ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों की समस्याएं :- एक अध्ययन

डॉ. मुकेश कुमार चंद्राकर

सहायक प्राध्यापक, गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय ,बिलासपुर ,छत्तीसगढ़

उजमा एजाज़

शोध छात्रा, गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय ,बिलासपुर, छत्तीसगढ़

सारांश

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक विकासात्मक अक्षमता है, जो मुख्य रूप से शाब्दिक और अशाब्दिक संप्रेषण एवं समाजिक अंत: क्रिया को प्रभावित करता है । सामान्य रूप से यह डिस्ऑर्डर तीन वर्ष की उम्र के पूर्व शुरू होता है और बच्चे के शैक्षिक निष्पादन को प्रभावित करता है। प्राय: इस डिसऑर्डर के कुछ सामान्य लक्षण भी होते हैं जैसे एक ही क्रिया को बार-बार दोहराना, पुनरावृति क्रियाएं,अनावश्यक अनुक्रिया, असहयोगी व्यवहार एवं गंभीर रूप से भावात्मक कमी, इसलिए इन बच्चों का शैक्षिक निष्पादन विपरीत होता है। प्रस्तुत शोध पत्र में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर बच्चों के शिक्षकों की शैक्षिक समस्याओं का अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन हेतु छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर एवम् रायपुर जिले के विशेष विद्यालय के 25 शिक्षकों का चयन उद्देश्य पूर्ण प्रतिचयन विधि द्वारा किया गया। शोध उपकरण के रूप में शोधार्थी द्वारा स्वनिर्मित प्रश्नावली का प्रयोग किया है एवं प्रदत्त विश्लेषण हेतु प्रदत्त की प्रकृति के आधार पर प्रतिशत विश्लेषण एवं विषयवस्तु विश्लेषण तकनीकी का उपयोग किया गया। शोध निष्कर्ष के रूप में पाया गया कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों को बच्चे के व्यवहार से संबंधित, अभिभावकों की सहभागिता से संबंधित, अध्ययन-अध्यापन से संबंधित एवं प्रबंधन से संबंधित समस्याएं होती है विशेष कर बच्चों के व्यवहार से संबंधित समस्याओं का प्रतिशत प्रस्तुत अध्ययन में अधिक पाया गया।

बीज शब्द: विकास, लक्षण, डिसॉर्डर, सम्प्रेषण

शोध आलेख

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक आजीवन चलने वाली तंत्रिका विकास् संबधी विकलांगता है जिसकी विशेषता है सामाजिक समझ और संचार में लगातार और व्यापक क्षीणता एवं खराब अनुकूलीत कामकाज, और प्रतिबंधित या दोहराव वाले व्यवहार (ए.पी.ए., 2013)। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक ऐसी जटिल स्थिति है, जिसमें पीड़ित बच्चे का दिमाग अन्य बच्चों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है अर्थात यह एक विकास संबंधी विकार है जिसमें बच्चे को बातचीत करने में, पढ़ने -लिखने में और समाज में मेल-जोल बढ़ाने में काफी परेशानियां होती है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर जीवन भर रहने वाली एक ऐसी समस्या है जिस में बच्चे को हमेशा विशेष सहयोग की जरूरत पड़ती है। हालाँकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ ऑटिज्म के लक्षण कम होने लगते हैं जिससे वह आगे चलकर सामान्य बच्चों की तरह ही जीवन जी सकते है इसलिए ऑटिस्टिक बच्चों के माता-पिता को बच्चों की बदलती जरूरतों के साथ तालमेल बैठाने की काफी आवश्यकता होती है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे हर दिन एक ही दिनचर्या पसंद करते हैं; इसमें बदलाव करने पर वे बहुत परेशान हो जाते हैं। प्रारंभिक अवस्था में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चे बोल नहीं पाते, उन्हें दूसरे बच्चों के साथ बातचीत करने के लिए गैर मौखिक व्यवहार का उपयोग करने में भी काफी समस्या होती है। यह डिसऑर्डर एक प्रकार का नहीं होता बल्कि कई प्रकार का होता है जो अनुवांशिक और पर्यावरणीय प्रभाव के सयोजनों के कारण होता है (एडक, 2019)। इस डिसऑर्डर के लक्षण आमतौर पर 12 से 18 महीने की आयु में दिखाई देते हैं जो सामान्य से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। किसी वस्तु की तरफ इशारा करना, अपनी मां की आवाज सुनकर मुस्कुराना या प्रतिक्रिया न देना, आंखों में आंखें मिला कर ना देखना, अकेले रहना, दूसरे बच्चों से घुलने मिलने से बचना, किसी एक जगह पर घंटों बैठना, किसी एक ही वस्तु पर ध्यान देना, एक ही काम को बार-बार करना, दूसरे व्यक्ति के शब्द को दोहराना, किसी काम को न करना, किसी विशेष प्रकार की आवाज, स्वाद और गंध के प्रति अजीब प्रतिक्रिया देना आदि कुछ सामान्य लक्षण है जो बच्चों में दिखाई देते है (मिश्रा एवं श्रीदेवी, 2017) इसलिए अभिभावकों को बच्चे के व्यवहार और उनके विकास पर ध्यान देने के लिए कहा जाता है। माता-पिता आमतौर पर सबसे पहले अपने बच्चे में असमान्य व्यवहार को ध्यान देते हैं और उनकी व्यवहार सम्बन्धित समस्या की पहचान करते हैं; तत्पश्चात विशेषज्ञों द्वारा बच्चों की देखने, सुनने, बोलने की क्षमता का आकलन किया जाता है एवं लक्षणों के आधार पर उन्हें ऑटिज्म से पीड़ित माना जाता है। इस विकार में दिमाग के बाकी शरीर से सम्प्रेषण करने की क्षमता कमजोर हो जाती है, इसलिए वह किस अंग को किस तरह काम करना है यह संदेश ठीक से नहीं दे पाता है (बिनेश, 2008)। यह अवस्था बच्चे के जीवन के प्रारंभ से ही उसके साथ होती है और जीवन भर बनी रहती है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे को अन्य समस्याएं जैसे डिस्लेक्सिया, डिस्प्रेक्सिया, अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिविटी, लर्निंग डिसेबिलिटी, मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम आदि समस्याएं भी होती है। जिसका निदान, मनोवैज्ञानिकों की सलाह, पुनर्वास सेवाएं, व्यवहार उपचार, कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम, अत्यधिक देखभाल द्वारा ही किया जा सकता है (रहमान, 2011)। इस कार्य में परिवार के सदस्यों की सहभागिता आवश्यक है। परिवार एवं समाज के सदस्यों के द्वारा शिक्षा के माध्यम से इन बच्चों को अपने आत्मबल को बढ़ाने का, अपने प्रतिभा निखारने का , अंतर्निहित शक्तियों को उभारने का अवसर दिया जाए तो वे समाज में बोझ न बन कर समाज के उपयोगी और सम्मानजनक सदस्य बन सकेंगे शिक्षक बहुत ही सशक्त माध्यम है इस विकार वाले बच्चों की दशा में सुधार लाने के लिए एवं उन्हें सही दिशा प्रदान करने के लिए।

अध्ययन की आवश्यकता

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक जटिल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें बच्चों के मानसिक विकास रूक जाता है यह उस क्षमता को प्रभावित करता है जिसके द्वारा एक बच्चा दूसरे के साथ संप्रेषण करता है। आटिज्म वाले बच्चे दुनिया को अलग नजर से देखते हैं, सुनते हैं, और महसूस करते हैं, यह विकार लड़कियों की तुलना मे लड़कों को बहुत अधिक प्रभावित करता है और जन्म से लेकर तीन साल की उम्र तक विकसित होता है (डेल 2006)। यह एक ऐसी विकृतियों का समूह है जिसमें विकास के एक या एक से अधिक क्षेत्र जैसे भाषा विकास, सामाजिक विकास, संवेगात्मक विकास, संज्ञानात्मक विकास प्रभावित होता है जिसके कारण वे किसी के साथ खुलकर बात नहीं करते, किसी के बात का जवाब देने में अधिक समय लेते हैं, दुसरों की परवाह नहीं करते और अपने में ही व्यस्त रहते हैं। इन बच्चों की आवश्यकता सामान्य बच्चों की आवश्यकता से बहुत भिन्न होती है जिसके कारण आटिज्म वाले बच्चे सामान्य शैक्षिक परिवेश में अपने आप को असहज महसूस करते हैं इसलिए इन बच्चों को विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है ताकि वह स्वयं को सहज महसूस कर सकें और अपनी क्षमता व आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर सकें। इस प्रकार के बच्चे या तो बौद्धिक रूप से सक्षम होते हैं या असक्षम होते है। जो बौद्धिक रूप से असक्षम होते हैं उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वह किसी भी विषय को काफी देर से समझते हैं, परिणाम स्वरूप उनकी उपलब्धि व प्रदर्शन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर में कौन सा बच्चा किस विधि से सीखेगा यह बच्चे में ऑटिज्म के प्रकार के आधार पर निर्धारित होता है जिसमें संचार, सामाजिक कौशल, एवं व्यवहार से संबंधित मतभेद शामिल है। यह सब मतभेदों के साथ ऑटिज्म बच्चों को शिक्षित करने में शिक्षकों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है (बेरी, 2008)। इन्हीं सब आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शोधार्थी ने इस विषय पर अध्ययन करने की आवश्यकता महसूस की, ताकि इस अध्ययन के जरिए उन सभी समस्याओं पर प्रकाश डाला जा सके जो एक शिक्षक को ऑटिज्म बच्चों के शिक्षण के समय होती है।

समस्या कथन

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों की शैक्षिक समस्याओं का अध्ययन करना।

उद्देश्य

प्रस्तुत अध्ययन के उद्देश्य निम्नानुसार है

  1. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों की बच्चों के व्यवहार से संबंधित समस्याओं का अध्ययन करना। (प्रश्न 1 से 11 )
  2. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों की अभिभावकों की सहभागिता से संबंधित समस्याओं का अध्ययन करना। (प्रश्न 12 से 16)
  3. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों की अध्ययन अध्यापन से संबंधित समस्याओं का अध्ययन करना। (प्रश्न 17 से 22 )
  4. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों की प्रबंधन से संबंधित समस्याओं का अध्ययन करना। (प्रश्न 23 से 27 )

कार्यात्मक परिभाषाएं दृष्टिकोण

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर: एक जटिल विकासात्मक निशक्तता है जो प्राथमिक रूप से व्यक्ति के संप्रेषण एवं सामाजिक योग्यता को प्रभावित करता है तथा पुनरावृत्ति व्यवहार द्वारा परिलक्षित होता है।

शिक्षकों की समस्याएं– शिक्षकों की समस्याओं से तात्पर्य ऑटिज्म बच्चों के शिक्षण के समय बच्चों के व्यवहार, माता-पिता की सहभागिता, अध्ययन-अध्यापन एवं प्रबंधन से संबंधित समस्या से है।

शोध प्रविधि

शोध में शोध प्राविधि का महत्वपूर्ण स्थान है। शोध अध्ययन के उद्देश्य इसकी प्राविधि तय करते हैं। वर्तमान अध्ययन में शोधकर्ता ने ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों को पढ़ाने के समय शिक्षकों सम्मुख आने वाली समस्याओं का अध्ययन करना है जिसके लिए शोध कर्ता ने सर्वेक्षण पद्धति का उपयोग किया है।

न्यादर्श

शोध अध्ययन के लिए जनसंख्या के तौर पर छत्तीसगढ़ राज्य के ऑटिज्म विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों को शामिल किया गया था। प्रस्तुत अध्ययन में सुविधाजनक न्याय दर्श प्रक्रिया का उपयोग करते हुए 25 शिक्षकों का चयन किया गया। इन चयनित न्याय दर्श को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षण के समय होने वाली समस्याओं से संबंधित प्रश्नावली दी गई जिनमें से सभी 25 शिक्षकों ने इस प्रश्नावली का उत्तर दिया।

अध्ययन के लिए उपकरण

प्रस्तुत अध्ययन में शोधार्थी द्वारा शोध अध्ययन हेतु प्रदत्त संकलन करने के लिए एक प्रश्नावली विकसित की गई। इस प्रश्नावली में कुल 27 कथन थे जो कि ऑटिज्म बच्चों के शिक्षकों को शिक्षण के समय बच्चों के व्यवहार (प्रश्न 1 से 11), माता-पिता की सहभागिता (प्रश्न 12 से 16), अध्ययन-अध्यापन (प्रश्न 17 से 22) एवं प्रबंधन (प्रश्न 23 से 17) से संबंधित थे। इस प्रश्नावली में खुली एवं बंद दो प्रकार के प्रश्न थे | बंद प्रश्नों पर शिक्षकों को ‘हाँ’ या ‘नहीं, के रूप में एवं खुली प्रश्नों पर अपनी प्रतिक्रिया ‘लिखित’ रूप में व्यक्त करनी थी।

आंकड़ों का विश्लेषण और व्याख्या

प्रश्नावली के ‘बंद’ प्रश्नों को आवृत्ति को प्रतिशत में बदलकर प्रदत्तों को विश्लेषित किया गया एवं ‘खुली’ प्रश्नों के उत्तरों को ‘शारान्षित विषयवस्तु विश्लेषण’ तकनीकी से विश्लेषित किया गया | अधयन के परिणामों को उद्देश्यों के आधार पर विभिन्न तालिकाओं में प्रस्तुत किया गया है।

उद्देश्य 1

अध्ययन का प्रथम उद्देश्य ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों को बच्चों के व्यवहार से संबंधित समस्या का अध्ययन करना था। अतः तालिका 1 में इस उद्देश्य के लिए शिक्षकों से पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों को प्रतिशत में प्रस्तुत किया गया है।

तालिका 1 – ऑटिज्म बच्चों के व्यवहार से संबंधित समस्याओं का प्रतिशत विश्लेषण

प्र.क्र. कथन हाँ नहीं
आवृत्ति प्रतिशत आवृत्ति प्रतिशत
1. क्या बच्चा बारबार उत्तेजित होता है? 14 56% 11 44%
2. क्या बच्चा बार-बार हकलाता है ? 13 52% 12 48%
3. क्या बच्चे से बात करते समय उसके बात को समझना कठिन होता है ? 10 40% 15 60%
4. क्या बच्चे बोलते समय बारबार स्वाभाविक /आस्वाभाविक रूप से रुक जाता है? 25 100%
5. क्या बच्चा बोलने की अपेक्षा संकेतों का उपयोग करता है? 9 36% 16 64%
6. क्या बच्चे को अमूर्त बातों को समझाने में कठिनाई होती है? 25 100%
7. क्या बच्चा सीखने के लिए बहुत अधिक निर्भरता दर्शाता है? 25 100%
8. क्या इन बच्चों को सिखाने के लिए अधिक आवृत्ति /अभ्यास की आवश्यकता होती है? 25 100%
9. क्या बच्चा भली प्रकार से से पढ़ पाता है? 15 50% 15 50%
10. क्या बच्चा पढ़ने में बारबार शब्दों को छोड़ देता है? 13 52% 12 48%
11. अन्य बच्चों की तुलना में ऑटिज्म बच्चों को कोई काम कौशल सिखाने में अधिक समय लगता है? 25 100%

उपरोक्त तालिका के विश्लेषण से यह स्पष्ट पता चलता है कि 100% शिक्षक मानते हैं कि ऑटिज्म वाले बच्चे बोलते समय बार-बार रुक जाते हैं, उन्हें अमूर्त बातों को समझने में कठिनाई होती है, सिखने के लिए बहुत निर्भर रहता है, सिखाने के लिए अधिक आवृत्ति कि आवश्यकता होती है तथा उन्हें कोई कौशल सिखाने के लिए अन्य बच्चों कि अपेक्षा अधिक समय लगता है | यह इसलिए होता है क्यों कि इन बच्चों को सम्प्रेषण करने में कठिनाई होती है तथा वे सामान्य बच्चों से भिन्न होते हैं | तालिका से यह भी स्पष्ट होता है कि 56 प्रतिशत शिक्षकों को बच्चों के बार- बार उत्तेजित होने से, 52 प्रतिशत शिक्षकों को बच्चों के बार-बार हकलाने से अध्ययन-अध्यापन में समस्या होती है एवं 60 प्रतिशत शिक्षकों को बच्चों से बात करते समय उनकी बातों को समझना कठिन नहीं लगता है | 50 प्रतिशत शिक्षक ऑटिज्म बच्चों के भली भाँती न पढ़ पाने के कारण एवं 52 प्रतिशत शिक्षक बच्चों द्वारा पढ़ते समय शब्दों को छोड़ने के कारण बहुत अधिक कठिनाई महसूस करते हैं | उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर हम कह सकते हैं कि ऑटिज्म वाले बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के समय उनके व्यवहार के कारण शिक्षकों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है |

2.उद्देश्य

अध्ययन का द्वित्तीय उद्देश्य ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षको को अभिभावकों की सहभागिता से संबंधित समस्या का अध्ययन करना था | अतः तालिका 2 में इस उद्देश्य के लिए शिक्षकों से पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों का प्रतिशत विश्लेषण निम्न में प्रस्तुत किया गया है।

तालिका 2- अभिभावकों की सहभागिता से संबंधित समस्याओं का प्रतिशत विश्लेषण

प्र.सं. कथन हाँ नहीं
आवृत्ति प्रतिशत आवृत्ति प्रतिशत
12 बच्चे के शैक्षिक विकास के संबंध में माता-पिता से भी आप प्रतिक्रिया लेते हैं? 20 80% 5 20%
13 क्या बच्चों के शैक्षिक विकास हेतु माता-पिता की भी सहभागिता ली जाती है? 20 80% 5 20%
14 क्या माता-पिता के सुझाव के आधार पर शैक्षिक गतिविधियों में संशोधन/परिवर्तन किया जाता है? 20 80% 5 20%
15 माता पिता के सुझाव के आधार पर शैक्षिक गतिविधि में संशोधन /परिवर्तन करने पर कोई समस्या होती है? 5 20% 20 80%
16 आप इन बच्चों के माता-पिता से सहयोग की अपेक्षा रखते हैं? 25 100%

तालिका 2 को देखने से स्पष्ट है कि क्रमशः 80 प्रतिशत शिक्षक बच्चों के शैक्षिक विकास के सम्बन्ध में माता-पिता से प्रतिक्रिया लेते हैं, उनकी सहभागिता भी अपने शिक्षण कार्य में लेते हैं एवं उनके सुझाव के आधार पर अपने शैक्षणिक कार्यक्रम में संशोधन/परिवर्तन भी करते हैं | ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि माता-पिता के सहयोग के बिना बच्चों की व्यवहार में परिवर्तन लाना कठिन कार्य है और बच्चे जब ऑटिज्म से पीड़ित हों तो यह और भी कठिन है | माता-पिता ही हैं जो शिक्षक को अपने बच्चे की सही-सही जानकारी प्रदान कर सकते हैं |

80 प्रतिशत शिक्षकों का कहना है कि माता-पिता के सुझाव से उन्हें अपने शैक्षिक गतिविधि में परिवर्तन करने में कोई समस्या नहीं होती है एवं शिक्षक सुझाव के आधार पर अपने शैक्षिक गतिविधि में परिवर्तन भी कर लेते हैं। सभी शिक्षकों (100 प्रतिशत) इन बच्चों के माता-पिता से सहयोग की अपेक्षा रखते है क्योकि बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन तभी संभव है जब इनके माता-पिता घर पर भी सिखाने की कोशिश करें। संक्षेप में हम कह सकते हैं बिना माता-पिता के सहयोग से ऑटिज्म बच्चों के व्यवहार में एवं शैक्षिक गतिविधि में परिवर्तन लाना कठिन है | अतः, शिक्षक हमेशा माता-पिता की सहयोग की अपेक्षा रखते हैं |

उद्देश्य 3

अध्ययन का तृतीय उद्देश्य ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों को अध्ययन-अध्यापन से संबंधित समस्या का अध्ययन करना था | अतः तालिका तीन में इस उद्देश्य के लिए शिक्षकों से पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों का प्रतिशत विश्लेषण कर प्रस्तुत किया गया है।

तालिका 3 शिक्षकों को अध्ययनअध्यापन से संबंधित समस्याओं का प्रतिशत विश्लेषण

प्र.सं. कथन हाँ नहीं
आवृत्ति प्रतिशत आवृत्ति प्रतिशत
17 बच्चों को शिक्षा व प्रशिक्षण देते समय आप बच्चों का ऑटिज्म के आधार पर वर्गीकरण करते हैं? 25 100%
18 आप ऑटिज्म के प्रकार व स्तर के आधार पर शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण करते हैं? 25 100%
19 निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के पश्चात उनका मूल्यांकन करने में कठिनाई आती है? 25 100%
20 शैक्षणिक गतिविधियों से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन करने में आपको कठिनाई होती है? 25 100%
21. क्या आपको शैक्षिक गतिविधियों में तकनीकी संसाधनों के उपयोग से समस्याएं होती हैं? 25 100%
22 बच्चों को अभीप्रेरित करने हेतु विशेष कार्यक्रम भी आपके द्वारा संचालित किए जाते हैं? 20 80% 5 20%

तालिका 3 को देखने से स्पष्ट है कि सभी शिक्षक (100%) बच्चों को शिक्षण और प्रशिक्षण देते समय ऑटिज्म के प्रकार के आधार पर वर्गीकरण करते हैं एवं शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण करते समय ऑटिज्म के प्रकार और स्तर को भी ध्यान में रखते हैं | शिक्षकों को निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उनका मूल्यांकन करने में किसी भी शिक्षक को कोई भी समस्या नहीं होती है। यह इसलिए हो सकता है की सभी शिक्षक बच्चों की आवश्यकता के आधार पर उन्हें शिक्षा प्रदान करते हैं | सभी शिक्षकों (100 %) को शैक्षिक गतिविधियों से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन करने में, विभिन्न गतिविधियों में तकनीकी संसाधनों के उपयोग करने आदि में उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती | 80 प्रतिशत शिक्षकों का कथन है की इन बच्चों को अभीप्रेरित करने हेतु विशेष कार्यक्रम जैसे ‘खेलकूद’, ‘गीत’, ‘कविता’, ‘चित्रकला प्रतियोगिता’ का आयोजन स्कूलों में शिक्षकों के द्वारा किया जाता है। संक्षेप में हम कह सकते है की ऑटिज्म बच्चों के अध्ययन-अध्यापन के समय शिक्षकों को बहुत ज्यादा समस्या नहीं होती है परन्तु तालिका 1 को देखने से यह पता चलता है की शिक्षकों को आटिज्म बच्चों के व्यवहार से सम्बंधित कुछ-कुछ समस्या जैसे की बार-बार हकलाना, उत्तेजित हो जाना, शब्दों को छोड़-छोड़ कर पढना आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है |

4.उद्देश्य

अध्ययन का चतुर्थ उद्देश्य ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों के शिक्षकों को प्रबंधन से संबंधित समस्या का अध्ययन करना था | अतः तालिका चार में इस उद्देश्य के लिए शिक्षकों से पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों का प्रतिशत विश्लेषण कर प्रस्तुत किया गया है।

तालिका 4 – शिक्षकों को प्रबंधन से संबंधित समस्याओं का प्रतिशत विश्लेषण

प्र.सं. कथन हाँ नहीं
आवृत्ति प्रतिशत आवृत्ति प्रतिशत
23 क्या शैक्षणिक कार्यक्रमों का नियोजन एवं संचालन विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है? 25 100%
24 क्या स्कूल में सहायक शिक्षण सामग्री बच्चों की संख्या के अनुपात में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है? 25 100%
25 क्या सहायक शिक्षण सामग्री उचित अवस्था में उपलब्ध है? 25 100%
26 क्या आप को व्यवसायिक वृद्धि हेतु प्रशिक्षण में भेजा जाता है? 25 100%
27 क्या बच्चों के शैक्षिक विकास हेतु नवाचार के साधनों को आप उपयोग करते हैं? 25 100%

उपरोक्त तालिका को देखने से स्पष्ट है कि सभी शिक्षकों (100 प्रतिशत) के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों का नियोजन एवं संचालन विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है | इन कार्यक्रमों के अनुरूप उनकी स्कूलों में सहायक शिक्षण सामग्री बच्चों की संख्या के अनुपात में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है एवं यह सामग्री उचित अवस्था में भी है जिसके कारण शिक्षकों को बच्चों को शिक्षित करने में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती है | 100 प्रतिशत शिक्षकों को संस्थान द्वारा समय-समय पर विभिन्न स्थानों में आयोजित होने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी भेजा जाता है जहाँ उन्हें बच्चों को शिक्षित करने से संबंधित उपयोगी जानकारी दी जाती है | सभी शिक्षकों द्वारा बच्चों के शैक्षिक विकास हेतु नवाचार के साधनों जैसे ‘प्रोजेक्टर’, ‘कंप्यूटर’, ‘फ्लैश कार्ड’, ‘लर्निंग किट’, ‘चार्ट’ आदि का उपयोग किया जाता है। उपोराक्त तालिका के अनुसार यह कहा जा सकता है कि शिक्षकों को प्रबंधन से किसी भी प्रकार का कोई समस्या नहीं होती है एवं उन्हें पूर्ण सहयोग मिलता है |

निष्कर्ष एवम् सुझाव

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चों को शिक्षा प्रदान करना एक कठिन प्रक्रिया है क्यों कि इसके विभिन्न स्तर हैं और यह पता लगाना मुश्किल होता है कि इन बच्चों को कैसे शिक्षित किया जाए | प्रत्येक बच्चों के लिए अलग-अलग तरीके की आवश्यकता होती है और बच्चे अलग अलग प्रतिक्रिया भी देते है | इस शोध के परिणाम से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षकों को अधिक समस्या बच्चों के व्यवहार से होती है जैसे बार-बार उत्तेजित हो जाना, बच्चे के बोलते समय बार-बार स्वभाविक एवं स्वाभाविक रूप से रुक जाना, संकेतों का उपयोग करना, अमूर्त बातों को सिखाने में कठिनाई (100 प्रतिशत), सीखने के लिए शत प्रतिशत निर्भरता, सिखाने के लिए अधिक आवृत्ति/अभ्यास की आवश्यकता, पढ़ते समय शब्दों को छोड़ देना आदि है | शत प्रतिशत शिक्षकों का कहना था कि ऑटिस्टिक बच्चों को अन्य बच्चों कि तुलना में कोई भी कौशल सिखाने में अधिक समय लगता है|

अतः इन बच्चों के शिक्षण एवं पुनर्वास के लिए प्रबंधन करने की काफी आवश्यकता है। शोध के परिणाम यह भी बताते हैं कि बच्चों के शैक्षणिक विकास हेतु माता-पिता कि सहभागिता ली जाती है एवं उनके सुझावों को भी शामिल किया जाता है | अध्ययन में पाया गया कि सभी शिक्षकों द्वारा ऑटिज्म बच्चों के माता-पिता से केवल यही सहयोग की अपेक्षा की जाती है कि वह जो कुछ भी स्कूल में सिखाया जाता है उसे घर में भी सिखाने की कोशिश करें तो बच्चा बहुत जल्द आत्मनिर्भर बन सकता है | बेनसन (2008) ने भी अपने शोध में पाया कि माता-पिता कि सहभागिता से बच्चे जल्दी सिख पाते हैं | इस शोध में 80 प्रतिशत शिक्षकों का कथन था की इन बच्चों को अभीप्रेरित करने हेतु विशेष कार्यक्रम जैसे ‘खेलकूद’, ‘गीत’, ‘कविता’, ‘चित्रकला प्रतियोगिता’ का आयोजन स्कूलों में शिक्षकों के द्वारा किया जाता है। इस शोध में यह भी पाया गया कि शिक्षकों प्रबंधन से कोई भी समस्या नहीं हैं | ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के प्रकृति को देखते हुए यदि इनके अभिभावको को यदि समय समय पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाए तो वे अपने बच्चों को भली भाँती शिक्षित कर पायेंगे | इसके साथ साथ शिक्षकों को भी समय-समय पर ऑटिज्म से सम्बंधित नयी जानकारी एवं शिक्षण पद्धति से परिचित होना बहुत आवश्यक है | क्योंकि इंसान की शक्ति उसकी आत्मा में होती है और आत्मा कभी विकलांग नहीं होती है ,कोशिश करने से यह बच्चे हर वह मुश्किल और असंभव कार्य कर सकते हैं जो सामान्य बच्चे करते है।

संदर्भ सूची

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