‘‘आवारा लड़की को पता ही नहीं था कि आवारा कैसे हुआ जाता है?”- मैत्रेयी पुष्पा

शोध-विषय “समकालीन हिंदी लेखिकाओं की प्रतिनिधि आत्मकथाओं में अन्तर्निहित अनुभूतियाँ” के अन्र्तगत अनुशीलन हेतु चयनित आत्मकथा खण्ड-1 ‘कस्तूरी कुण्डल बसै’ तथा खण्ड-2 ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’ की रचनाकार हिंदी साहित्य जगत् में नारी-चेतना की सशक्त वाहिका श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा जी से डॉ. वंदना कुमार एवं राजेन्द्र कुमार की पुरखौती मुक्तांगन, नया रायपुर (छ.ग.) में आयोजित रायपुर साहित्य महोत्सव 2014 में हुई बातचीत के प्रमुख अंश

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1. डॉ. वंदना कुमार- आपकी आत्मकथा खण्ड-1 ‘कस्तूरी कुण्डल बसै’ तथा खण्ड-2 ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’ के शीर्षक चयन (नामकरण) के क्या कारण रहें हैं, किनसे प्रभावित होकर यह शीर्षक चयन आपने किया; इन शीर्षकों का पाठक द्वारा क्या अर्थ निकाला जावे। शीर्षक से आपका क्या अभिप्राय है ?

श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा जी-‘कस्तूरी कुण्डल बसै‘ की तो नायिका ही ‘कस्तूरी‘ है। इसलिए उसका नाम ‘कस्तूरी कुण्डल बसै‘ रखा। वही अंत में अपनी बेटी के अंदरूनी आत्मा में भी बसी हुई है, जबकि बहुत विरोध है आपस में, माँ-बेटी में।

‘गुड़िया भीतर गुड़िया‘ शीर्षक इसलिए दिया कि एक स्त्री होती है, जो ऊपर से दिखाई देती है, जिसको हम गुड़िया जैसी गूँगी समझते हैं, गुड़िया जैसी भोली समझते हैं, गुड़िया जैसी सुन्दर समझते हैं। जहाँ रखो वहीं रह जाएगी, जहाँ उठाओ उठ जाएगी, वहाँ बिठाओ बैठ जाएगी, लेकिन ऐसा होता नहीं है। उसके अंदर एक स्त्री और रहती है, जो सोचती है, समझती है, जो अपनी चेतना की बात करती है। चेतना की बात जब नहीं करने दी जाती, तब विरोध करती है। वो है ‘गुड़िया भीतर गुड़िया‘; इसलिए रखा। उसमंे जो एक लेखिका मैत्रेयी है, एक पत्नी है, वो घर में रहती है, आराम से रह रही है, सुविधा से भी रह रही है जैसे आम औरतें रहतीं हैं, वैसी ही है, लेकिन उसके अंदर जो एक चेतना जागी है। नहीं, मैं ये नहीं हूँ, मैं कुछ और भी हूँ; तो उसको जब दबाया जाता है तब वो गुड़िया के भीतर वो दूसरी गुड़िया जो सोचना भी जानती है, समझना जानती है, जो चेतना संपन्न है, जो कुछ करना चाहती है।

2. डॉ. वंदना कुमार- आपने आत्मकथा का अध्यायीकरण एवं शीर्षक परंपरा विरुद्ध काव्यात्मक एवं मुहावरेदार दिया है, इसके क्या कारण रहे हैं ?

मैत्रेयी पुष्पा- इसके कारण है कि मुझे, जो मैं लिख रही थी, वो जो साफ़गोई, ईमानदारी जो ज़रूरी होती है; कबीर से मिलता-जुलता दिखाई दिया। दोनों आत्मकथा के शीर्षक मैंने कबीर से लिये हैं, उसकी ईमानदारी, साफ़गोई, निडरता।

3. राजेन्द्र कुमार- आपको आत्मकथा लिखने का विचार कब आया? जब आपने आत्मकथा लिखना प्रारंभ किया तो किन समस्याओं से रूबरू होना पड़ा ?

मैत्रेयी पुष्पा- नहीं, उसमें समस्या नहीं आई मुझे। न, बिल्कुल नहीं आई। ये भी नहीं आई कि क्या लिखूँ, क्या नहीं? ऐसा कुछ नहीं था, सब साफ़ था। लिखने का विचार- पाठकों नेे कहा, यूनिवर्सिटीज से प्रोफेसरों ने, शिक्षकों ने, छात्रों ने कहा कि आप लेखिका कैसे बनी? ये बताइए। ये हमारे लिए बहुत लाभदायक होगा। मैं लखनऊ गई एक शादी में, तो वहाँ पर कुछ औरतें मेरे से मिलने आई। मैंने कहा मिलने क्यों आए, मैंने तो बताया ही नहीं किसी को, मैं तो शादी में आई हूँ, वे बोलीं हम आप को देखने आए हैं। मैंने कहा कि किसलिए? कहने लगी कि हम आपको देखने आए हैं और देख भी लिया हमें भी अभी देर नहीं हुआ अगर कुछ करना चाहें तो।

4. राजेन्द्र कुमार– आपकी आत्मकथा प्रकाशित होने पर बोल्ड लेखन का दुष्प्रचार किया गया, जबकि सूक्ष्म अध्ययन से प्रतीत होता है कि उसकी अभिव्यक्ति पारिस्थितिक प्रसंगानुकुल अनिवार्य थी। दुष्प्रचार के लिए कौन जिम्मेदार हैं ?

मैत्रेयी पुष्पाजलने वालों को। नहीं, दुष्प्रचार के लिए उनको जो ये साहस नहीं कर सके, वे हिम्मत नहीं कर सके, कि अपने-आप को ही निशाने पर रख दें, पात्रों को तो हम ख़ूब निशाने पर रखते रहते हैं, उपन्यासों में। अपने-आप को रखो निशाने में, तब पता चलेगा। तो उन लोगों को लगा कि ये सब क्यों लिख रही हैं? लगता है आपस में आपसी ईष्र्या-द्वेष भी तो होते हैं।

5. राजेन्द्र कुमार– प्रायः महिला आत्मकथाओं की विषय-वस्तु घर, परिवार की चारदिवारी होती है। आपकी आत्मकथा में घर-परिवार की समस्याओं का चित्रण कम है, क्या कारण हैं ?

मैत्रेयी पुष्पा-इसलिए कि घर-परिवार में बचपन में रही नहीं। दूसरों-दूसरों के घर-परिवार में रही। नम्बर दो जहाँ से जो लड़कियाँ होती हैं, आपस में सहेलियाँ होती हैं और घर-परिवार की बातें करती हैं। ऐसा मेरे साथ कुछ नहीं था। मैं लड़कों के साथ रहती थी। लड़कों के ही साथ पढ़ती थी। ब्व.मकनबंजपवद में पढ़ी हमेशा और हमें साधन नहीं थे, तो एक कमरा ले लेते थे, तीन-चार लड़के रह जाते थे और एक मैं रह जाती थी। लड़कियाँ, घर-परिवार कहाँ से आ जाए? कोई लड़का जा रहा है और मैं पैदल जा रही होती तो ‘रूक-रूक‘, साईकिल में बैठ जाती थी, मुझे भी ले चल। ये बी.ए., एम.ए. की बात है, कोई छोटेपन की बात नहीं है। तो जो लड़कियाँ उन घरों से आती थीं, जिन्हें तुम कह रहे हो घर-परिवार, सभ्रांत लोग। कहतीं थीं, कितनी आवारा लड़की आ गई है, हमारे काॅलेज में ? मैंने एक वाक्य लिखा है-‘‘आवारा लड़की को पता ही नहीं था कि आवारा कैसे हुआ जाता है?‘‘ मैं तो अपना काम कर रही हूँ। काॅलेज जाना है।

6. डॉ. वंदना कुमार– आपकी आत्मकथा के इन दोनों खण्डों में आपके जीवन के 67 वर्षों का लेखा-जोखा है। बचे जीवन के लिए क्या आत्मकथा के तीसरे खण्ड लिखने की मंशा है?

श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा जी- अभी नहीं है। अब बचा ही क्या है? सब तो लिख दिया। रहा-सहा स्टेज में उसे बोल दिया।

 

7. डॉ. वंदना कुमार- ज़्यादातर लेखिकाओं में आत्मकथा लेखन में अरुचि के क्या कारण हैं?

मैत्रेयी पुष्पा- अरूचि नहीं है, डर है। अरूचि क्यों होगी? जब लिख रहीं हैं, अभिव्यक्त कर रहीं हैं तो क्यों होगी? एक डर है, एक अपने परिवार की वो बातें खोलने में डर है, जिससे परिवार की थोड़ी-सी तौहीन होती है। उन चीज़ों को बोलने का डर होता है। अच्छा-अच्छा तो सभी बनना चाहते हैं।

8. राजेन्द्र कुमार- आत्मकथा लेखन के लिए लेखिकाओं को किस प्रकार पे्ररित किया जाए, जिससे उनकेे शोषण एवं दोहन की सच्चाई समाज के सामने आ सके ?

मैत्रेयी पुष्पा- इसके लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता। ये तो अगर वो ईमानदार और सच्ची हैं, लेखन के प्रति तो खुद लिखेंगीं। अच्छा! लिखती हैं वो, उपन्यास के जरिए लिखती हैं, ऐसा नहीं है, उन्हीं का चिट्ठा होता है वो, लेकिन वो अपने ऊपर नहीं, उपन्यास के जरिए लिखती हैं। पुरूष लिखते हैं, उपन्यास के जरिए। कितने पुरूषों ने आत्मकथा लिखी? राजेन्द्र यादव ने नाम बदल-बदल के लिखी, हिम्मत नहीं थी। ‘मुड़-मुड़ के देखता हूँ‘।

9. राजेन्द्र कुमार- महिलाओं की आत्मकथाएँ विभिन्न प्रपंचों द्वारा दबा दी जाती है या तो दुष्प्रचारित की जाती है। आपकी आत्मकथा के साथ भी अधिकाधिक दुष्प्रचार किया गया। वर्तमान परिदृृश्य में इससे कैसे निपटा जाना चाहिए ताकि महिलाएँ आत्मकथा लिखने हेतु हिम्मत जुटा सकें ?

मैत्रेयी पुष्पा- दुष्प्रचार तो किसी भी चीज़ का होता है, तो ये थोड़ी है कि हिम्मत हार जाओ। हौसले के साथ खड़े रहो। होना तो ये चाहिए कि अगर एक स्त्री ने लिखी है एक आत्मकथा तो उससे हिम्मत ले लो। क्योंकि हर स्त्री की आत्मकथा एक अपने आप में नया उपन्यास होगा और सच्चा होगा, ईमानदार होगा।

10. राजेन्द्र कुमार- आत्मकथा में आपकी बेबाक अभिव्यक्ति के कारण आत्मकथा सत्यता के अत्यधिक निकट प्रतीत होती है तथा यह विधा समृद्ध हुई है। आपकी इस बेबाक अभिव्यक्ति के पीछे का संबल कौन हैं ?

मैत्रेयी पुष्पा- संबल, लेखन में संबल नहीं हुआ करते। लेखन में तो कलम ही संबल है। और आत्मकथा ऐसी चीज़ है, इसे जब लिखते हैं, तो डर, भय, दहशत इन सबको एक किनारे करके लिखते हैं। कहते हैं ना ‘शीष कटाऊ भई धर्म लाखों उपाय‘ वो सोच लेते हैं। बीच में एक बात कहँूगी, जो मेरे साथ स्त्रियों ने लिखी आत्मकथाएँ, उनके साथ ये दिक्कत नहीं थी, जो कि मैंने लिखा भी है ‘गुड़िया भीतर गुड़िया‘ में कि उन्हें पति की दिक्कत नहीं थी। किसी का पति रहा नहीं, कोई पति से अलग हो गई थीं। एक मैं थी जो पति के साथ थी, मेरे डर तो दोगुने-चैगुने होने चाहिए ना, लेकिन फिर भी हिम्मत बाँधी, जो होगा देखा जाएगा।

11. राजेन्द्र कुमार-आत्मकथा लिखने के लिए आपको किसने प्रेरित किया और किस प्रकार मदद की ?

मैत्रेयी पुष्पा- पहली वाली तो लिखी, ऐसे कि ऐसे ही लिखना था। ‘गुड़िया भीतर गुड़िया‘ का ही सबसे ज़्यादा परेशानी थी। ये मुझे किसी ने प्रेरित नहीं किया, जो मेरी पाठिकाएँ थीं, उन्होंने प्रेरित किया, जिन्होंने ‘कस्तूरी कुण्डल बसै‘ पढ़ा, उनके मेरे पास संदेश आए कि हम देखना चाहते हैं कि आप लेखिका कैसे बनीं। आप लिखिए उन्हें।

12. राजेन्द्र कुमार-आत्मकथा लिखने के लिए परिवार का सपोर्ट एक अनिवार्य कारक है। परिवार में सर्वाधिक मदद किसने की ?

मैत्रेयी पुष्पा- किसी ने नहीं। कोई नहीं करेगा। आत्मकथा लिखने के लिए परिवारी-जन कोई नहीं करेगा, कितना ही प्यारा हो।

13. राजेन्द्र कुमार- समकालीन महिला आत्मकथाओं में से किस रचना को आप ‘मिल का पत्थर’ मानती हैं, जिसकी अभिव्यक्ति से आप प्रभावित हुई हैं ?

मैत्रेयी पुष्पा- किसी को नहीं, सब में चार सौ बीसियाँ लिखीं हैं।

14. राजेन्द्र कुमार-पुरूषों के द्वारा लिखी आत्मकथा में किसकी रचना आपको बेहद पसंद है?

मैत्रेयी पुष्पा- बेचन की ‘अपनी खबर‘।

15. राजेन्द्र कुमार-हिंदी आत्मकथा लिखने वाली लेखिकाओं में किसकी रचना आपको बेहद पसंद आयी ?

मैत्रेयी पुष्पा- कुछ भी नहीं ।

16. राजेन्द्र कुमार- आपके पिता जी का असामयिक निधन (35 वर्ष की उम्र में) होने के वक्त आपकी उम्र महज़ 18 माह थी। क्या इस पितृसत्तात्मक समाज में आपको उनकी कमी नहीं खली? यदि कमी का अहसास हुआ तो इसकी प्रतिपूर्ति किसके माध्यम से हुई?

मैत्रेयी पुष्पा- बहुत खली, कमी तो खलती है, बचपन जो अनाथ हो गया, क्योंकि पिता खतम हो गए। माँ जो है, छोड़ के चली गईं, पढ़ने-लिखने, नौकरी करने। कमी तो खली, लेकिन इसकी पूर्ति किसने की? इसकी पूर्ति कभी माँ ने की, कभी मैंने ख़ुद कर ली। जो बच्चे अनाथ-असहाय जैसे होते हैं, वो मैच्योर भी जल्दी हो जाते हैं, उनका बचपन खतम हो जाता है, जल्दी। अपनी रक्षा करना, अपने को सम्हालना, ख़ुद समझ लेते हैं।

17. राजेन्द्र कुमार- कहते हैं कि हर महिला की सफलता के पीछे किसी पुरुष का हाथ होता है। आप इसका श्रेय किन्हंे देना चाहेंगी? पिता/पुत्र/पति/मित्र।

मैत्रेयी पुष्पा- ऐसा कुछ नहीं। उस पुरूष का तो बिल्कुल नहीं, जिसका लोग कहते हैं। राजेन्द्र यादव का हो सकता है। उन्होंने मेरे साथ बहुत मेहनत की। मुझे पढ़ाया। ना पिता, ना पुत्र, वे मेरे एक गाइड थे।

18. राजेन्द्र कुमार- आपको हिंदी-साहित्य संसार में स्व. श्री फणीश्वरनाथ रेणु तथा श्री रांगेय राघव के समकक्ष स्थान प्राप्त है। ‘आंचलिकता का पुट’ आपके साहित्य की विशेषता है। इसकी प्रेरणा कहाँ से मिली ?

मैत्रेयी पुष्पा- जीवन ऐसा था, ग्रामीण जीवन था, प्रेरणा इसकी कहीं से नहीं मिली। लेकिन जीवन ग्रामीण था, तो ग्रामीण मुहावरे में ही सारा लेखन किया मैंने।

19. राजेन्द्र कुमार-वर्तमान में ‘नारी-विमर्श’ के सबसे बड़े पैरोकार के रुप में आपका नाम लिया जाता है; ‘नारी-विमर्श‘ पर इतना अधिक साहित्य लिखे जाने के बावजूद महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। इसके क्या कारण हैं ?

मैत्रेयी पुष्पा- ‘नारी-विमर्श‘ का नाम तो बेकार लिया जाता है। मैंने ‘नारी-विमर्श‘ के लिए लेखन नहीं किया था। ना मैं जानती थी ‘नारी-विमर्श‘। ‘नारी-विमर्श‘ करने से स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी हो जाएगी, ऐसा कह नहीं सकते, लेकिन हाँ, थोड़ी सी एक चेतना तो जागती है, उसे पढ़कर कि हमारे अधिकार क्या होने चाहिए? हमारा हक़ क्या होना चाहिए?

20. राजेन्द्र कुमार-आपकी सबसे पसंदीदा रचना कौन-सी है ?

मैत्रेयी पुष्पा- सबसे अच्छी कौन-सी है? ये तो पाठक तय करेंगे। ये तो पाठक ही बता सकते हैं।

21. राजेन्द्र कुमार-आपकी कौन-सी रचना आपको सर्वाधिक प्रिय है, जिसे ख्याति या प्रसिद्धि न मिलने का आपको मलाल है ?

मैत्रेयी पुष्पा- नहीं, मलाल तो नहीं है, पर मैंने कहा था कि चाक पसंद है, सबसे ज़्यादा, लेकिन विवादित रही, बदनाम रही वो किताब और आज भी है, लेकिन सबसे अधिक बिकती भी वही है।

22. राजेन्द्र कुमार-एक पसंदीदा लेखक और लेखिका की रचना जो आपको बेहद पसंद हो।

मैत्रेयी पुष्पा- पसंदीदा लेखक में फणीश्वर नाथ ‘रेणु‘ का उपन्यास ‘मैला आँचल‘ और पसंदीदा लेखिका में बंगाल की हो सकती हैं मैत्रेयी देवी की ‘न हन्यते‘ (उनकी आत्मकथा है)।

23. राजेन्द्र कुमार- समाज में महिलाओं की नारकीय अवस्था के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या आपको नहीं लगता इस क्षेत्र में सरकारी प्रयास का अभाव है ?

मैत्रेयी पुष्पा- नहीं, सरकार वहाँ क्या करेगी? इसके लिए एक तो पितृसत्ता ज़िम्मेदार है, दूसरा जो पितृसत्ता के सरपरस्त हैं, वो स्त्रियाँ जिम्मेदार हैं, कि हम बेटे का पक्ष लें, हम पति को भी रूष्ट नहीं कर सकते। फिर हम आदर्श नारी कैसे बनंेगे? आदर्श नारी तो बनना ही चाहिए। बनी रहो, मैं कब मना कर रही हूँ ?

24. राजेन्द्र कुमार- महिला आरक्षण विधेयक पारित होने से क्या महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा? आरक्षण विधेयक पास नहीं हो पाने का कारण क्या महिला जागरुकता की कमी नहीं है ?

मैत्रेयी पुष्पा- आरक्षण मिलने से होगा, लेकिन बहुत धीमा होगा, क्योंकि आरक्षण मिलने के बाद भी स्त्रियाँ बोल नहीं रही हैं। अभी भी पुरूष ही काम कर रहे हैं। म्अमद हमारे यहाँ देखो, असेम्बली वैगरह में जो चुन के आतीं हैं, संसद में देख लो, कितनी स्त्रियाँ बोल रहीं हैं? सुषमा स्वराज इतनी जोर दहाड़ती थीं, अब चुप हैं। बोलती भी हैं, तो एक-दूसरे पर छिटा-कसी ही करते हैं। कोई भी जनता के लिए कुछ नहीं। आपस में एक-दूसरे की बुराई करते रहते हैं। इसलिए ये सब चीजें सफल नहीं हो पाती।

25. राजेन्द्र कुमार- एक महिला, दूसरी महिला का पक्ष क्यों नहीं लेती? क्योंकि सास एक प्रमुख कारण है जो भ्रुण हत्या, दहेज प्रथा एवं अन्य कुरीतियों की पक्षकार होती हैं।

मैत्रेयी पुष्पा- फिर वही कहूँगी कि वो अपने को बचाने के लिए नहीं करती हैं, ये वही पुरूष सत्ता को बचाने के लिए करती हैं और उसी के पक्ष में बोलती हैं। बहु आने पर सास ऐसी क्यों हो जाती है? क्योंकि बेटे को छिनने का डर लगता है। मान लो बॉस है ऑफिस में, बॉस का पक्ष मेरे को मिले, इसलिए दूसरी स्त्री को नीचे गिराना चाहेगी तो वही हो गया ना सरपरस्ती पुरूषों की हो गई।

26. राजेन्द्र कुमार- प्रायः देखा जाता है कि पुत्र की लालसा में कई पुत्रियों को जन्म दे दिया जाता है। इसका महिलाएँ क्यों विरोध नहीं कर पातीं? बिना सहमति के भ्रुण हत्या का प्रावधान नहीं है।

मैत्रेयी पुष्पा- ठीक बात है तुम्हारी, लेकिन दबाव समाज के इतने होते हैं कि वो नहीं करती मना, क्योंकि उसकी जो जिं़दगी कितनी अवहेलना, कितना अपमान होता है। अब शहरों में नहीं है, लेकिन गाँवों में अभी भी बहुत है। शहरों में भी है कि नहीं ये कह नहीं सकती।

27. राजेन्द्र कुमार- यदि आपको राष्ट्रीय महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया जावे तो आपका पहला कदम क्या होगा ?

मैत्रेयी पुष्पा- मैं बनूँगी ही नहीं, नाम चल रह था। फँस गई थी जैसे, उनकी मदद करने के लिए। उन्होंने कहा कि हमारा सहयोग कर दो। कुछ पता ही नहीं था, कितनी तनख़्वाह वैगरह? मैंने कहा-मैं नहीं लूँगी। मना कर दिया था। केजरीवाल ने बयान भी दिया था कि एक रूपया में भी आने को तैयार हूँ। मैंने सोचा कि अगर तनख़्वाह दी इन्होंने तो वो जो चाहेंगे वो कराएँगे। मैं लोभी, लालच की मारी छोडूंगी नहीं, उस नौकरी को। इसलिए भाग लो, अपना थैला उठाके। हम जैसे आदमी के लिए मुश्किल है।

डॉ.वंदना कुमार, शोध-निर्देंशक एवं सहायक प्राध्यापक (हिंदी), शासकीय नागार्जुन स्नातकोत्तर विज्ञान महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.) मो. नं.- 9425207186 E-mail –vkengrani@gmail.com

राजेन्द्र कुमार, शोधार्थी (हिंदी), पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

मो. नं.- 7489407563 E-mail – rajendrakumar_bhardwaj@yahoo.com