*विधा – नवगीत
मापनी – 16/14
श्रमिक वेदना
गृह दर से निकला मैं यूंही
कई ऋणों का भार लिए।
गर्म पसीना तन से बहता
निर्मम हाहाकार लिए।।
उदर भूख से जकड़ा मेरा
नहीं देह पर आच्छादन
फ़टा हुआ इक वस्त्र शीश पर
वैर लोभ का निष्पादन
बिन धन किस्से नहीं सुलझते
आंसू नयनों का भार लिए
गृह दर से निकला मैं यूंही
कई ऋणों का भार लिए।
अल्प दोष ना कोमल हृदय में
पुल , सड़क निर्माण मेरे
कड़क दुपहरी अनंत परिश्रम
ये भवन के सोपान मेरे
ज्यों आया त्यों जाना मैंने
दुःखी प्राण का सार लिए
गृह दर से निकला मैं यूंही
कई ऋणों का भार लिए
कठोर हाथ फ़टे पग छाले
हर्ष सब कुर्बान मेरे
मेरा जीवन मेरी मुश्किल
मुझसे तो अंजान मेरे
बिन संदेह के निशंक खड़ा मैं
कष्टों का अम्बार लिए
गृह दर से निकला मैं यूंही
कई ऋणों का भार लिए
परमजीत सिंह कहलूरी
हिमाचल प्रदेश
7018750401